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संख-संखाय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
७८३ विशेष । महाविदेह वर्ष का प्रान्त-विशेष, । [वती] नगरी-विशेष । विजय क्षेत्र-विशेष । नव निधि में एक निधि, संख वि [संख्य] संख्यात । जिसमें विविध तरह के बाजों की उत्पत्ति होती संख न [सांख्य] कपिलमुनि-प्रणीत दर्शन । है । लवण समुद्र में स्थित वेलन्धर-नागराज वि. सांख्य मत का अनुयायी। का एक आवास-पर्वत । उसका अधिष्ठाता देव। संख पुं [दे] मागध, स्तुति-पाठक । भ० मल्लिनाथ के समय काशी का राजा। संखइम वि [संख्येय] जिसकी संख्या हो सके भ० महावीर के पास दीक्षित एक काशी-नरेश।। वह । तीर्थकर-नामकर्म उपाजित करनेवाला भ० | संखड न [दे] कलह, झगड़ा। महावीर का एक श्रावक । नववें बलदेव का | संखडि स्त्री [दे] विवाह आदि में नातेदार पूर्वजन्मीय नाम । एक राजा । एक राज-पुत्र । आदि को दिया जाता भोज, जेवनार । रावण का एक सुभट । छन्द-विशेष । एक | संखडि स्त्री [संस्कृति] ओदन-पाक । द्वीप। एक समुद्र । शंखवर द्वीप का एक | संखणग पुं शङ्कनक] छोटा शंख । अधिष्ठायक देव । पुन. ललाट की हड्डी । नखी | संखद्रह पुं [दे] गोदावरी ह्रद । नाम का एक गन्ध-द्रव्य । कान के समीप की संखबइल्ल पुं [दे] कृषक के इच्छानुसार एक हड्डी । एक नाग-जाति । हाथी के दाँत उठ कर खड़ा होनेवाला बैल । का मध्य भाग । दस निखर्व को संख्यावाला । | संखम वि [संक्षम] समर्थ । आँख के समीप का अवयव । °उर देखो | संखय पुं [संक्षय] क्षय, विनाश । पुर। °णाभ पुं [°नाभ ] ज्योतिष्क संखय वि [संस्कृत] संस्कार-युक्त । महाग्रह-विशेष । °णारी स्त्री [°नारी] छन्द- संखलय पं [देशम्बूक, शुक्ति के आकारवाला विशेष । धमग पुं [ध्मायक] वानप्रस्थ जल-जन्तु-विशेष । की एक जाति । °धर पुं. श्रीकृष्ण, विष्णु । संखला देखो संकला। °पाल देखो °वाल । °पुर न. एक विद्या- संखलि पुंस्त्री [दे] कर्णभूषण-विशेष, शंख-पत्र धर-नगर। गुजरात का संखेश्वर नगर। का बना हुआ ताडंक । °पुरी स्त्री. कुरुजंगल देश की प्राचीन राज- संखव सक [सं + क्षपय] विनाश करना । घानी, अहिच्छत्रा । °माल पुं. वृक्ष की एक | संखा सक [सं+ ख्या] गिनती करना । जाति । °वण न [°वन] एक उद्यान । जानना। °वण्णाभ पुं [°वर्णाभ] ज्योतिष्क महाग्रह- संखा अक [सं + स्त्यै] आवाज करना । विशेष । वन्न पुं [°वर्ण] ज्योतिष्क महाग्रह- संहत होना, सान्द्र होना, निबिड़ बनना । विशेष । वन्नाभ देखो °वण्णाभ। वर | संखा स्त्री. [संख्या] प्रज्ञा । ज्ञान। निर्णय । पुं. एक द्वीप । एक समुद्र । 'वरोभास पुं गिनती । व्यवस्था । ईअ वि[°तीत] असंख्य । ["वरावभास]एक द्वीप । एक समुद्र। °वाल | दत्तिय वि [°दत्तिक] उतनी ही भिक्षा पुं[ °पाल ] नाग-कुमार-देवों के धरण और लेने का व्रतवाला संयमी, जितनी कि अमुक भूतानन्द नामक इन्द्रों के एक लोकपाल । गिने हुए प्रक्षेपों से प्राप्त हो जाय । °वालय पुं[पालक] जैनेतर दर्शन का एक संखाण न [संख्यान] गिनती, संख्या । गणितअनुयायी । आजीविक मत का एक उपासक। शास्त्र । गलग वि [°वत्] शंखडाला । गवई स्त्री ' संखाय वि [संस्त्यान] सान्द्र, निबिड़ ।
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