________________
७८६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष संघयण-संचोइय संघयण न [दे.संहनन] शरीर । अस्थि-रचना, । संघिल्ल वि [संघवत्] संघ-युक्त, समुदित । शरीर का बांध । अस्थिरचना का कारण- | संघोडी स्त्री [दे] व्यतिकर, सम्बन्ध । भूत कर्म।
संच (अप) देखो संचिण। संघयणि वि [दे.संहननिन्] संहननवाला। संच (अप) पुं[संचय] परिचय । संघरिस देखो संघस ।
संचइ । वि [संचयिन्] संचयवाला । संघस । सक [सं + घृष] संघर्ष करना ।
संचइग संघस्स ।
संचक्कार पुं [दे] अवकाश । संघाइ । [संघातित] संघात रूप से
संचत्त वि [संत्यक्त] परित्यक्त । संघाइम , [संघातम] निष्पन्न । जोड़ा
संचय पुं. संग्रह । समूह । संकलन, जोड़ । हुमा । इकट्ठा किया हुआ।
°मास पुं. प्रायश्चित-सम्बन्धी मास-विशेष । संघाड देखो संघाय = संघात ।
संचर अक[ सं+चर् ] चलना । सम्यग् गति संघाड पुंदे.संघाट] युग्म । प्रकार ।
करना । धीरे-धीरे चलना। संघाडग , ज्ञाताधर्म-कथा का दूसरा |
संचलण न [संचलन] संचार, गति ।
संचलिअ वि [संचलित] चला हुआ । अध्ययन । संघाडग देखो सिंघाडग।
संचल्ल सक [सं + चल] चलना, गति करना। संघाडणा स्त्री [संघटना] संबन्ध । रचना ।
| संचल्ल (अप) देखो संचलिय। संघाडी स्त्री [ दे. संघाटी ] युग्म । उत्तरीय
संचाय अक [सं+शक्] समर्थ होना । वस्त्र-विशेष ।
संचाय पुं[संत्याग] परित्याग । संघाणय पुं [शिजानक] श्लेष्मा । संचार सक [सं+ चारय] संचार या गति संघातिम देखो संघाइम ।
कराना। संघाय सक [सं+घातय] संहत करना, | संचारिम वि [संचारिम] संचार-योग्य । इकट्ठा करना, मिलाना । हिंसा करना। संचारी स्त्री. [दे] दूत-कर्म करनेवाली स्त्री। संघाय पुं [संघात] संहति, निबिड़ता। समूह,
संचाल सक [सं+चालय] चलाना । जत्था । वज्रऋषभ-नाराच नामक शरीर-बन्ध ।
संचिअ वि [संचित] संगृहीत । श्रुतज्ञान का एक भेद । संकोच । न. नामकर्म
संचिंतण न [संचिन्तन] चिन्तन, विचार । विशेष, जिसके उदय से शरीरयोग्य पुद्गल
संचिक्ख अक [सं+ स्था] रहना, ठहरना, पूर्व-गृहीत पुद्गलों पर व्यवस्थित रूप से अच्छी तरह रहना, समाधि से रहना । स्थापित होते हैं। °समास पुं. श्रुतज्ञान | सचिट्ठ देखो सीचक्ख । का एक भेद ।
संचिट्ठण न [संस्थान] अवस्थान । संघायणा स्त्री.[ संघातना ] संहति । °करण | संचिण सक [सं+चि] संग्रह करना । उपचय न. प्रदेशों को परस्पर संहत रूप से रखना। __ करना। संघार पुं[संहार] प्रलय । नाश । संक्षेप । | संचिन्न वि [संचीर्ण] आचरित । विसर्जन । नरक विशेष । भैरव-विशेष । संचुण्ण सक [सं+चूर्णय] चूर-चूर करना। संघार (अप) देखो संहर = सं + ह । खंड-खंड करना, टुकड़ा-टुकड़ा करना । संघासय पुं[दे] स्पर्धा, बराबरी। | संचेयणा स्त्री [संचेतना] भान । संघिअ देखो संधिअ = संहित । । संचोइय वि [संचोदित] प्रेरित ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org