________________
प्रकाशकीय
स्वर्गीय मोहनलालजी बाँठिया ने, अपने अनुभवों से प्रेरित होकर, एक जैन विषय कोश की परिकल्पना प्रस्तुत की तथा श्रीचंदजी चोरड़िया के सहयोग से प्रमुख आगम ग्रन्थों का मंथन करके, एक विषय सूची प्रणीत की। फिर उस विषय सूची के आधार पर जैन आगमों से विषयानुसार पाठ संकलन करने प्रारम्भ किये। यह संकलन उन्होंने प्रकाशित आगमों की प्रतियों से कतरन विधि से किया । इस प्रकार प्रायः १००० विषयों पर पाठ संकलित हो चुके हैं ।
सर्व प्रथम 'लेश्या कोश' नामक पुस्तक स्वयं ही ई० सन् १६६६ में प्रकाशित की। जैन दर्शन और वाङ्मय के अध्ययन के लिए जिस रूप में लेश्या कोश को अपरिहार्य बताया गया है और पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षा के रूप में जिस तरह से मुक्त कंठ से प्रशंसा की गयी है, यही उसकी उपयोगिता तथा सार्वजनीनता को आलोकित करने में सक्षम है।
सम्पादकों के जैनागम एवं वाङ्मय के तलस्पर्शी गम्भीर अध्ययन द्वारा प्रसूत कोश परिकल्पना को क्रियान्वित करने तथा उनके सत्कर्म और अध्यवसाय के प्रतिसमुचित सम्मान प्रकट करने की पुनीत भावनावश जैन दर्शन की संस्थापना महावीर जयन्ती ई० १६६६ के दिन की गई थी । इस संस्था के द्वारा सन् १६६६ में क्रिया कोश प्रकाशित किया ।
इसके बाद सम्पादकों ने पुद्गल कोश, ध्यान कोश, संयुक्त लेश्या कोश आदि का कार्य भी पूर्ण किया जो अभी प्रकाशित नहीं हुए है ।
जैन दर्शन समिति द्वारा श्री बाँठिया ने अपने के सहयोग से वर्धमान जीवन कोश का संकलन कर उनका आकस्मिक स्वर्गवास हो गया । बाँठिया जी के बहुत बड़ा धक्का लगा। श्रीचन्दजी चोरड़िया अपने धुनके के बाद मिथ्यात्व का आध्यात्मिक विकास जो कोश की में प्रकाशित हुआ । वर्धमान जीवन कोश, प्रथम खण्ड सन् द्वितीय खण्ड सन् १६८४ में तथा वर्धमान जीवन कोश तृतीय प्रकाशित हुआ ।
जीवनकाल में श्रीचन्दजी चोरड़िया लिया था । परन्तु २३-६-१९७६ में स्वर्गवास पर जैन दर्शन समिति को
पक्के व्यक्ति है । उनके स्वर्गवास कोटि का ग्रन्थ का सन् १६७७ १६८० में, वर्धमान जीवन कोश, खण्ड सन् १६८८ में
प्रस्तुत कोश, विद्वद् वर्ग द्वारा जितना समादत हुआ । तथा जैन दर्शन और वाङ्मय के अध्ययन के लिए जिस रूप में इसे अपरिहार्य बताया गया और पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षा के रूप जिस तरह मुक्त कंठ से प्रशंसा की गई, यही उसकी उपयोगिता तथा सार्वज, निता को आलोकित करने में सक्षम है ।
Jain Education International
इसी प्रयास स्वरूप योग कोश (प्रथम खंड ) आपके समक्ष प्रस्तुत है । जैन दर्शन समितिने कोश प्रकाशनकी योजनाको किसी तरह की लाभवृत्ति या उपार्जनके लिए हाथ में नहीं लिया है अपितु इसका पावन उद्देश्य एक अभाव की पूर्ति करना, अर्हत प्रवचन की प्रभावना करना तथा जैन दर्शन और वाङ्मय का प्रचार-प्रसार करना तथा इसके गहन गम्भीर तत्वज्ञान के प्रति सर्वसाधारण को आकृष्ट करना और इस तरह समाज की सेवा करना ही है ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org