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८ सयोगी पंचेन्द्रिय तियंचों का विभाग
पंचेदियतिरिक्खजोणिया जहा नेरइया । णवरं ओरालियसरीरकायप्पओगी वि ओरालिय मी सासरीरकायप्पओगी वि, अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगी य ? अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य २
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- पण ० प १६ । सु १०८२ | पृष्ठ० २६३ टीका - पंचिदतिरिक्खजोगिया जहा नेरइया' इत्यादि, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका यथा नैरयिकास्तथा वक्तव्याः, नवरं वैक्रियमिश्रवैक्रियशरीरकायप्रयोगिस्थाने औदारिक औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोगिणो वक्तव्याः, किमुक्तं भवति ? सत्यमन: प्रयोगिणोऽपीत्यादि तावद्वक्तव्यं यावदसत्यामृषावाग्योगिनोऽपि
तत
औदारिकशरीरकाय प्रयोगिणोऽपि औदारिक मिश्रशरीरकायप्रयोणिऽपीति वक्तव्यं एतानि दश पदानि बहुवचनेन सदाऽवस्थितानि, यद्यपि च तिर्यक् पञ्चेन्द्रि याणामप्युपपात विरहकाल आन्तर्मुहूत्तिकस्तथाप्युपपातविरह कालान्तर्मुहूर्तं लघु औदारिक मिश्रान्तमुहूर्तमतिबृहदित्यत्र प्यौदारिक मिश्रशरीरकायप्रयोगिणः सदा लभ्यते यस्तु द्वादशमौहूत्तिक उपपातविरहकालः स गर्भव्युत्क्रान्तिकपञ्चेन्द्रियतिरश्वां न सामान्यपञ्चेन्द्रियतिरश्चामिति, कार्मणशरीरकायप्रयोगी तु तेष्वपि कदाचिदेकोऽपि न लभ्यते, आन्तम हूतिकोपपातविरहकालभावात्, ततो यदा एकोऽपि कार्मणशरीरी न लभ्यते तदा प्रथमो भंगः यदा पुनरेको लभ्यते तदा द्वितीयः यदा बहवस्तदा तृतीयः ।
पंचेन्द्रियतिर्यंच नारकी की तरह जानना चाहिए परन्तु वे औदारिकशरीर कायप्रयोग वाले भी और औदारिकमिश्रशरीर कायप्रयोगवाले भी होते हैं । अथवा एक कार्मणशरीर काय प्रयोगवाला होता है ? अथवा कितनेक कार्मणशरीर कायप्रयोगवाले होते हैं ।
अस्तु -- जैसा नारकी के संबंध में कहा - वैसा ही पंचेन्द्रिय तिर्यंचपंचेन्द्रिय के संबंध में जानना चाहिए । परन्तु वैक्रिय और वैक्रियमिश्रशरीर कायप्रयोगवालों के स्थान में औदारिक और औदारिकमिश्रशरीर कायप्रयोग वाला कहना चाहिए। तात्पर्य यह है कि१ - सत्यमनः प्रयोगवाला यावत् असत्यामृषावचन प्रयोगवाला ९ - औदारिकशरीर कायप्रयोग वाला और बाद में १० औदारिकमिश्रशरीर कायप्रयोगवाला होता है ऐसा कहना चाहिए ।
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ये दस पद हमेशा बहुवचन की अपेक्षा अवस्थित है । जो कि तिथंच पंचेन्द्रियों का उपपात विरहकाल अन्तर्मुहूर्त का है तो भी उपपात विरहकाल का अन्तर्मुहूर्त छोटा है, औदारिक मिश्र का अन्तर्मुहूर्त बहुत बड़ा है । अतः यहाँ पर भी औदारिकमिश्रशरीर कायप्रयोगवाले सदा होते हैं । जो बारह मुहूर्त का उपपात विरहकाल कहा है वह गर्भज
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