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( ६ )
आयुष्य बांधता है । मिथ्य दर्शनी जीव कृष्ण लेशी अशुभ योगी होता तो वह नरकादि चारों गतियों का अशुभ आयुष्य बांधता है । यह ध्यान रहें अशुभ लेश्या अशुभ योग होते हुए भी अध्यवसाय प्रशस्त हो सकते हैं ।
- ( भग० श २४ )
४.१ सयोगी जीव और काल की अपेक्षा सप्रदेश- अप्रदेश
·४·१ सजोगी जहा ओहिओ, मणजोगी वयजोगी कायजोगी जीवाइओ तियभंगो,
नवरं कायजोगी एगिंदिया, तेसु अभंगयं ।
( ओघ पाठ - नियमा सपएसे । प्र १ )
- जीवे णं भंते ! कालादेसेणं किं सपए से अपएसे ? गोयमा !
४.२ अजोगी जहा अलेस्सा (६३)
( असेहि जीव - सिद्ध हि तियभंगो )
- भग० श ६ । उ ४ । प्र ५, ६३
यहाँ काल की अपेक्षा से जीव सप्रदेश है या अप्रदेश - ऐसी पृच्छा है । काल की अपेक्षा से सप्रदेशी व अप्रदेशी का अर्थ टीकाकार ने एक समयकी स्थिति वाले को अप्रदेशी और द्वयादि समय की स्थिति वाले को सप्रदेशी कहा है । इस सम्बन्ध में उन्होंने एक गाथा भी उद्धृत की है ।
"जो जस्स पढयसमए वट्टइ भावस्ससो उ अपएसो । अण्णम्मि वट्टमाणो काला सेण सपएसो ॥"
सयोगी जीव ( एक वचन ) काल की अपेक्षा से योगी नारकी काल की अपेक्षा से कदाचित् सप्रदेशी होता है, इसी प्रकार यावत् सयोगी वैमानिक देव तक समझना ।
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सयोगी जीव ( एक वचन ) काल की अपेक्षा से सयोगी जीव अनादि काल से सयोगी जीव है । सयोगी समय की अपेक्षा से अप्रदेशी कहलाता है। इसी चाहिए |
नियमतः सप्रदेशी होता है | कदाचित् अप्रदेशी होता है ।
सप्रदेशी होता है । क्योंकि नारकी उत्पन्न होने के प्रथम प्रकार वैमानिक देव तक जानना
सयोगी जीव ( बहुवचन ) सर्व सयोगी जीव अनादि काल से विवेचन करने पर काल की अपेक्षा से सप्रदेशी - अप्रदेशी के निम्नलिखित छः भंग होते हैं—
काल की अपेक्षा से सयोगी जीव है ।
नियमतः सप्रदेशी होते हैं क्योंकि दंडक में जीवों का बहुवचन से
(१) सर्व सप्रदेशी, अथवा ( २ ) सर्व अप्रदेशी, अथवा (३) एक सप्रदेशी, एक अप्रदेशी, अथवा (४) एक सप्रदेशी, अनेक अप्रदेशी, अथवा (५) अनेक सप्रदेशी. एक अप्रदेशी, अथवा (६) अनेक अप्रदेशी, अनेक सप्रदेशी ।
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