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समुग्घडि वि [ समुद्घाटित ] खुला हुआ । समुग्धाइअ वि [ समुद्घातित ] विनाशित । समुग्धाय पुं [समुद्घात ] कर्म-निर्जरा - विशेष जिस समय आत्मा वेदना, कषाय आदि से परिणत होता है उस समय वह अपने प्रदेशों से वेदनीय, कषाय आदि कर्मों के प्रदेशों की जो निर्जरा - विनाश करता है वह;
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संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
वैक्रिय, तैजस, आहारक और केवलिक । समुग्धायण न [समुद्घातन] विनाश | [समुद्घोषित् ] उद्घोषित ।
समु
गया हुआ ।
द्घात सात हैं - वेदना, कषाय, मरण, समुज्जोअ अक [ समुद् + द्युत् ] चमकना,
समुधाय देखो समुग्धाय । समुच्चय पुं. विशिष्ट राशि, ढग, समूह | समुच्चर सक [समुत् + चर् ] उच्चारण करना, बोलना ।
समुच्चलिअ वि [समुच्चलित ] चला हुआ । समुच्चि क [ समुत् + चि] इकट्ठा करना । समुच्चि वि[समुचित] एक क्रिया आदि में अन्वित |
समुच्छ क [ सत् + छिद्] उन्मूलन करना, उखाड़ना | दूर करना । समुच्छइ वि[समवच्छादित] सतत अच्छादिव ।
समुच्छणी स्त्री [दे] संमार्जनी |
समुच्छल अक [समुत् + शल्] उछलना, ऊपर उठना । विस्तीर्ण होना ।
समुग्घडिअ - समुत्तास
को प्रतिक्षण सर्वथा विनश्वर माननेवाला । समुज्जम अक [समुद + यम् ] प्रयत्न करना । समुज्जम पुं [ समुद्यम] समीचीन उद्यम | वि. समीचीन उद्यमवाला ।
समुच्छारण न [समुत्सारण ] दूर करना । समुच्छिवि [ दे] तोषित | समारचित ।
न. अंजलि करण, नमन ।
समुच्छिद (शौ) वि [ समुच्छ्रित] अतिउन्नत । समुच्छिन्न वि. क्षीण, विष्ट । समुच्छंगिय वि [ समुच्छ्रङ्गित ] टोच पर चढ़ा हुआ । समुच्छुगवि [समुत्सुक ] अति उत्कण्ठित । समुच्छेद पुं [समुच्छेद] सर्वथा विनाश । समुच्छेय वाइ वि [वादिन्] पदार्थ
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समुज्जल वि [ समुज्ज्वल] अत्यन्त उज्ज्वल । समुज्जाय वि [ समुद्यात ] निर्गत । ऊँचा
प्रकाशना ।
समुज्जअ पुं [समुद्योत ] प्रकाश, दीप्ति | समुज्जवय सक[समुद् + द्योतय् ] प्रकाशित
करना ।
समुज्झ सक [ सम् + उज्झ् ] त्याग करना | समुट्ठा अक [समुत् + स्था] उठना । प्रयत्न करना । उत्पन्न होना । सक. ग्रहण करना । समुट्ठाइ वि [ समुत्थायिन् ] सम्यग् यत्न करनेवाला |
समुट्ठाइअ देखो समुट्ठिअ ।
समुट्ठाण न [ समुपस्थान ] फिर से वास करना । सुयन [° श्रुत] जैन शास्त्र - विशेष । समुट्ठाण न [ समुत्थान ] सम्यग उत्थान । निमित्त कारण | देखो समुत्थाण ।
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मुवि [समुत्थित] सम्यक् प्रयत्न-शील । उपस्थित | प्राप्त । जो खड़ा हुआ हो वह । अनुष्ठित, विहित | उत्पन्न । आश्रित । समुड्डी व [समुड्डीन] उड़ा हुआ समुण्णइय देखो समुत्तइय । समुत्त न [मुक्त] गोत्र - विशेष । पुंस्त्री. उस गोत्र में उत्पन्न | देखो संमुत्त । समुत्तइय वि [] गर्वित ।
समुत्तर सक [समुत् + तृ] पार जाना । अक. नीचे उतरना । अवतीर्ण होना । समुत्ताराविय वि[समुत्तारित ] पार पहुँचाया हुआ । कूप आदि से बाहर निकाला हुआ । समुत्तास सक [ समुत् + त्रासय् ] अतिशय
भय उपजाना ।
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