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मिथ्या दृष्टि में, सासादन में, पुरुष वेद के उदय सहित असंयत में और कपाट समुद्घात सहित सयोगी केवली में इन चार अपर्याप्त अवस्था सहित गुणस्थानों में औदारिक मिश्रकाय योग होता है। .३ सोलेसों संपत्तो निरुद्धणिस्सेसआसओ जीवो। कम्मरयविप्पमुक्को गयजोगो केवली होदि ।
-गोजी० गा ६५ टीका—मनोवाक्काय योगरहितत्वादयोगः न विद्यते योगो यस्यासौअयोगः सचासौ केवली च अयोगकेवली इति ।
मनो योग, वचन योग, और काय योग से रहित होने से अयोग है। इस तरह से जिनके योग नहीं है तथा केवली भी है वे अयोग-केवली (चौदहबां गुण स्थान है ) है । •४ कार्मण काय योग और गुण स्थान
ओरालियमिस्सं वा चउगुणठाणेसु होदि कम्मइयं । चदुगदिविग्गहकाले जोगिस्स य पदरलोगपूरणगे॥
-गोजी० गा ६८४ टोका-औदारिकमिश्रवच्चतुर्गुणस्थानेषु कार्मणकाययोगः स्यात् स चतुर्गतिविग्रहकाले सयोगस्य प्रतरलोक पूरणकाले च भवति तेन तत्र गुणास्थानानि जीवसमासाश्च तद्वत् चत्वारि अष्टौ भवन्ति ।
__ औदारिक मिश्र काय योग की तरह कार्मण काय योग चार गुण स्थानों में होता है। वह चार गति सम्बन्धी विग्रह गति काल में और सयोगी केवली के प्रतर और लोक पूरण समुद्घात के काल में होता है। इससे उसमें गुण स्थान और जीव समास उसी की तरह क्रम से चार और आठ होते हैं।
.५ सयोगजिने भावेन्द्रियं न, द्रव्येन्द्रियापेक्षया षट्पर्याप्तयः वागुच्छ्वास निश्वासायुः कायप्राणश्चत्वारि भवन्ति। शेषेन्द्रियमनः प्राणाषट् न सन्ति । तत्रापि वाग्योगे विश्रान्तेत्रयः। पुनः उच्छ्वासनिश्वासे विश्रान्ते द्वौ। अयोगे आयुः प्राण एकः।
-गोजी० गा ७०१ । टीका सयोग केवली में भावेन्द्रिय नहीं है। उनके द्रव्येन्द्रिय की अपेक्षा छह पर्याप्तियां हैं और चार प्राण होते हैं। और वचन बल, उच्छ वासनिश्वास बल, आयु और काय बल-ये चार प्राण होते हैं। शेष इन्द्रिय और मन ये छह प्राण नहीं है। उन चार
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