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हवं ति। उक्कोसेणं जुगवं पुहुत्तमेत्तं सहस्साणं ॥२॥ ततो यदा आहारकशरीरकायप्रयोगी आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी चैकोऽपि न लभ्यते तदा बहुवचनविशिष्टत्रयोदशपदात्मक एको भंगः, त्रयोदशपदानामपि सदेव बहुत्वेनावस्थितत्वात, यदा त्वेक आहारकशरीरकायप्रयोगी लभ्यते तदा द्वितीयः, तेऽपि यदा बहवो लभ्यन्ते तदा तृतीयः, एवमेव आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगिपदेनापिद्वौ भंगो लभ्येते इत्येकयोगे चत्वारो भंगाः द्विकसंयोगेऽपि प्रत्येकमेकवचनबहुवचनाभ्यां चत्वार इति सर्वसंख्या जीवपदेन नव भंगाः।
जीव ( बहुवचन) क्या सत्यमनप्रयोग वाला है यावत् क्या कामगशरीरप्रयोग वाला है ?
१-सब जीव सत्यमनप्रयोग वाले, असत्यमनप्रयोग वाले यावत् वैक्रियमिश्र शरीर प्रयोग वाले तथा कार्मणशरीर कायप्रयोग वाले भी होते हैं। (यहाँ आहारक काययोग व आहारकमिश्र काययोग को छोड़ा है)।
अथवा एक आहारकशरीर कायप्रयोग वाला होता है, (१) अथवा कितनेक आहारकशरीर कायप्रयोग वाले होते हैं, (२) अथवा एक आहारकमिश्र शरीर कायप्रयोग वाला होता है, (३) अथवा कितनेक आहारकमिश्र शरीर कायप्रयोग वाले होते हैं, (४) यह चतुर्भगी जाननी चाहिए।
- अथवा एक आहारकशरीर कायप्रयोग वाला और एक आहारकमिश्रशरीर कायप्रयोग वाला होता है, (१) अथवा एक आहारकशरीर कायप्रयोग वाला और कितनेक आहारकमिश्रशरीर कायप्रयोग वाले होते है, (२) अथवा कितनेक आहारकशरीर कायप्रयोग वाले होते हैं और एक आहारकमिश्रशरीर कायप्रयोग वाला होता है, (३) अथवा कितनेक आहारकशरीर कायप्रयोग वाले होते हैं और कितनेक आहारकमिश्रशरीर कायप्रयोग वाले होते हैं। ४ ।
इस प्रकार जीवों के आश्रयी आठ भंग-विकल्प जानने चाहिए।
____ अस्तु सर्व जीव सत्यमनप्रयोग वाले होते हैं-इत्यादि प्रथम भंग-विकल्प होता है । तात्पर्य यह है कि सर्वदा घने जीव सत्यमनप्रयोग वाले, असत्यमनप्रयोग वाले, यावत् वैक्रियमिश्रशरीर कायप्रयोग वाले और कार्मणशरीर कायप्रयोग वाले भी होते हैं। नारकादि जीवों को हमेशा उपपात और उत्तरवैक्रिय का आरंभ सम्भव है। कार्मणशरीर कायप्रयोग वाले हमेशा होते हैं, क्योंकि वनस्पति आदि विग्रहगति से हमेशा अवान्तर गति में होते हैं। आहारक शरीरी कदाचित, सर्वथा नहीं होता है क्योंकि उसका उत्कृष्ट से छः मास तक का अन्तर संभव है। जब आहारकशरीरी होता है तब जघन्य से एक, दो और उत्कृष्ट से सहस्र पृथक्त्व-दो हजार से नव हजार तक होते हैं। कहा है-"लोक में आहारकशरीर
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