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•३ थावर कायप्पहुडी सजोगिचरिमोत्ति होदि आहारी।
कम्मइय अणाहारी अजोगिसिद्ध वि णायन्वो
-गोजी० गा. ६९८
आहारक में सयोगकेवलि पर्यन्त गुणस्थान होते हैं। कार्मण योग के समय (मिथ्यादृष्टि, सासादन, असंयत और सयोग केवली के कार्मण काय योग के समय ) तथा अयोगी और सिद्ध अणाहारिक होते हैं । .५ कार्मण काय योगी अनाहारक होते हैं। कम्मइय अणाहारी अजोगिसिद्धवि णायव्वो।
-गोजी. गा० ६९८ । उत्तरार्ध टोका-मिथ्यादृष्टिसासादनासंयतसयोगानां कार्मणयोगावसरे अयोगि सिद्धयोश्च अनाहारो ज्ञातव्यः । तत्र जीव समासाः सप्त । अयोगस्य चैकः ।
मिथ्यादृष्टि, सासादन, असंयत और सयोगी कार्मण योग के समय अनाहारक होते हैं। अयोगी अनाहारक होते हैं। उसमें जीव समास अपर्याप्त सम्बन्धी सात होते हैं। अयोगी के एक पर्याप्त होता है। कार्मणकाययोगिजीवराशिः अनाहारकपरिमाणं भवति ।
-गोजी० ६७१ । टीका योग मार्गणा में कार्मण काय योगियों का जितना प्रमाण कहा है उतना ही अनाहारकों का प्रमाण है। .५ सयोगो जीव और आहारादि
सजोगीसु जोवेगिदियवज्जो तियभंगो। मणजोगी वइजोगी य जहा सम्मामिच्छट्ठिी ( सम्मामिच्छदिट्ठी णं भंते ! कि आहारए अणाहारए ? गोयमा ! आहारए, णो अणाहारए-सू १८८९) णवरं वइजोगो विलिदियाण वि।
कायजोगीसु जीवेगिदियवज्जो तियभंगो। अजोगी जीव-मणूस-सिद्धा अणाहारगा।
–पण्ण० प २८ । उ २ । सू १९०० । पृ० ४०५ टीका-सामान्यतः सयोगिसूत्रमेकवचने तथैव, बहुवचने जीवएकेन्द्रियपदानि वर्जयित्वा शेषेषु स्थानेषु भगत्रिकं, जीवपदे पृथिव्यादिपदेषु च पुनः प्रत्येकमाहारका अपि अनाहारका अपीति भङ्गः, उभयेषामपि सदैव तेषु स्थानेषु
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