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.२.१ अनुत्तरौपातिक देव और मनोद्रव्य पुद्गलों का ग्रहण
(भगवं महावीरे x x x मे गोयमा ।)
इओ चुया दो वि तुल्ला एगट्ठा अविसेसमणागत्ता भविस्सामो।x xx जहा णं वयं एयम? जाणामो पासामो तहा अणुतरोववाइयावि देवा एयमट्ठ जाणंति पासंति।
से केण?ण जाव पासंति ? गोयमा ! अणुत्तरोववाइयाणं अणंताओ मणोदव्वं वग्गणाओ लद्धाओ पत्ताओ अभिसमण्णागयाओ।
-भ० श १४ । उ ७ । सू १, २ श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने कहा-हे गौतम ! इस भव में मृत्यु के पश्चात् इस शरीर के छ ट जाने पर अपन दोनों तुल्य और एकार्थ विशेषता रहित और किसी प्रकार के भेदभाव रहित हो जावेंगे ।
हे भगवन् ? जिस प्रकार अपन दोनों पूर्वोक्त भाव से जानते देखते हैं तो क्या अनुत्तरौपातिक देव भी इस अर्थ को इसी प्रकार जानते-देखते हैं ।
हां गौतम ! क्योंकि अनुत्तरोपपातिक देवों को अवधि ज्ञान की लब्धि से मनोद्रव्य की अनंत वर्गणाएं ज्ञेय रूप से उपलब्ध है, प्राप्त है, अभिसमन्वागत हुई है।
नोट-अनुत्तरपौपातिक देव विशिष्ट अवधि ज्ञान के द्वारा मनो द्रव्य ( मनो द्रव्य योग ) वर्गणाओं को जानते-देखते हैं। अयोगी अवस्था में अपन दोनों को निर्वाण गमनका निश्चय करते हैं।
'३ सयोगो जीव और बोधि
१ सम्यग दर्शन में अनुरक्त, निदान रहित, ( शुभ योग, प्रशस्त अध्यवसाय ) तथा शुक्ल लेश्या में अवगाढ़ होकर जो जीव मरते हैं वे परभव में सुलभ बोधि होते हैं ।
.२ इसके विपरीत मिथ्या दर्शन में रत, निदान सहित (अशुभ योग, अप्रशस्त अध्यवसाय,) कृष्ण लेश्या में अवगाढ़ होकर जो जीव मरते हैं वे परभव में दुर्लभ बोधि होते हैं।
-उत्त० स ३६ । गा २५७, २५८
नोट-जहाँ तेजो-पद्म तथा शुक्ल लेश्या है वहाँ प्रशस्त अध्यवसाय तथा शुभ योग अवश्य होंगे जहाँ कृष्ण लेश्या-नील-कापोत लेश्या है वहाँ प्रशस्त अध्यवसाय हो सकते हैं तथा अशुभ योग अवश्य होंगे। मनुष्य तिर्यंच पंचेन्द्रिय सम्यग दर्शनी जीव शुक्ल लेशी यदि होता तो किसी एक देवलोक का वह वैमानिक देव का छ8 से सर्वार्थ सिद्ध देव का
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