________________
E
४९६
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पद्य । 'गुण वि. पाँचगुना। °चित्त पुंसिंह, पंचानन । यसी देखो °दसी। रत्त, [°चित्र] षष्ठ जिनदेव श्रीपद्मप्रभ जिनके राय पुं ["रात्र] पाँच रात । 'रासिय न पाँचों कल्याणक चित्रा नक्षत्र में हुए थे। [राशिक] गणित-विशेष । °रूविय वि °जाम न [°याम] अहिंसा, सत्य, अचौर्य, [रूपिक] पाँच प्रकार के वर्णवाला। ब्रह्मचर्य और त्याग-ये पाँच महाव्रत । वि. वत्थग न [°वस्तुका आचार्य हरिभद्रसूरिजिसमें इन पाँच महाव्रतों का निरूपण हो रचित ग्रन्थ-विशेष । वरिस वि [°वर्ष] वह । °णउइ स्त्री [नवति] पंचानबे । .
पाँच वर्ष की अवस्था-वाला । °विह वि °णउय वि [°नवत] ९५ वाँ । 'तालीस ।
[विध] पाँच प्रकार का । °वीसइम वि (अप) स्त्रीन [°चत्वारिंशत्] पैंतालीस ।
[विंशतितम] पचीसवाँ । °तित्थी स्त्री [तीर्थी] पाँच तीर्थों का
संगह पुं समुदाय । तीसइम वि [त्रिंशत्तम] पैंती- |
[°संग्रह] आचार्य श्रीहरिभद्रसूरि-कृत एक जैन सर्वां। दस त्रि. ब. [दशन्] पनरह ।
ग्रन्थ । संवच्छरिय वि [°सांवत्सरिक] °दसम वि [°दशम] पन 'हवाँ । दसी स्त्री
पाँच वर्ष परिमाण-वाला, पाँच वर्ष की आयु[दशी] पनरहवीं । पूर्णिमा । अमावास्या ।
वाला । सट्ट वि [°षष्ट] पैंसठवाँ । °सट्रि °दसुत्तरसय वि [°दशोत्तरशततम] एक सौ
स्त्री [°षष्टि] पैंसठ । °समिय वि [°समित]
पाँच समितियों का पालन करनेवाला । °सर पनरहवाँ । नाणि वि [ज्ञानिन्] मति, श्रुत,
पुं [°शर] कामदेव । °सीस पुं [शीर्ष] अवधि, मनःपर्यव और केवल -इन पांचों
देव-विशेष । °सुण्ण न [°शून्य] पाँच ज्ञानों से युक्त, सर्वज्ञ । 'पन्वी स्त्री [°पर्वी]
प्राणिवध-स्थान । 'सुत्तग न [°सूत्रक] मास की दो अष्टमी, दो चतुर्दशी और शुक्ल
आचार्य-श्रीहरिभद्रसूरि-निर्मित एक जैन ग्रन्थ । पंचमी-ये पाँच तिथियाँ । °पुव्वासाढ पुं °सेल, °सेलग, सेलय पुं [शैल, 'क] [पूर्वाषाढ] दसवें जिनदेव श्रीशीतलनाथ
लवणोदधि में स्थित और पाँच पर्वतों जिनके पाँचों कल्याणक पूर्वाषाढा नक्षत्र में
से विभूषित एक छोटा द्वीप । 'सोगंधिअ वि हुए थे । पूस पुं [पुष्य] पनरहवें जिनदेव [°सौगन्धिक]इलायची, लवंग, कपूर, कंक्कोल श्रीधर्मनाथ । °बाण पुं. कामदेव । भूय न और जातीफल-जायफल इन पाँच सुगन्धित [भूत] पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और वस्तुओं से संस्कृत । °हत्तर वि [°सप्तत] आकाश-ये पाँच पदार्थ । भूयवाइ वि | पचहत्तरवाँ । हत्तरि स्त्री [°सप्तति] संख्या[भूतवादिन्] आत्मा आदि पदार्थों को न । विशेष, ७५ । जिनकी संख्या पचहत्तर हो मानकर केवल पाँच भूतों को ही माननेवाला, वे । हत्थत्तर पुं [हस्तोत्तर] भगवान् नास्तिक । °महब्वइय वि [°महाव्रतिक] महावीर जिनके पांचों कल्याणक उत्तरापाँच महाव्रतोंवाला । °महव्यय न [°महा- फाल्गुनी नक्षत्र में हुए थे । °उह पुं [°ायुध] व्रत] हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और कामदेव । °णाउइ स्त्री [°नवति] पंचानबे। परिग्रह का सर्वथा परित्याग । महाभूय न । जिनकी संख्या पंचानबे हो वे । गणउय वि [°महाभूत] पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और [°नवत] पंचानवाँ । °ाणाण पुं ["निन] आकाश-ये पांच पदार्थ । मुट्ठिय वि सिंह । गणुव्वइय वि [°Tणुवतिक] हिसा, [मुष्टिक] पाँच मुष्टियों का, पाँच मुष्टियों से । असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह का आंशिक पूर्ण किया जाता (लोच)। 'मुह पुं [°मुख] | त्यागवाला। आयाम देखी जाम। °ास
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org