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किसी को भी उत्कृष्ट छः मास तक अवश्य नहीं होता है। और जघन्य से एक समय तक नहीं होता है। जब होता है तब जघन्य से एक, दो, तीन अथवा पांच होता है और उत्कृष्ट एक साथ सहस्र पृथक्त्व होता है। इस कारण जब आहारकशरीर कायप्रयोग वाला और आहारकमिश्र शरीर कायप्रयोग वाला एक भी नहीं होता है तब दो प्रयोग के सिवाय बहुवचन युक्त तेरह पद का प्रथम भंग होता है क्योंकि तेरह पदों का भी हमेशा बहुपन होता है।
जब एक आहारकशरीर-कायप्रयोग वाला होता है तब दूसरा भंग घटित होता है। वह भी जब घने होते हैं तब तीसरा विकल्प घटित होता है ।
इस प्रकार ही आहारकमिश्रशरीर-कायप्रयोग पद से भी दो भंग होते हैं। इस प्रकार एक के योग में चार भांगे होते हैं। .
द्विक संयोग में भी प्रत्येक के एकवचन और बहुवचन में चार भंग,
इस प्रकार सर्व संख्या में जीवपद के आश्रयी नव भंग होते हैं। •२ सयोगी नारको जीवों का विभाग ...
रइया गं भंते ! कि सच्चमणजोगी जाव कि कम्मासरीरकायप्पओगी? गोयमा! णेरइया सब्वे वि ताव होज्जा सच्चमणजोगी वि जाव वेउग्वियमोसासरीरकायप्पओगी वि, अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगी य १ अहवेगे य कम्मासरीरकायप्पओगिणो य २॥
–पण्ण० प १६ । पू १०७८ । पृष्ठ० २६२ ____टोका-नरयिकपदे सत्यमन:प्रयोगिप्रभृतीनि वैक्रियमिथशरीरकायप्रयोगिपर्यन्तानि सदैव बहुवचनेन दश पदान्यवस्थितानीत्येको भंगः, अथ वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगिणः सदैव कथं लभ्यन्ते ? द्वादशमौहत्तिकगत्युपपातविरहकालभावात्, उच्यते, उत्तरवैक्रियापेक्षया, तथाहि द्वादशमौहूतिको गत्युपपातविरहकालस्तथापि तदानीमपि उत्तरक्रियारम्भिणः संभवन्ति, उत्तरवैक्रियारम्भे च भवधारणीयं वैक्रियमित्रं, तबलेनोत्तरवैक्रियारम्भात्, भवधारणीयप्रवेशे चोत्तरवैक्रियमिश्र, उत्तरवैक्रियबलेन भवधारणीये प्रवेशात, तत एवोत्तरवैक्रियापेक्षया भवधारणीयोत्तरवैक्रियमिश्रसंभवात् तदानीमपि वैक्रियशरीरमिश्रकायप्रयोगिणो नरयिका लभ्यन्ते, कार्मणशरीरकायप्रयोगी च नैरयिकः कदाचिदेकोऽपि न लभ्यते, द्वादशमौहूत्तिकगत्युपपात विरहकालभावात्, यदापि लभ्यते तदापि जघन्यत एको द्वौ वा उत्कर्षतोऽसंख्येयाः, ततो यदा एकोऽपि कार्मणशरीरकायप्रयोगी न लभ्यते
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