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( १८६ ) .१५ वायुकाय में वाउकाइयाणं तेउ-भंगो।xxx
-षट • खं० १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६११ वायुकाय के जीवों में तीन योग होते हैं । (१) औदारिक काययोग, (२) औदारिकमिश्र काययोग और (३) कार्मण काययोग।
नोट-आगम साहित्य में पाँच योग का उल्लेख मिलता है। ३+२ (वैक्रिय काययोग, वेक्रिय मिश्रकाययोग)= ५ '१५.०१ अपर्याप्त वायुकाय में
पाउकाइयाणं तेउ-भंगो। ~षट० खं १, १ । टीका । पृ २ । पृ० ६११
अपर्याप्त वायुकाय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-दो योग होते हैं । १५.०२ पर्याप्त वायुकाय में
वाउकाइयाणं तेउ-भंगो। -षट० खं १, १ । टीका । पु० २ पृ० ६११
पर्याप्त वायुकाय में एक औदारिक काययोग होता है । १५.०३ सूक्ष्म वायुकाय में
सुड्डमवाऊणं सुहुमतेउ-भंगो। -षद् खं १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१२
सूक्ष्म वायुकाय में औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-तीन योग होते हैं । (देखो पाठ .१४.०३) १५.०३.०१ अपर्याप्त सूक्ष्म वायुकाय में
सुहुमवाऊणं सुहुमतेउ-भंगो। --षट • खं १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१२
अपर्याप्त सूक्ष्म वायुकाय में औदारिकमिश्र और कार्मणकाय-दो योग होते हैं । १५.०३.०२ पर्याप्त सूक्ष्म वायुकाय में
सुहुमवाऊणं सुहुमतेउ-भंगो। - षट् • खं १, १ । टीका । पु २ । पृ• ६१२
पर्याप्त सूक्ष्म वायुकाय में एक औदारिक काययोग होता है । १५.०३.०३ लब्धि-अपर्याप्त सूक्ष्म वायुकाय में
मुटुमवाऊणं सुहुमतेउ-भंगो। -षट् ० खं १, १ । टीका । पु २ । पृ० ६१२
लब्धि-अपर्याप्त सूक्ष्म वायुकाय में औदादिकमिश्न और कार्मणकाय-दो योग होते हैं।
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