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•५ सयोगी द्वीन्द्रिय का विभाग
·६ वीन्द्रिय
•७
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चतुरिन्द्रिय
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( ८२ )
बेइ दिया गं भंते! कि ओरालियसरीरकायप्पओगी जाव कम्मासरीरerrorओगी ? गोयमा ! बेइ दिया सव्वे वि ताव होज्जा असच्चामोसवइप्पओगी fa ओरालिय सरीर कायप्पओगी वि ओरालियमी सासरीर कायप्पओगी वि, अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगी य १ | अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य २ । एवं जाव चरदिया ।
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- पण्ण ० प १६ । सू १०८१ । पृष्ठ० २६३
टीका - द्वीन्द्रियेषु यद्यप्यान्तमौहू तिक उपपातविरहकालस्तथाप्युपपातविरहकालोऽन्तर्मुहूतं लघु औदारिकमिश्रगतमन्तर्मुहूर्तमतिबृहत् प्रमाणमत औदाfreमिशरीर काय प्रयोगिणोऽपि तेषु सदैव लभ्यन्ते, कार्मणशरीरकायप्रयोगी तु कदाचिदेकोऽपि न लभ्यते, आन्तम हूतिकोपपातविरहकालभावात्, यदापि लभ्यते तदापि एको द्वौ वा उत्कर्षतोऽसंख्येयाः, ततो यदा एकोऽपि कार्मणशरीरकाय प्रयोगी न लभ्यते तदा प्रथमो भंगः, यदा पुनरेकः कार्मणशरीरी लभ्यते तदा द्वितीयः, यदा बहवस्तदा तृतीय इति, एवं त्रिचतुरिन्द्रियेष्वपि भावनीयम् ।
सर्व बेइन्द्रिय असत्यमृषा वचनप्रयोगवाले, औदारिकशरीर कायप्रयोगवाले और औदारिकमिश्रशरीर कायप्रयोगवाले भी होते हैं अथवा एक कार्मणशरीर कायप्रयोगवाला भी होता है १ - केतनेक कार्मणशरीर कायप्रयोगवाले भी होते हैं । २ - इसी प्रकार ते इन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रिय के विषय में जानना चाहिए ।
अस्तु — बेइन्द्रियों में जो कि अन्तर्मुहूर्तकाल का उपपात विरहकाल है तो भी उपपात विरहकाल का अन्तर्मुहूर्त छोटा है और औदारिक मिश्र का अन्तर्मुहूर्त बहुत मोटा है । अतः उनमें औदारिकमिश्रशरीर कायप्रयोगवाले भी हमेशा होते हैं । कार्मणशरीर का प्रयोगवाले तो कदाचित् एक भी नहीं होते हैं। क्योंकि उनका उपपात विरहकाल अन्तर्मुहूर्त होता है । जब वह होता है तब जघन्य एक, दो और उत्कृष्ट से असंख्यात होते हैं । इस कारण जब एक भी कार्मणशरीर कायप्रयोग वाला नहीं होता है तब प्रथम भंग घटित होता है । जब एक कार्मणशरीर होता है तब द्वितीय भंग और जब बहुत होते हैं तब तीसरा भंग होता है ।
इसी प्रकार इन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय के विषय समझना चाहिए ।
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