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________________ प्रकाशकीय और अनुसन्धान के कार्य में लगे रहे। 'भारतीय ज्ञानपीठ' द्वारा प्रकाशित उनका अन्तिम ग्रन्थ 'योगसारप्राभृत उनकी विद्वत्ता का उन्नत सुमेरु है । 'वीर-सेवा-मन्दिर' उनका मूर्तिमान् कीर्तिस्तंभ है । बाबू छोटेलाल सरावगी : 'वीर-सेवा-मन्दिर' को सदढ आधार देने और सप्रतिष्ठित करने में कलकत्ता निवासी स्व. बाब छोटेलाल सरावगी का विशेष योगदान रहा है। वह मुख्तार साहब के प्रति गहरी आत्मीयता रखते थे। 'वीर-सेवा-मन्दिर' को सरसावा से दिल्ली लाने तथा यहां विशाल भवन निर्माण कराने में उनका अनन्य हाथ रहा। वे प्रारम्भ से ही ग्राजीवन संस्था के अध्यक्ष रहे तथा तन-मन-धन से इसके विकास के लिए प्रयत्नशील रहे। वास्तव में वे 'वीर सेवा मन्दिर' के प्राण थे । छोटेलाल जी सत्प्रवत्तियों के धनी, अध्ययनशील तथा उदारचेता व्यक्ति थे। जैन साहित्य और संस्कृति के विकास के लिए वे निरन्तर प्रयत्नशील रहते थे। जैन-दर्शन, इतिहास, कला और पुरातत्त्व के अनुसन्धान कार्य में उनकी बड़ी रुचि थी। इन विषयों के अनुसन्धान के लिए वे कल्पवृक्ष थे। रायल एशियाटिक सोसाइटी के वे एक सम्मानित सदस्य थे। डा. एम. विन्टरनित्ज ने अपने ग्रन्थ 'हिस्ट्री प्राव इण्डियन लिटरेचर' भाग २ में छोटेलाल जी का बड़े अादर के साथ उल्लेख किया है। यदि छोटेलाल जी का सहयोग प्राप्त न हया होता तो संभवतया डा. विन्टरनित्ज अपने इतिहास-ग्रन्थ में जैन साहित्य का इतना विशाल और गंभीर सर्वेक्षण प्रस्तुत न कर पाते । छोटेलाल जी का विद्वत्समाज से अत्यन्त निकट का संबंध था। जैन ही नहीं, इतिहास और पुरातत्त्व के क्षेत्र में कार्य करने वाले भारतीय तथा विदेशी विद्वानों से उनकी बड़ी मित्रता थी। खंडगिरि और उदयगिरि उन्हीं की पुरातात्त्विक खोज के परिणामस्वरूप प्रकाश में आये । 'जैन विबलियोग्राफी' उनका अमर कीर्तिस्तम्भ है । पुरातत्त्व एवं इतिहास के प्रेमी होने के साथ-साथ छोटेलाल जी एक सफल समाजसेवी एवं नेता भी थे। वे समाज की विभिन्न संस्थानों तथा गतिविधियों में बरावर सक्रिय सहयोग देते रहे। . .'वीर सेवा मन्दिर' के उक्त दोनों ही प्राधार-स्तंभ अब नहीं रहे, फिर भी उनके कृतित्व के रूप में उनकी कीति अमर है । अनुसन्धान के क्षेत्र में उनका स्मरण सदा गौरव के साथ किया जाता रहेगा। ...... आभार: वीर सेवामन्दिर के साथ साहू शान्तिप्रसाद जी का नाम अभिन्न रूप में जड़ा हया है। वह न केवल अनेक वर्षों से उसके अध्यक्ष हैं, अपितु उसकी अभिवृद्धि में सक्रिय योगदान देते रहते हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन में उनकी प्रारम्भ से ही गहरी दिलचस्पी रही है। इस अवसर पर हम उनका विशेष रूप से प्राभार मानते हैं। "जैन लक्षणावली" या पारिभाषिक शब्द-कोश : 'जैन लक्षणावली' के प्रकाशन की कल्पना मुख्तार साहब ने सन् १९३२ में की थी। जैन वाङमय में अनेक शब्दों का कुछ विशेष अर्थों में प्रयोग किया गया है। यह अर्थ उनके प्रचलित अर्थ से भिन्न है। प्रतएव जैन वाङ्मय के सामान्य अध्येता के लिए सहज रूप में उनको समझ पाना कठिन है। मख्तार कल्पना थी कि दिगम्बर-श्वेताम्बर जैन साहित्य के सभी प्रमुख ग्रन्थों से इस प्रकार के शब्द जसकी परिभाषानों के साथ संकलित करके, हिन्दी अनुवाद के साथ, पारिभाषिक कोश तैयार किया जाय। इस कल्पना के अनुसार लगभग चार सौ ग्रन्थों से शब्द और उनकी परिभाषायें संकलित की गई। इस प्रकार के कार्य प्रायः नीरस लगने वाले तथा श्रम और समय साध्य होते हैं। परी 'लक्षणावली' का प्रकाशन तीन भागों में होगा। हर्ष है कि तीसरे भाग का भी मुद्रण प्रारम्भ हो गया है। आशा है, इस महायज्ञ की पूर्णाहुति शीघ्र सम्भव होगी। ----महासचिव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016022
Book TitleJain Lakshanavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages452
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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