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६०८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
बउहारी-बंभ देश का निवासी। वि चितकबरा। मलिन बंधय देखो बंधग ! चरित्रवाला, संयम को मलिन करनेवाला । | बंधव पुं[बान्धव] भ्राता । दोस्त । नातेदार, बउहारी स्त्री [दे] बुहारी, झाड़ ।
सम्बन्धी । माता । पिता। मामा, चाचा बंग पुं [बङ्ग] भगवान् आदिनाथ का एक | आदि ।
पुत्र । बंगाल देश । बंग देश का राजा। | बंधाप (अशो) सक [बन्धय] बंधाना । बंगल (अप) पुं [बङ्ग] बंग देश का राजा । | बंधु पुं[बन्धु] भाई । माता । पिता। मित्र । बंगाल पुं[बङ्गाल] बंगाल देश ।
स्वजन । छन्द-विशेष । जीव . दुपहरिया का बंझ देखो वंझ ।
पेड़ । 'दत्त पुं. एक श्रेष्ठी। एक जैन मुनि । बंडि पुंदे] देखो बंदि = बन्दिन् ।
°मई, °वई स्त्री [°मती] भगवान् मल्लिनाथ बंद न [दे] कैदी । °गह पुं [ग्रह] कैदी रूप | की मुख्य साध्वी । स्त्री-विशेष । सिरी स्त्री से पकड़ना।
[°श्री] श्रीदाम राजा की पत्नी। बंदि स्त्री [बन्दि] देखो बंदी।
बंधुर वि [बन्धुर] सुन्दर । नम्र, अवनत । बंदि । पुं [बन्दिन्] स्तुति-पाठक, मंगल
बंधुरिय वि [बन्धुरित] पिंडीकृत । नमा बंदिण ) पाठक, मागध ।
हुआ। मुकुटित । विभूषित । बंदिर न [दे] समुद्री बन्दर । बंदी स्त्री [बन्दी] बाँदी। कैदी। कय वि बंधुल पुं[बन्धुल] वेश्या-पुत्र , असती-पुत्र । [°कृत] बाँध कर आनीत ।।
बंधूय पुं [बन्धूक] दुपहरिया का पेड़ । बंदुरा स्त्री [बन्दुरा] अश्व-शाला ।
बंधोल्ल पुं[दे] मेलक, संगति । बंध सक [बन्ध] बाँधना, नियन्त्रण करना। बंभ पुं [ब्रह्मन्] ब्रह्मा। भगवान् शान्तिनाथ कर्मों का जीव-प्रदेशों के साथ संयोग करना ।
का शासनाधिष्ठायक यक्ष। अप्काय का बंध पुंदे] नौकर।
अधिष्ठायक देव । पाँचवें देवलोक का इन्द्र । बंध पुं[बन्ध] कर्म-पुद्गलों का जीव-प्रदेशों के बारहवें चक्रवर्ती का पिता । द्वितीय बलदेव साथ दूध-पानी की तरह मिलना । बन्धन, और वासुदेव का पिता । ज्योतिष-शास्त्र संयमन । छन्द-विशेष । सामि वि प्रसिद्ध योग । ब्राह्मण । चक्रवर्ती राजा का [°स्वामिन्] कर्म-बन्ध करनेवाला।
देव-कृत प्रासाद । दिन का नवा मुहूर्त । बंधई स्त्री [बन्धकी] पुंश्चली, असती स्त्री।
छन्द-विशेष । ईषत्प्राग्भारा पृथिवी । एक जैन बंधग वि [बन्धक] बाँधनेवाला। कर्म-बन्ध
मनि । पुंन.देवविमान-विशेष । मोक्ष । ब्रह्मचर्य । करनेवाला, आत्म-प्रदेश के साथ कर्म-पुद्गलों
सत्य अनुष्ठान । निर्विकल्प सुख । योगशास्त्रका संयोग करनेवाला।
प्रसिद्ध दशम द्वार । "कंत न [°कान्त] देवबंधण न [बन्धन] संश्लेष का साधन, जिससे विमान । कूड पुं [ कूट] महाविदेह वर्ष का बाँधा जाय वह स्निग्धतादि गुण । जो बाँधा वक्षस्कार पर्वत । न. देवविमान । °चरण न. जाय । कर्म, कर्म-पुद्गल । कर्म-बन्ध-कारण । ब्रह्मचर्य । °चारि वि [चारिन्] ब्रह्मचर्य संयमन, नियन्त्रण । नियन्त्रण का साधन, पालन करनेवाला । पुं भगवान् पार्श्वनाथ का रज्जु आदि । जिस कर्म के उदय से पूर्व-गृहीत एक गणधर । "चेर, °च्चेर न [°चर्य] कर्म-पुद्गलों के साथ गृह्यमाण कर्म-पुद्गलों मैथुन-विरति । जिनेन्द्र-शासन, जिन-प्रवचन । का आपस में सम्बन्ध हो वह कर्म ।।
ज्झय न [ध्वज] देव-विमान । दत्त बंधणी स्त्री [बन्धनी] विद्या-विशेष । पुं. भारतवर्ष का बारहवाँ चक्रवर्ती राजा ।
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