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( १८८ ) बादर तेउकाय में औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-तीन योग होते हैं । (देखो पाठ .१३.०४) १४.०४.०१ अपर्याप्त बादर तेउकाय में
xxxबादरतेउकाइयाणं तेसिं चेव पजत्तापजत्ताणं च x x x बादरआउकाइयाणं तेसिं चेव पज्जत्तापज्जत्ताणं x x x भंगो।
-- षट • खं १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६११ अपर्याप्त बादर तेउकाय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-दो योग होते हैं । (देखो पाठ .१३.०४.०१) १४.०४.०२ पर्याप्त बादर तेउकाय में
xxxबादरतेउकाइयाणं तेसिं चेव पज्जत्तापज्जत्ताणं चxxx बादराउकाइयाणं तेसिं चेव पज्जत्तापज्जत्ताणं x x x भंगो।
___-षट • खण्ड १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१० पर्याप्त बादर तेउकाय में एक औदारिक काययोग होता है। (देखो पाठ .१३.०४.०२) १४.०४.०३ लब्धि-अपर्याप्त बादर तेउकाय में
xxx बादरतेउलद्धिअपजत्ताणं x x x बादरआउकाइयलद्धिअपजत्ताणंxxx भंगो। ___ -षट् • खं० १, १ । टीका । पृ २ । पृ० ६१०
लब्धि अपर्याप्त बादर तेउकाय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-दो योग होते हैं । (देखो पाठ .१३.०४.०३) १४.०४.०४ निर्वृत्तिपर्याप्त बादर तेउकाय में
xx x पज्जत्त-णामकम्मोदयतेउकाइयाणं तेसिं चेव पज्जत्तापज्जत्ताणं xxx पज्जत्तणामकम्मोदयआउकाइयाणं तेसिं चेव पज्जत्तापज्जत्ताणं x x x भंगो।
-षट • खं १, १ । टीका । पृ २ । पृ० ६१० औधिक निवृत्तिपर्याप्त बादर तेउकाय में औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-तीन योग होते हैं।
इनके अपर्याप्त काल में औदारिकमिश्र और कार्मण काय-दो योग होते हैं। इनके पर्याप्त काल में एक औदारिक काययोग होता है । (देखो पाठ .१३.०४.०४)
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