________________
ओमुक्क-ओरुभियं संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष
१९५ न. सामीप्य ।
ओयार सक [अव+ तारय] नीचे उतारमा । ओमुक्त वि [अवमुक्त] परित्यक्त ।
ओयार पुं [अवतार] घाट, तीर्थ।। ओमुग्ग देखो उम्मुग्ग।
ओयारंग वि [अवतारक] उतारनेवाला । ओमुच्छिअ वि [अवमूच्छित] महा-मूर्छा को | प्रवृत्ति करनेवाला । प्राप्त ।
ओयारण देखो उयारण । ओमुद्धग वि [अवमूर्धक] अधोमुख । ओयावइत्ता अ[ओजयित्वा] बल दिखा कर । ओमुय सक [अव + मुच्] पहनना ।
चमत्कार दिखा कर । विद्या आदि का ओमोय पुं [ओमोक] आभरण ।
सामर्थ्य दिखा कर । ओमोयर वि [अवमोदर]भूख की अपेक्षा न्यून ओर वि [दे] सुन्दर । समीप । भोजन करनेवाला ।
ओरंपिअ वि [दे] आक्रान्त । नष्ट । पतला ओमोयरिय न [अवमोदरिक] न्यून भोज- किया हुआ, छिला हुआ । नत्व । दुर्भिक्ष, अकाल ।
ओरत्त वि [दे] गर्विष्ठ । कुसुम्भ से रक्त । ओम्माय पुं[उन्माद] उन्मत्तता।
विदारित। ओय न [ओजस्] विषम संख्या-जैसे एक, | ओरद्ध देखो अवरद्ध - अपराद्ध । तीन, पाँच आदि । आहार-विशेष, अपनी | ओरम अक [उप+रम्] निवृत्त होना । उत्पत्ति के समय जीव प्रथम जो आहार लेता ओरल्ली स्त्री [दे] लम्बी और मधुर आवाज । है वह। बल प्रकाश । उत्पत्ति-स्थान में आहत ओरस सक [ अव + त ] नीचे उतरना। पुद्गलों का समूह । आर्तव, ऋतु-धर्म । ओरस वि [उपरस] स्नेह-युक्त । ओय ।व [ओकस्] गृह ।
ओरस वि [औरस] स्व-पुत्र । हृदयोत्पन्न । ओय वि [ओज] एक, असहाय । मध्यस्थ, ओरस्स वि [औरस्य] हृदयोत्पन्न, आभ्यउदासीन । पुं. विषम राशि ।
न्तरिक । ओयंसि वि [ओजस्विन्] बलवान् । तेजस्वी। | ओराल देखो उराल। ओयट्टण न [अपवत्तंन] पीछे हटना। ओराल न [औदार] नीचे देखो । ओयड्ढ सक [अप + कृष्] खींचना। ओरालिय न [औदारिक] शरीर-विशेष, ओयड्ढिया । स्त्री [दे] ओढ़नी। चादर, | मनुष्य और पशुओं का शरीर । वि. शोभायओयड्ढी , दुपट्टा।
मान । औदारिक शरीरवाला । °णाम न ओयण देखो ओदण ।
[°नामन्] औदारिक शरीर का हेतुभूत कर्म । ओयत्त वि [अववृत्त] अवनत, अधोमुख । ओरालिय वि [दे] व्याप्त । उपलिप्त । पोंछा ओयत्त सक [अप + वर्तय] खाली करने के | हुआ । प्रसारित । लिए नमाना।
ओराली देखो ओरल्ली। ओयत्तण न [अपवतंन] खिसकाना। ओरिकिय न [अवरिङ्कित] महिष की ओयविय वि [दे] परिकर्मित ।
आवाज । ओया स्त्री [ओजस्] शक्ति । प्रकाश । माता | ओरिल्ल पुं [दे] दीर्घ काल । का शुक्र-शोणित ।
ओरी [दे] समीप । ओयाइअ देखो उवयाइय।।
ओरंज न [दे] क्रीडा-विशेष । ओयाय वि [उपयात] समीप पहुँचा हुआ। । ओलंभिय वि [उपरुद्ध] आवृत्त ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org