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आहारक काम योग में जीव समास वही संज्ञीपर्याप्त और आहारकमिश्र काय योग में संज्ञो अपर्याप्त एक-एक ही होता है ।
. ११ मनो योग- वचन योग और गुण स्थान
मज्झिम चउमणवयणे सण्णिप्पहुडतु जाव सेसाणं जोगित्ति च अणुभयवयणं तु
टीका - मध्यमेषु असत्योभयमनोवचनयोगेषु चतुर्षु संज्ञिमिथ्यादृष्ट्या - दीनि क्षीणकषायान्तानि द्वादश । तु पुनः सत्यानुभयमनोयोगयोः सत्यवचनयोगे च संज्ञिपर्याप्तमिथ्यादृष्ट्यादीनि सयोगान्तानि त्रयोदश गुणस्थानि भवन्ति । xxx अनुभय वचनयोगे तु गुणस्थानि विकलत्रयमिथ्यादृष्ट्यादीनि त्रयोदश ।
- १२ काय योग और गुण स्थान
मध्यम अर्थात् असत्य और उभय मनो योग और वचन योग- इन चार में संज्ञी मिथ्या दृष्टि से लेकर क्षीण कषाय पर्यन्त बारह गुण स्थान होते हैं । तथा सत्य और अनुभव मनो योग और सत्य वचन योग में संज्ञीपर्याप्त मिथ्या दृष्टि से लेकर सयोगी केवली पर्यन्त तेरह गुण स्थान होते हैं ।
अनुभय वचन योग में विकलत्रय मिथ्या दृष्टि से तेरह गुण स्थान होते हैं ।
खीणोति ॥ वियलादो ।
- गोजी ० गा ६७९
ओरालं पज्जत्ते थावरकायादि जाव जोगित्ति । तम्मिस्समपज्जते चदुगुणठाणेसु नियमेण ॥
पर्याप्त मिथ्या
टीका - औदारिककाययोगः एकेन्द्रियस्थावर काय दृष्ट्यादिसयोगान्त त्रयोदशगुणस्थानेषु भवति । तन्मित्रयोगः अपर्याप्त चतु गुण स्थानेष्वेव नियमेन ।
- १३ मज्झिमच उमणवयणे सण्णिध्वहुड तु जाव खीणोत्ति ।
सेसणं जोगिन्ति च अणुभयवयणं तु वियलादो ॥
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दारिक काय योग एकेन्द्रिय स्थावर काय पर्याप्त मिथ्या दृष्टि से सयोगी केवली पर्यन्त तेरह गुण स्थानों में होता है ।
- गोजी० गा ६८०
दारिक मिश्र का योग नियम से अपर्याप्त अबस्था में चार गुण स्थानों (१, २, ४, १३ ) में होता है ।
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- गोजी ० गा ६७९
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