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अग्घा सक [ आ + घ्रा ] संघना | अग्घाड सक [पूर्] पूरा करना । अग्घाड पुं [दे] वृक्ष - विशेष, अपामार्ग, चिचड़ा, लटजीरा |
वाणवि [ दे] तृप्त ।
अग्घाय वि [आघात] सूंघा हुआ । अग्घियवि [ अति] बहुमूल्य, कीमती । | अचिरजुवइ देखो अइ रजुवइ ।
अचिरा देखो अइरा ।
संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
पूजित ।
अग्घोदय न [ अर्धोदक] पूजा का जल । अघ न पाप । वि. शोचनीय, शोक का हेतु । अघो देखो अहो ।
अचक्खु पुंन [अचक्षुस् ] आँख के सिवाय बाकी इन्द्रियाँ और मन | वि. अंधा । दंसण न [दर्शन] आँख को छोड़ बाकी इन्द्रियाँ और मन से होने वाला सामान्य ज्ञान । 'दंसणावरण न [° दर्शनावरण] अचक्षुर्दर्शन को रोकनेवाला कर्म । फास पु [ स्पर्श] अंधकार । अचक्खुस वि [अचाक्षुष ] जो आँख से देखा न जा सके ।
अचवखुस्स वि [अचक्षुष्य ] जिसको देखने का मन न चाहता हो ।
अचर वि पृथिव्यादि स्थिर पदार्थ । अचल विनिश्चल । पुं यदुवंश के राजा अन्धकवृष्णि के एक पुत्र का नाम । एक बलदेव का नाम । पर्वत । एक राजा, जिसने रामचन्द्र के छोटे भाई के साथ जैन दीक्षा ली थी । पुरन ब्रह्म- द्वीप के पास का एक नगर । पन [त्मन् ] हस्तप्रहेलिका को ८४ लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह, अन्तिम संख्या | 'भाय पु [भ्रातृ] भगवान् महावीर का नववाँ गणधर । अचल पुं छठवाँ रुद्र पुरुष ।
अचल न [ दे] घर । घर का पिछला भाग । वि. कहा हुआ । निर्दय । नीरस, सूखा । अचला स्त्री पृथिवी । एक इन्द्राणी । अचित वि [ अचिन्त ] निश्चिन्त ।
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अग्घा -
अचित वि [ अचिन्त्य ] अनिर्वचनीय, अद्भुत । अचितियवि [अचिन्तित ] आकस्मिक, असंभावित |
अचित्त वि जीव-रहित, अचेतन । अचियंत
अचियत्त
-अच्चन्भुय
वि [ दे] अनिष्ट | न. अप्रीति ।
सहन करना ।
अचिराभा स्त्री बिजली ।
अचेल न वस्त्रों का अभाव । अल्प-मूल्यक वस्त्र | थोड़ा वस्त्र । वि. वस्त्र रहित । जीर्ण वस्त्र वाला । अल्प वस्त्र वाला । मैला | परिसह, परीसह पुं [° परिषह, परीषह ] वस्त्र के अभाव से अथवा जीर्ण, अल्प या कुत्सित वस्त्र होने से उसे अदीन भाव से
अचेलग
वि [अचेलक] नग्न | फटा-टूटा वस्त्र वाला । मलिन वस्त्र वाला |
अचेलय
अल्प वस्त्र वाला । निर्दोष वस्त्र वाला । अनियत रूप से वस्त्र का उपभोग करनेवाला | अच्च सक [अ] पूजना । अच्च पुं [अर्च्य] लव ( काल मान) का एक भेद । वि. पूजनीय |
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अच्चंग न [अत्यङ्ग] भोग के मुख्य साधन | अच्चंत वि [ अत्यन्त ] हद से ज्यादा । थावर वि [° स्थावर ] अनादि काल से स्थावर-जाति में रहा हुआ । " दूसमा स्त्री [° दुष्षमा ] देखो दुस्समदुस्समा ।
अचंति वि [आत्यन्तिक ] अत्यन्त शाश्वत । अच्चगवि [अर्चक | पूजक | अच्चगल वि [अन्य] निरंकुश | अच्चणिया स्त्री [अर्चनिका ] अर्चन । अच्चत वि [अत्यक्त] नहीं छोड़ा हुआ । अञ्चत्थवि [अत्यर्थ] बहुत । गंभीर अर्थ
वाला । अत्यंत ।
अच्चब्भुय वि [अत्यद्भुत ] बड़ा आश्चर्य
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