________________
७८४
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
संखाय-संगह आवाज करनेवाला । संहत करनेवाला । न. | संग न [शृङ्ग] सोंग । उत्कर्ष । शिखर । स्नेह । निबिड़पन । संहति, संघात । आलस्य । प्रधानता। वाद्य-विशेष । काम का उद्रेक । प्रतिशब्द ।
देखो सिंग = शृङ्ग। संखाय संखा = सं+ ख्या का संकृ. । | संग न [शाङ्ग] शृङ्ग-सम्बन्धी । संखाय वि. संख्या-युक्त ।
संग पुंन [सङ्ग] सम्पर्क, सम्बन्ध । सोहबत । संखायण न [शालायन] गोत्र-विशेष । __ आसक्ति । कर्म, कर्म-बन्ध । बन्धन । संखाल पुं [दे]हरिण की एक जाति । साँवर । | संगइ स्त्री [संगति] औचित्य । मेल । संखाविय वि [संख्यापित] जिसकी गिनती नियति । कराई गई हो वह ।
संगइअ वि [साङ्गतिक] नियति-कृत, नियतिसंखिग देखो संखिय = शाङ्खिक ।
सम्बन्धी । परिचित । . संखिज्ज देखो संखा = सं+ख्या का कृ.। संगंथ पुं [संग्रन्थ] स्वजन का स्वजन । संखिज्जइ वि [संख्येयतम] संख्यातां । । __ सम्बन्धी, श्वशुर-कुल से जिसका सम्बन्ध हो संखित्त वि [संक्षिप्त] संक्षेप युक्त ।
वह। संखिय वि [शाङ्खिक] मंगल के लिए चन्दन- संगच्छ सक [सं+ गम्] स्वीकार करना । गर्भित शंख को हाथ में धारण करनेवाला । अक. संगत होना, मेल रखना। शंख बजानेवाला ।
संगम पुं. मेल, मिलाप । प्राप्ति । नदियों का संखिय देखो संख = संख्य ।
आपस में मिलान । एक देव । सम्भोग । एक संखिया स्त्री [शङ्घिका, छोटा शंख । जैन मुनि । संखुड्डु अक [रम्] क्रीड़ा करना, संभोग | संगमय पुं [संगमक] भ० महावीर को उपसर्ग करना ।
करनेवाला एक देव । संखुत्त
संगमी स्त्री. एक दूती। संखुद्ध । (अप)। वि [संक्षुब्ध] क्षोभ- संगय वि [दे] मसृण, चिकना । संखुभिअ । प्राप्त । [संक्षुब्ध, संक्षुभित] । | संगय न [संगत मैत्री । संग। पुं. एक जैन संखुहिम
मुनि । वि. युक्त । मिलित । संखेज्ज देखो संखा - सं+ख्या का कृ.।। संगयय न [संगतक] छन्द-विशेष । संखेज्जइ । देखो संखिज्जइ । संगर देखो संकर = संकर । संखेज्जइम )
संगर न. युद्ध, रण। संखेत्त देखो संखित्त ।
संगरिगा स्त्री [दे] फली-विशेष, साँगरी । संखेव पुं [संक्षेप] अल्प | पिंड, संहति । |
संगल सक [ सं + घटय ] मिलना, संघटित स्थान । सामायिक, सम-भाव से अवस्थान ।
करना। संखेवण न [संक्षेपण] अल्प करना, न्यून संगल अक [ सं +गल् ] गल जाना, हीन करना।
होना। संखेविय वि [संक्षेपिक] संक्षेप-युक्त। °दसा संगलिया स्त्री [दे] फली, छीमी ।
स्त्री. ब. [°दशा] जैन ग्रन्थ-विशेष । संगह सक [ सं+ग्रह ] संचय करना । संखोभ । सक [सं+क्षोभय] क्षुब्ध | __ स्वीकार करना । आश्रय देना । पकड़ना । संखोह ) करना । भय से व्यग्न करना। संगह पुं [दे] घर के ऊपर का तिरछा काठ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org