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अन्तःशल्यमरण] ८६, जैन-लक्षणावली
[अन्यता शल्यमपराधपदं यस्य सोऽन्तःशल्यो लज्जाभिमाना- १ अकार्यरत पुरुष को अन्ध कहते हैं। दिभिरनालोचितातीचारः । (समवा. अभय. वृ. सू. अन्न-पाननिरोध-१. गवादीनां क्षुत्पिपासाबाघा१७, पृ. ३२)।
करणमन्न-पाननिरोधः । (स. सि. ७-२५; त. वा. जिसके अन्तःकरण में अपराधपद कांटे के समान ७, २५, ५; त. श्लो. ७-२५)। २. अन्न-पाननिचभ रहा है पर लज्जा व अभिमानादि के कारण रोधस्तु क्षबाधादिकरोऽङ्गिनाम् । (ह. पु. ५८, जो दोष की आलोचना नहीं करता है, ऐसे साधु को १६५) । ३. तेषां गवादीनां कूतश्चित्कारणात् अन्तःशल्य कहते हैं।
क्षुत्पिपासाबाधोत्पादनमन्न-पाननिरोधः । (चा. सा. अन्तःशल्यमरण--तस्य(अन्तःशल्यस्य)मरणमन्त:- पृ. ५)। ४. अन्न-पानयोः भोजनोदकयोनिरोधः शल्यमरणम् । (समवा. अभय. व. सू. १७, पृ. ३२)। व्यवच्छेदः अन्न-पाननिरोधः । (धर्मबि.मु. वृ. ३-२३)। अन्तःशल्य-अपराध की आलोचना न करने वाले- ५. अन्नं च पानं चान्नपाने, तयोनिरोधः, गवादीनां का जो मरण होता है उसे अन्तःशल्यमरण कहते हैं। कुतश्चित्कारणात् क्षुत्पिपासाबाधोत्पादनमित्यर्थः । अन्तःशुद्धि-ममेदमहमस्येति संकल्पो जायते न (त. सुखबो. ७-२५)। ६. गो-महिषी-बलीवर्दचेत् । चेतनेतरभावेषु सान्तःशुद्धिजिनोदिता ।। (धर्म- वाजि-गज-महिष-मानव-शकुन्तादीनां क्षुत्तृष्णादिपीसं. श्रा. ७-४८)।
डोत्पादनमन्न-पाननिरोधः । (त. वृ. श्रुत.७-२५% 'यह मेरा है और मैं इसका हूँ' इस प्रकारका संकल्प कातिके. टी. ३३२)। ७. नराणां गो-महिष्यादियदि चेतन या अचेतन पदार्थों में न हो तो इसे तिरश्चां वा प्रमादतः । तृणाद्यन्नादिपानानां निरोधो अन्तःशुद्धि कहा जाता है।
व्रतदोषकृत् ।। (लाटीसं. ५-२७१)। अन्तःस्थ वर्ण-अन्तः स्पर्शोष्मणोवर्णयोर्मध्ये तिष्ठ- १ गाय-भैस आदि प्राणियों के खाने-पीनेके समय पर न्तीति अन्तस्था: य-र-ल-ववर्णाः । ते हि कादि-माव- उन्हें भोजन-पान न देना, यह अन्न-पाननिरोध नामक सानस्पर्शानां श-ष-स-हरूपोष्मणां च मध्यस्थाः । अहिंसाणुव्रत का प्रतीचार है। (अभि. रा. भा. १, पृ. ६३)।
अन्नप्राशन-१. गते मासपृथक्त्वे च जन्माद्यस्य क से लेकर म पर्यन्त स्पर्श नाम वाले तथा श, ष, यथाक्रमम् । अन्नप्राशनमाम्नातं पूजाविधिपुरस्सरम् ।। स और ह इन ऊष्म नाम वाले वर्गों के मध्य में जो (म. पु. ३८-९५)। २. नवान्नप्राशनं श्रेष्ठं शिशूय, र, ल, व वर्ण अवस्थित हैं; वे अन्तःस्थ कहे नामन्नभोजनम् । (प्रा. दि. पृ. १६-उद्धृत)। जाते हैं।
जन्म के तीन मास से लेकर नौ मास के भीतर अन्त्य सूक्ष्म-अन्त्यं परमाणूनाम् । (स. सि. ५, बालक को पूजाविधिपूर्वक अन्न खिलाना प्रारम्भ २४; त. वा. ५, २४, १०; त. वृ. श्रुत. ५-२४)। करने को अन्नप्राशन कहते हैं। परमाणुगत सूक्ष्मता को अन्य सूक्ष्म कहते हैं। अन्तशुद्धि - अन्नशुद्धिश्चतुर्दशमलरहितस्याहारस्य अन्त्य स्थूल-१. अन्त्यं जगद्व्यापिनि महास्कन्धे । यतनया शोधितस्य हस्तपुटेऽर्पणम् । (सा. ध. स्वो. (स. सि. ५-२४; त. वा. ५, २४, ११)। २. तत्र टी. ५-४५)। जगद्व्यापी महास्कन्धः अन्त्यस्थूलः । (त. वृ. श्रुत. चौदह मलोंसे रहित और प्रयत्नपूर्वक शोधित आहार ५-२४)।
को हस्त-पुट में अर्पण करना अन्नशुद्धि कहलाती है। जगद्व्यापी महास्कन्ध-गत स्थूलता को अन्त्य स्थूल अन्य (पर) गरणानुपस्थापन प्रायश्चित्त-देखो कहते हैं।
अनुपस्थापन प्रायश्चित्त । ददनन्तरोक्तान (अन्यअन्ध---१. अन्धः योऽकार्यरतः । (प्रश्नो. र. मा. मुनि-छात्राद्यपहरण-तत्प्रहरणादीन्) दोषानाचरतः १६)। २. एकं हि चक्षुरमलं सहजो विवेकस्तद्वद्धि- पर (अन्य) गणोप [गणानुप] स्थापनं प्रायश्चित्तं रेव सह संवसति द्वितीयम् । एतद्द्वयं भुवि न यस्य भवतीति । (चा. सा. पृ. ६४)। स तत्त्वतोऽन्धस्तस्यापमार्गचलने खल कोऽपराधः ।। देखो अनुपस्थापन प्रायश्चित्त । (अभि. रा. १, पृ. १०५)।
अन्यता-अन्यता सर्वद्रव्याणां परस्परं भेदपरिणाल, १२
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