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सद्भाव पर्याय ]
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स्वर्गादि अभ्युदय और मुक्ति के साधनभूत धर्म से सम्बद्ध कथा को सद्धर्मकथा माना गया है । सद्भावपर्याय - सद्भावषर्याय निमित्तेनादेशेनापितमात्मरूपद्रव्यमित्येव सद्रव्यत्वमेव हि सद्भावपर्याय: । ( त. भा. सिद्ध. वृ. ५ – ३१, पृ. ४१४) । सद्भावपर्यायनिमित्तक श्रादेश से विवक्षित श्रात्मरूप द्रव्य है, उसके द्रव्यत्व को ही सद्भावपर्याय कहा जाता है सद्भावमार्गणा - यत्र च कल्पे स्थितो वर्त्तते तत्र सद्भावतः । उक्तं च-खेत्ते दुहेह मग्गण जम्मणतो चैव संतिभावे य । जम्मणतो जहि जातो संतो भावो य जहि कप्पे ॥ (श्राव. नि. मलय वृ. ११४) । जिस कल्प में परिहारविशुद्धिक संयत स्थित है उसमें जो अन्वेषण किया जाता है, इसका नाम सद्भावतः क्षेत्रमार्गणा है । सद्भाव स्थापना - १. तदाकारवती सद्भावस्थापना । (अनुयो. हरि. वृ. पृ. ७) । २. अध्यारोप्यमाणेण मुख्येन्द्रादिना समाना सद्भावस्थापना | ( न्यायकु. ७६, पृ. ८०५) । ३. सायारवंतवत्थुम्मि जं गुणारोवणं पढमा || ( वसु श्रा. ३८३ ) । ४. मुख्यद्रव्याकृतिः सद्भावस्थापना श्रहंत्प्रतिमादिः । ( लघीय. अभय वृ. ७६, पृ. ६८ ) ।
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१ जिसकी स्थापना करना प्रभीष्ट है उसके श्राकार वाली स्थापना सद्भावस्थापना कही जाती है । २ जिस मुख्य इन्द्र श्रादि का अध्यारोपण किया जा रहा है उससे श्राकार में समानता रखने वाली स्थापना को सद्भाव स्थापना कहते हैं । सद्भावस्थापनाजिन – जिणायारसंठियं दव्वं सभाववणजिणो । ( धव. पु. 8, पृ. ६) । जिनदेव के श्राकार में स्थित द्रव्य ( पाषाण श्रादि ) को सद्भावस्थापनाजिन कहते हैं। सद्भावस्थापनान्तर— भरह- बाहुवलीणमंतर मुव्वेल्लंतो णदो सब्भावठवणंतरं । ( धव. पु. ५, पृ. २) । भरत और बाहुबली के मध्य उठता हुआ नद सद्भाव स्थापनान्तरस्वरूप है । सद्भावस्थापनापूजा - क्रियते यद्गुणारोपः साsser कास्तुनि ॥ ( धर्मसं. श्री. ६ - ८८ ) । ताकार वस्तु में (मूर्ति प्रादि में ) जो गुणों का प्रारोप किया जाता है, इसे सद्भावस्थापनापूजा कहते हैं ।
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[सद्वेदनीय
सद्भावस्थापनाबन्ध - एदेसु कम्मेसु ( कटुकम्मादिसु ) जहासरूवेण विदबंधो सम्भावदुवणबंधो णाम । ( धव. पु. १४, पृ. ६) ।
इन काष्ठकर्म आदि में स्वरूप के अनुसार बन्ध की स्थापना की जाती है उसका नाम सद्भाव स्थापनाबन्ध है ।
१०८७, जैन - लक्षणावली
सद्भावस्थापनाभाव - विराग सरागादिभावे श्रणुहरंती ठवणा सम्भावठवणाभावो । ( धव. पु. ५, पृ. १८३ ) ।
राग रहित और राग सहित भावों का अनुसरण करने वाली स्थापना को सद्भावस्थापनाभाव कहते हैं ।
सद्भावस्थापनावेदना - पाएण श्रणुहरं तदव्व भेदेण इच्छिददन्ववणा सब्भावदूवणवेयणा | घव. पु. १०, पृ. ७) ।
प्रायः अनुसरण करने वाले द्रव्य के भेद से इच्छित द्रव्य में जो वेदना की स्थापना की जाती है उसे सद्भावस्थापनावेदना कहते हैं । सद्भावस्थापनाव्रत - हिंसादिनिवृत्तिपरिणामवत श्रात्मनः शरीरस्य बंधं प्रत्येकत्वात् प्राकार: सामायिके परिणतस्य सद्भावस्थापनाव्रतम् ॥ ( भ. प्रा. ११८५) ।
हिंसा आदि से निवृत्तिरूप परिणाम से युक्त श्रात्मा शरीर के बन्ध के प्रति एक है, इसलिए सामायिक में परिणत उसका प्राकार सद्भावस्थापनाव्रत है । सद्भूतानिषेधवचनं - देखो सम्भूतार्थनिषेध
वचन ।
सदनीय - १ यदुदयाद् देवादिगतिषु शारीरमानस सुखप्राप्तिस्तत् सद्वेद्यम् । ( स. सि. ८-८ त. इलो. ८-८; भ. प्रा. मूला. २१२१) । २. यस्योदयाद्देवादिगतिषु शारीर मानससुखप्राप्तिस्तत्सद्वेद्यम् । देवादिषु गतिषु बहुप्रकारजातिविशिष्टासु यस्योदयात् श्रनुगृहीत - सम्बन्धापेक्षात् प्राणिनां शारीर मानसानेकविधसुखपरिणामस्तत्सद्वेद्यम्, प्रशस्तं वेद्यं सवेद्यम् । (त. वा. ८, ८, १) । ३. श्रभिमतमिष्टमात्मन: कर्तुरुप भोवतुर्मनुज देवादिजन्मसु शरीरमनोद्वारेण सुख परिणतिरूपमागन्तुकानेकमनोज्ञद्रव्य-क्षेत्र-काल-भावसम्बन्धसमासादितपरिपाकावस्थमति बहुभेदं यदुदयाद्भवति तदाचक्षते सद्वेदनीयम् । ( त. भा. हरि वृ. ८-९ ) । ४. श्राह्लादरूपेण
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