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________________ २७४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष उवयालि-उवलीण सम्बन्ध रखनेवाला। आग्रह। उवयालि पुं [उपजालि] एक अन्तकृद् मुनि, उवल पुं [उपल] पत्थर । टाँकी वगैरह को जो वसुदेव का पुत्र था और जिसने भगवान् । संस्कृत करनेवाला पाषाण-विशेष । श्रीनेमिनाथजी के पास दीक्षा लेकर शत्रुञ्जय | उवलम्बण पुं [उपलम्बन] साँकल वाला एक पर मुक्ति पाई थी। राजा श्रेणिक का इस प्रकार का दीपक । नाम का एक पुत्र, जिसने भगवान् महावीर उवलंभ सक [उप+लभ्] प्राप्त करना । के पास दीक्षा लेकर अनुत्तर-विमान में देव- जानना । उलाहना देना । गति प्राप्त की थी। उवलंभ पुं [उपलम्भ] लाभ । ज्ञान । उवरइ स्त्री [उपरति] विराम । उलाहना। उवरंज सक [उप + रज ग्रस्त करना। उवलंभ देखो उवालंभ = उपालम्भ । उवरग देखो ओअरय । उवलक्ख सक [उप + लक्षय्] जानना, पहिउवरत्त वि[उपरक्त] अनुरक्त । राहु से ग्रसित।। चानना। म्लान । उपलक्खण न [उपलक्षण]पहिचान । अन्यार्थउवरम अक [उप + रम्] निवृत्त होना, विरत बोधक सङ्केत । होना । नाश होना। उवलग्ग दि [उपलग्न] लगा हुआ। उवरय वि [उपरत] विरत, निवृत्त । मृत ।। उवलद्ध वि [उपलब्ध] प्राप्त । विज्ञात । उवरय देखो उवरग। उपालब्ध । उवरल (अप) देखो उव्वरिय [दे। उवलद्धि स्त्री [उपलब्धि] प्राप्ति, लाभ । उवराग । पुं [उपराग] सूर्य या चन्द्र का | ज्ञान । उवराय , ग्रहण, राहु-ग्रहण । उवलधु वि [उपलब्धृ] ग्रहण करनेवाला, उवराय पुं [उपरात्र] दिन । जाननेवाला। उवरि अ [उपरि] ऊपर । °भासा स्त्री | | उवलभ देखो उवलंभ = उप + लम् । [°भाषा] गुरु के बोलने के अनन्तर ही उवलभत्ता । स्त्री [दे] कङ्गन । उवलयभग्गा विशेष बोलना । °म, मग, “मय, ल्ल वि [°तन] ऊपर का। हुत्त वि [°अभिमुख उवलल अक [उप + लल] क्रीडा करना, ऊपर की तरफ। विलास करना। उरि ऊपर देखो। उवललय न [दे] सुरत, मैथुन । उवरितण देखो उवरि-म । उवलह देखो उवलंभ % उप + लभ् । उवरुंध सक [उप+रुध्] अड़चन डालना। उवला सक [उप+ला] ग्रहण करना । आश्रय रोकना। करना। उवरुद्द पुं [उपरुद्र] नरक के जीवों को दुःख | उलि देखो उवल्लि। देनेवाले परमाधार्मिक देवों की एक जाति । उवलिंप सक [उप + लिप्] लीपना, पोतना । उवरुद्ध वि [उपरुद्ध] रक्षित । प्रतिरुद्ध । चुम्बन करना। उवरोह सक [उप + रोधय] अड़चन डालना। उवलित्त वि [उपलिप्त] लीपा हुभा, पोता उवरोह पुं [उपरोध] बाधा। प्रतिबन्ध । हुआ। नगर आदि का सैन्य द्वारा वेष्टन । निर्बन्ध, ' उवलीण देखो उवल्लीण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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