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पंखुडी ।
पओज-पंच
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष माणुओं में बढ़नेवाला रस । °बंध पुं [°बन्ध] [°ज] कमल । °वई स्त्री [°वती] नदीजीव-प्रयत्न द्वारा होनेवाला बन्धन । °मइ विशेष । स्त्री [°मति] वादविषयक-परिज्ञान । °संपया पंकज देखो पंक-य । स्त्री [संपत्] आचार्य का वाद-विषयक पंका स्त्री [पङ्का] चौथी नरक भूमि । सामर्थ्य । °सा अ [प्रयोगेण] जीव-प्रयत्न से। पंकाभा स्त्री [पनाभा] चौथी नरक-पृथिवी । पओज देखो पउंज प्र+युज् ।
पंकावई स्त्री [पङ्कावती] पुष्कल नामक पओजग वि [प्रयोजक] विनिश्चायक, निर्णा- विजय के पश्चिम तरफ की एक नदी। यक, गमक ।
पकिय वि [पङ्कित] कीचवाला। पओट्ठ देखो पउट्ठ = प्रकोष्ठ ।
पंकिल वि [पङ्किल] कर्दमवाला । पओत्त न [प्रतोत्र] प्रतोद, पैना। धर पुं. पंकेरुह न [पकेरुह] कमल । बैलगाड़ी हांकनेवाला।
पंख पुंस्त्री [पक्ष] पंख । पखवाड़ा । सिण न पओद पुं [प्रतोद] ऊपर देखो।
[सन] आसन-विशेष । पओप्पय पुं [प्रपौत्रक] प्रपौत्र, पौत्र का पुत्र । | पंखि पुंस्त्री [पक्षिन्] पंखी, चिड़िया । प्रशिष्य का शिष्य ।
पंखुडिआ। स्त्री [दे] पंख, पत्र । पओप्पिय पुंदे. प्रपौत्रिक] वंश-परम्परा । शिष्य-सन्तान ।
पंग सक [ग्रह ] ग्रहण करना। पओरासि [पयोराशि] समुद्र ।
पंगण न [प्राङ्गण] आंगन । पओल पुं[पटोल] परवर, परोरा। | पंगु वि [पङ्गु] लंगड़ा, लूला । पओली स्त्री [प्रतोली] नगर के भीतर का
पंगुर सक [प्रा + वृ] ढकना, आच्छादन रास्ता । नगर का दरवाजा ।
करना। पओवट्ठाव देखो पज्जवत्थाव।
पंगुरण न [प्रावरण] वस्त्र । पओवाह पुं [पयोवाह] मेघ ।
पंगुल वि[पङ्गुल] देखो पंगु । पओस सक [प्र + द्विष् ] द्वेष करना, वैर
पंच त्रि. ब. [पञ्चन्] पाँच । °उल न [°कुल] करना।
पंचायत । °उलिय पुं [°कुलिक] पंचायत पओस पुं [दे. प्रद्वेष] प्रद्वेष, प्रकृष्ट द्वेष ।
में बैठ कर विचार करनेवाला । कत्तिय पुं पओस पुंन [प्रदोष] सन्ध्याकाल । वि. प्रभूत
[कृत्तिक] भगवान् कुन्थुनाथ जिनके पाँचों दोषों से युक्त ।
कल्याणक कृत्तिका नक्षत्र में हुए थे। कप्प पओहण (अप) देखो पवहण । -
पुं [°कल्प] श्रीभद्रबाहुस्वामि-कृत प्राचीन पओहर पुं [पयोधर] स्तन । बादल । छन्द
प्रन्थ का नाम । कल्लाणय न [ कल्याणक] विशेष ।
तीर्थङ्कर का च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान पंक पुन [पङ्क] कीचड़ । पाप । असंयम, |
और निर्वाण । काम्पिल्यपुर,जहाँ तेरहवें जिनइन्द्रिय वगैरह का अनिग्रह । °आवलिआ देव श्रीविमलनाथ के पाँचों कल्याणक हुए थे। स्त्री [°ावलिका] छन्द-विशेष । 'प्पभा स्त्री तप-विशेष । °कोढग वि [°कोष्ठक] पांच [प्रभा] चौथी नरक-भूमि । 'बहुल वि. कोष्ठों से युक्त । पुं. पुरुष । °गव्व न [°गव्य] कर्दम-प्रचुर। पाप-प्रचुर । पुन. रत्नप्रभा पंचगव्य-दूध, दही, घृत, गोमय और मूत्र । नामक नरक-भूमि का प्रथम काण्ड । य न । 'गाह न [°गाथ] गाथा छन्दवाले पांच
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