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प्राणों में से भी वचन योग के रुक जाने पर तीन रहते हैं। पुनः उच्छ वास निश्वास का निरोध होने पर दो रहते हैं।
अयोगकेवली के एक आयु प्राण होता है । '६ आहारक काय योग और गुण स्थान '७ आहारक मिश्रकाय योग और गुण स्थान
आहारो पज्जत्ते इदरे खलु होदि तस्स मिस्सोदु । अंतोमुहुत्तकाले छट्टगुणे होदि आहारो॥
-गोजी० ग ६८३ टीका-आहारककाययोगः संजिपर्याप्तषष्ठगुणस्थाने जघन्योत्कृष्टेन अन्तर्मुहूर्त्तकाले एव भवति । तन्मिश्रयोगः इतरस्मिन् संज्ञ यपर्याप्तषष्ठगुणस्थाने खलु जघन्योत्कृष्टेन तावत्काले एव भवति ।
आहारक काययोग संज्ञीपर्याप्त छ8 गुण स्थान में जघन्य और उत्कृष्ट से अन्तमुहूर्त काल में ही होता है। आहारक काय योग संज्ञी अपर्याप्त अवस्था में छठे गुण स्थान में जघन्य-उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्तकाल में ही होता है। अतः इन दोनों में एक छट्ठा ही गुणस्थान होता है । '८ सयोगी गुण स्थान में दो जीव समास
अयोगी गुण स्थान में एक जीव समास
xx x सयोगे च संज्ञीपर्याप्तापर्याप्तौ द्वौ। x x x अयोगे च संज्ञीपर्याप्त एवैकः।
-गोजी० गा ६९९ टीका सयोगी में संज्ञीपर्याप्त और अपर्याप्त दो जीव समास होते हैं। अयोगी केवली में एक संजीपर्याप्त ही होता है। ९ आहारक काययोग और जीव समास १० आहारक मिश्रकाय योग और जीव समास
टीका-आहारककाययोगः संज्ञिपर्याप्तः x x x तम्मिश्रयोग संजय पर्याप्तः xxx जीव समासः स एव एकैकः।
गोजी० गा६५३। टीका
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