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४२८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
तावसा-ति तावसा स्त्री [तापसा] जैन मुनियों की एक संयमी । गोण वि[°कोण] तीन कोनेवाला । शाखा।
°चत्ता स्त्री [ °चत्वारिंशत् ] तैंतालीस । तावसी स्त्री [तापसी] तपस्वनी, योगिनी।। जय न [°जगत्] स्वर्ग, मर्त्य और पाताल ताविआ स्त्री [ तापिका ] तवा, पूआ आदि लोक । °णयण पुं [°नयन] महादेव । °तुल
पकाने का पात्र । कड़ाही, छोटा कड़ाह । देखो °उल । 'त्तिस (अप) देखो °त्तीस । ताविच्छ पुन [तापिच्छ] तमाल का पेड़ ।। °त्तीस स्त्रीन [त्रयस्त्रिंशत् ] तावी स्त्रो [तापी] नदी-विशेष ।
संख्या-विशेष । तेतीस संख्यावाला, तेतीस । तास पूं [त्रास] भय । उद्वेग, सन्ताप । °दंड न [ दण्ड] हथियार रखने का उपतासण वि [त्रासन] त्रास उपजानेवाला। करण । तीन दण्ड । दंडि पुं [°दण्डिन्] तासि वि [त्रासिन्] त्रास-युक्त, त्रस्त । त्रास- संन्यासी, सांख्य मत का अनुयायी साधु । जनक ।
नवइ स्त्री [°नवति] तिरानबे । तिरानबे तासिअ वि [त्रासित] जिनको त्रास उपजाया संख्यावाला । पंच त्रि. ब. [°पञ्चन्] पन्द्रह । गया हो वह ।
°पंचासइम वि [पञ्चाश] त्रिपनवां । °पह ताहे अ [तदा ।
न [°पथ] जहाँ तीन रास्ते एकत्रित होते हों ति अ [त्रिः] तीन बार।
वह स्थान | °पायण न [°पातन] शरीर, ति देखो तइअ = तृतीय । भाग, भाय,
इन्द्रिय और प्राण इन तीनों का नाश । मन, हाअ पुं [ भाग] तीसरा हिस्सा ।
वचन और काया का विनाश । °पुंड न ति देखो थी।
[पुण्ड्र] तिलक-विशेष । 'पुर पुं. दानवति त्रि.ब. [त्रि] तीन । 'अणुअ न [°अणुक]
विशेष । न. तीन नगर । पुरा स्त्री. विद्या
विशेष । 'भंगी स्त्री [भङ्गी] छन्द-विशेष । तीन परमाणुओं से बना हुआ द्रव्य । °उण वि [गुण] तीनगुना । सत्त्व, रजस् और तमस्
°महुर न [°मधुर] घी, शक्कर और मधु । गुणवाला । उणिय वि[“गुणित] तीनगुना ।
°मासिआ स्त्री [त्रैमासिकी] जिसकी अवधि °उत्तरसय वि [ उत्तरशततम] १०३ वाँ ।
तीन मास की है ऐसी एक प्रतिमा, व्रत°उल वि ['तुल] तीन को जीतनेवाला।
विशेष । मुह वि [°मुख] तीन मुखवाला। तीन को तौलनेवाला । ओय न [°ओजस्]
पुं. भगवान् सम्भवनाथजी का शासन-देव । विषम राशि-विशेष । °कंड, कंडग वि
°रत्त न [ रात्र] तीन रात । रासि न [°काण्ड, °क] तीन काण्डवाला, तीन भाग
[राशि] जीव, अजीव और नोजीव रूप वाला । °कडुअ न [°कटुक] सोंठ, मरीच
तीन राशियाँ । 'लोअ न [°लोकी] स्वर्ग, और पीपल । °करण देखो °गरण । काल
मर्त्य और पाताल-लोक । लोअण पुं न. भूत, भविष्य और वर्तमान काल । 'क्काल
[°लोचन] शिव । 'लोअपुज्ज पुं [लोकपूज्य] देखो °काल। °खंड वि[°खण्ड] तीन खण्ड
धातकीषण्ड के विदेह में उत्पन्न एक जिनदेव । वाला । °खंडाहिवइ पुं [°खण्डाधिपति °लोई स्त्री [ °लोकी ] देखो °लोअ। अर्धचक्रवर्ती राजा, वासुदेव । गडु, गडुअ °लोग देखो °लोअ । °वई स्त्री [ °पदी] देखो °कडुअ । 'गरण न [°करण] मन, | तीन पदों का समूह । भूमि में तीन बार वचन और काया । गुण देखो °उण । °गुत्त पांव का न्यास । गति-विशेष । 'वग्ग वि [°गुप्त] मनोगुप्ति आदि तीन गुप्तिवाला, | पुं[°वर्ग] धर्म, अर्थ और काम ये तीन
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