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उच्चकोटि का प्रतिभावान विद्वान् भी होना आवश्यक है, पं० जी मूलाधार हैं।
३. स्व० श्री छोटेलाल जी जैनग्रन्थ के संकलन, सम्पादन के कार्य में कुछ प्रारम्भिक कठिनाइयां उत्पन्न : हो गई थीं, जिनको स्व० श्री छोटेलाल जी ने सुलझाया तथा ग्रन्थ की रचना को गति प्रदान की । श्रन्यथा एक स्थिति पर लाकर तो कार्य प्रायः बिल्कुल ही रुक गया था ।
२. पं. बालचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीस्व. मुख्तार साहब के पश्चात् ग्रन्थ का व्यवस्थित सम्पादन कर उसे पूर्ण करा देने के लिए उपयुक्त विद्वान् के खोजने में संस्था को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा । अन्तत: इसे मैं 'वीर सेवा मन्दिर' व इस ग्रन्थ का सौभाग्य ही मानता हूं कि पं० बालचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री ने ग्रन्थ के सम्पादन के भार को उठाना स्वीकार कर लिया - और तदनुसार कार्य को पूर्ण करने के लिए सबके आग्रह पर स्वास्थ्य की शिथिलता व अवस्थागत कठिनाइयों के बावजूद वे तैयार हो गये। जिन कठिनाइयों का प्रथम भाग के सम्पादकीय में उल्लेख किया गया है और जिनको कुछ पिछले कई वर्षों में मैंने देखा और समझा है उस आधार पर यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण न होगा कि इस श्रम व समय-साध्य तथा कठिन ग्रन्थ की रचना के, जिसके लिए एक
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