________________
( 12 )
प्राचीन भारतीय दर्शनों का तलस्पर्शी अध्ययन कर स्व० मोहनलाजी बाँठिया व श्रीचन्द चोरड़िया ने पांडुलिपि तैयार की। जिसको हमने सुरक्षित रखा है ।
इस समिति में भारतीय दर्शन में रुचि लेने वाले सभी सज्जन सदस्य हो सकते हैं । संस्था में दो सदस्य श्रेणी है
(१) आजीवन संरक्षक सदस्य -- जिसकी सदस्यता फीस १००१) है । उन्हें संस्था द्वारा प्रकाशित साहित्य बिना मूल्य सप्रेम भेंट किया जाता है ।
(२) आजीवन साधारण सदस्य जिसकी सदस्यता फीस १०१) है । सदस्य व्यक्तिगत रूप से ही लिये जाते हैं ।
माननीय जोधपुर निवासी श्री जबरमलजी भंडारी इस संस्था के सहयोगी और शुभचिन्तक है। उनके समय-समय पर अभूतपूर्व सुझाव मिलते रहे हैं । कोशों के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग भरभर रहा है 1
योग कोश की गतिविधि में फतेहचन्द चैनरूप भंसाली तथा भगवतीलाल तिसोदिया इष्ट, जोधपुर का सहयोग रहा है ।
संयुक्त लेश्या कोश, पुद्गल कोश, ध्यान कोश भी तैयार हुए है । परिभाषा कोष अधूरा है यथा समय पूरा करने की योजना है।
हमारी संस्था अबतक विद्वद् योग्य सामग्री तैयार करती रही है । जनप्रिय बनाने के लिए सरल भाषा में छोटी-छोटी पुस्तकें तैयार कराकर की योजना है । और संभव हो तो उन्हें निःशुल्क वितरण किया जाये |
I
अस्तु स्व० मोहनलालजी बाँठिया इस संस्था के संस्थापक ही नहीं थे, प्राण थे वे श्रीचन्द्रजी चोरड़िया के सहयोग से इतने कोशों की रूप देखा तैयार करके छोड़ गये हैं कि कई विद्वान वर्षों तक कार्य करें तो भी समाप्त न हो। ऐसे मनीषि की स्मृति में ठोस कार्य होना ही चाहिए ।
मेरे साथी बर्तमान मंत्री पद्मचन्दजी नाहटा व नवरतनमलजी सुराना का अभूतपूर्व सहयोग रहा है ।
अतः संस्था को प्रकाशित करने
इस संस्था का पावन उद्देश्य जैन दर्शन व भारतीय दर्शन को उजागर करना है जिससे मानव ज्ञान रश्मियों से अपने अज्ञान अंधकार को मिटा सके ।
इस संस्था द्वारा प्रकाशित साहित्य सस्ते दामों में वितरण कर अधिक से अधिक प्रचार हो -- यही इसका उद्देश्य है । इस पुनीत कार्य में सबका सहयोग अपेक्षित है
कलकत्ता
६-१०-१६६३
Jain Education International
भवदीय
अभयसिंह सुराना, जध्यक्ष जैन दर्शन समिति
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org