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सामाण-सायत्त संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
८३५ सामाण देखो समाण = समान । - समुदाय से संबन्ध रखनेवाला। सामाण पुन [सामान] एक देव-विमान । सामुदाणिय वि [सामुदानिक] भिक्षा-संबन्धी, सामाणिअ वि [सामानिक] संनिहित, निकट- भिक्षा से लब्ध । भिक्षा, भैक्ष । वर्ती । पुं. इन्द्र के समान ऋद्धिवाले देवों सामुद्द पुं [दे इक्षु-समान तृण-विशेष । की एक जाति ।
। सामुद्द ) व [सामुद्र, क] समुद्र-सम्बन्धी, सामाय अक [श्यामाय] काला होना। सामुद्दय । सागर का । न. छन्द-विशेष । सामाय देखो सामय = श्यामाक ।
सामुद्दिअ न सामुद्रिक] शरीर पर के चिह्नों सामाय पुं. संयम-विशेष, सामायिक ।
का शुभा-शुभ फल बतलानेवाला शास्त्र । सामायारि वि [सामाचारिन्] आचरण | शरीर की रेखा आदि चिह्न । वि. सामुद्रिक करनेवाला।
शास्त्र का ज्ञाता । सामायारो स्त्री [सामाचारी] साधु का सामुयाणिय खो सामुदाणिय । आचार ।
साय देखो साइज्ज = स्वाद्, सात्मी + कु । सामास देखो सामा-स = श्यामा-श । साय देखो साग = शाक। सामासिय वि [सामासिक] समास-संबन्धी। साय न [सात] सुख । सुख का कारण-भूत सामि , वि [स्वामिन्] नायक, अधिपति ।
कर्म । एक देव-विमान । वाइ वि [°वादिन] सामिअ । ईश्वर, मालिक । स्त्री. णी। सुख-सेवन से ही सुख की उत्पत्ति माननेपु. प्रभु । राजा । भर्ता । °कुट्ठ पुं [°कुष्ठ]
वाला। °वाहण पुं [°वाहन] एक प्रसिद्ध ऐरवत वर्ष में उत्पन्न एक्कीसवें जिन-देव ।
राजा । °गारव पुंन [°गौरव] सुखदेखो साम-कोट्ठ। °त्त न [°त्व] मालकियत,
शीलता। सुख का गर्व। सुक्ख न आधिपत्य । न. नगर-विशेष ।
[°सौख्य] आतशय सुख। देखो सात = सामिअ वि [दे] दग्ध ।
सात। सामिअ वि [शमित] शान्त किया हुआ।
साय पुं [स्वाद] रस का अनुभव । सामिद्धि स्त्री [समृद्धि] अति संपत्ति । वृद्धि ।
साय न [दे] महाराष्ट्र देश का एक नगर । दूर । सामिधेय न [सामिधेय] काष्ठ-समूह ।
सायं अ [ सायम् । सन्ध्या-समय । सत्य । सामिली न [स्वामिलिन्] वत्स गोत्र की एक
"कार पुं. सत्य । सत्य-करण । 'तण वि
[°तन] सन्ध्या शाखा । पुंस्त्री. उस में उत्पन्न ।
-समय का । सामिसाल देखो सामि।
सायंदूर न [दे नगर-विशेष । सामिहेय देखो सामिधेय।
सायंदूला स्त्री दे] केतकी, केवड़े का गाछ । सामोर वि समीर-संबन्धी ।
सायकुंभ न [शातकुम्भ] सुवर्ण । वि. सुवर्ण सामुंडुअ ' [दे] बरु तृण, जिसकी कलम की |
__ का बना हुआ।
सायग पुं[सायक] बाण, तीर । सामुग्ग वि [सामुद्ग] संपुटाकारवाला। सायग वि [स्वादक] स्वाद लेनेवाला । सामुच्छेइय वि [सामुच्छेदिक] वस्तु को सायणा स्त्री [शातना] खण्डन, छेदन । एकान्त क्षणिक माननेवाला एक मत और सायणी स्त्री [शायनी, स्वापनी] मनुष्य की उसका अनुयायी।
दसवीं ९० से १०० वर्ष की दशा । सामुदाइय वि [सामुदायिक] समुदाय का, ' सायत्त वि [स्वायत्त] स्वाधीन, स्वतन्त्र ।
जाती है।
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