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विक्षेपणी कथा]
६ ) ; विविधकरणं विक्रिया । (त. वा. २,४७, ४) । २. प्रणिमादिविक्रिया, तद्योगात् पुद्गलाश्च विक्रियेति भण्यन्ते । ( धव. पु. १, पु. २६२ ) । ३. विक्रिया विकार:, पूर्वाकारपरित्यागाऽजहद्वृत्तोत्तराकारगमनम् । x x x विविधा नानाप्रकारा क्रिया कार्यकारणं सा ( विक्रिया ) | ( न्यायकु. २-६, पृ. ३९६ ) । ४. सतो भावस्यान्तरावाप्तिविक्रिया । ( प्राप्तमी. बसु. वृ. ३७) ।
१ प्रणिमा-महिमावि भ्राठ गुणों के सामर्थ्य से एक व श्रनेक तथा छोटा व बड़ा इत्यादि अनेक प्रकार के जो रूप ग्रहण किए जाते हैं, इसका नाम विक्रिया है ।
विक्षेपणी कथा - १. ससमय परसमयगदा कथा दु विवदेवणी नाम । (भ. प्रा. ६५६ ) २. कहिऊण ससमयं तो कहेइ परसमयमह विवच्चासा । मिच्छासम्मावार एमेव हवंति दो भेया ॥ जा ससमयवज्जा खलु होइ कहा लोग वेयसंजुत्ता । परसमयाणं च कहा एसा विक्खेवणी णाम । जा ससमएण पुव्वि अक्खाया तं छुभेज्ज परसमए । परसासणवक्खेवा परस्स समयं परिकहेइ ।। ( दशवं. नि. १६६-६८ ) । ३. विक्खेवणी णाम परसमएण ससमयं दूसंती पच्छा दिगंतर सुद्धि करेंती ससमयं यावंती छद्दव्व णवपयत्थे परूवेदि । XX X उक्तं च - XX X विक्षेपण तत्त्वदिगन्तशुद्धिम् । ( धव. पु. १, पृ. १०५ व १०६) । ४. या कथा स्वसमयं परसमयं वाश्रित्य प्रवृत्ता सा विक्षेपणी अण्यते - सर्वथा नित्यं सर्वथा क्षणिकम् एकमेवानेकमेव वा सदेव [ प्रसदेव ] विज्ञानमात्रं वा शून्यमेवेत्यादिकं परसमयं पूर्वपक्षीकृत्य प्रत्यक्षानुमानेन आगमेन च विरोधं प्रदर्श्य कथंचित्रित्यं कथंचिदनित्यं कथंचिदेकं कथंचिदने कम् इत्यादिस्वसमय निरूपणा च विक्षेपणी । (भ. प्रा. विजयो. ६५६ ) । ५. XXX विक्षेपणीं कुमतनिग्रहण यथार्हम् । (न. ध. ७-८८) ६ प्रमाणनयात्मकयुक्तियुक्तहेतुवादबलेन सर्वथैकान्तादिपरसमयार्थनिराकरणरूपा विक्षेपणी कथा । (गो. जी. म. प्र. व जी प्र. ३५७ ) ७. पंचत्थिकाय कहणं वक्खाणिज्जइ सहावदो जत्थ । विक्खेवणी वि य कहा कहिज्जइ जत्थ भव्वाणं । पच्चक्खं च परोक्खं माणं दुविहं णया परे दुबिहा । परसमयवादखेवो करिज्जई वित्रा जत्थ ॥ दंसण णाण चरितं धम्मो तित्थयर
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६६७, जैन - लक्षणावलो
[विग्रहगति देवदेवस्स । तम्हा पभावतेश्रो वीरियवम [र] णाणसुहआदि || ( अंगण. १, ६१-६३, पृ. २६९ ) । १ स्वमत और परमत के श्राश्रयसे जो चर्चा की जाती है उसका नाम विक्षेपणी कथा है । २ प्रथमतः स्वमत को कहकर पश्चात् जो परमत का कथन किया जाता है, इसके बिपरीत प्रथमतः परमत को दिखला कर फिर अपने मत को जो प्रगट किया जाता है; इसी प्रकार मिथ्यावाद को पूर्व में कह कर फिर जो सम्यग्वाद को तथा इसके विपरीत पूर्व में सम्यग्वाद को कहकर फिर जो मिथ्यावाद का कथन किया जाता है, इस सबको विक्षेपणी कथा कहा जाता है । इस प्रकार उक्त कथा के चार भेद हो जाते हैं । स्वमत को छोड़कर जो लोक (भारत व रामायण प्रावि ) और वेद (ऋग्वेद प्रादि) से संयुक्त सांख्य एवं बौद्ध आदि परसमयों की चर्चा की जाती है उसका नाम भी विक्षेपणी कथा है । स्वमत के द्वारा जो पूर्व में कथा की गई है उसका परसमय में दोषोद्भावन करते हुए क्षेपण करना चाहिए । प्रथवा परमत के द्वारा व्याक्षेप के होने पर-श्रोता के सन्मार्ग के श्रभिमुख होने पर - परमत का भी कथन किया जाता है । 'विक्षिप्यते श्रनया सन्मार्गात् कुमार्गे कुमार्गाद् वा सन्मार्गे श्रोता इति विक्षेपणी' प्रर्थात् जिसके श्राश्रय से श्रोता सन्मार्ग से कुमार्ग में अथवा कुमार्ग से सन्मार्ग में फेंका जाता है उसका नाम विक्षेपणी कथा है। इस निरुक्ति के अनुसार उसका 'विक्षेपणी कथा' यह सार्थक नाम है ।
विग्रह - १. अपराधो विग्रहः । (नीतिवा. २८-४४, पृ. ३२४) । २. यदा यस्य विजगीषोः कोऽप्यपराधं करोति तदा विग्रहः स्यात् । (नीतिवा. टी. २८, ४४) ।
विजय को इच्छा रखने वाले का जब कोई अपराध करता है तब विग्रह होता है । सन्धि श्रादि षाड्गुण्य में यह दूसरा है ।
विग्रहगति - १. विग्रहो देहः, विग्रहार्थी गतिविग्रहगतिः । अथवा विरुद्धो ग्रहो विग्रहः व्याघातः, कर्मादानेऽपि नोकर्म पुद्गलादाननिरोध इत्यर्थः । विग्रहेण गतिः विग्रहगतिः । ( स. सि. २-२५) । २. विग्रहो देहस्तदर्था गतिविग्रहगतिः । श्रदारिकादिशरीरनामोदयात्तन्निवृत्तिसमर्थान् विविधान्
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