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________________ सामान्य गुण सामायिक सामायिक सामान्य निर्देश समता व साम्यताका लक्षण । वास्तवमें कोई पदार्थ इष्ट-अनिष्ट नहीं।-दे. राग/२/४ समताका महत्त्व। -दे. सामायिक/३/७॥ सामायिक सामान्यका व्युत्पत्ति अर्थ । सामायिक सामान्यके लक्षण । १. समता, २. रागद्वेष निवृत्ति, ३. आत्मस्थिरता, ४. सावद्ययोग निवृत्ति, ५. संयम तप आदिका एकत्व ६.नित्य-नै मित्तिक कर्म व शास्त्र । द्रव्यश्रुतका प्रथम अंग बाह्य सामायिक है। दे. श्रुतज्ञान/III/१। प्रतिक्रमण व सामायिकमें अन्तर । -दे. प्रतिक्रमण/३/१। ४ | द्रव्य क्षेत्रादि रूप सामायिकोंके लक्षण । नियत व अनियतकाल सामायिक । -दे, सामायिक/४/२।। ७. सामान्य विशेषके भेदाभेदका समन्वय आप्त. मी./३४-३६ सामान्यात्तु सर्वैक्यं पृथग्द्रव्यादिभेदतः । भेदाभेदव्यवस्थायामसाधारणहेतुबत् ॥३४॥ विवक्षा चाविवक्षा च विशेष्येsनन्तधर्मिणी। यतो विशेषणस्यात्र नासतस्तैस्तदर्थिभिः ॥३५॥ प्रमाणगोचरी सन्तौ भेदाभेदौ न संवृती। तावेकत्राविरुद्धौ ते गुणमुख्यविवक्षया ।३६। - सामान्यरूपसे देखने पर सब द्रव्य गुण कर्म आदि कोंमें एकत्व है और उनका भेद देखनेपर उनमें भेद है। तहाँ अभेद विवक्षामें सामान्य और भेद विवक्षामें 'विशेष' ये असाधारण हेतु हैं ।३४। अनन्त धर्मोंका आधारभूत जो विशेष्य उसमें सवरूप विशेषणकी ही विवक्षा होती है, असवरूपकी नहीं। और यह विवक्षा वक्ताकी इच्छापर निर्भर है ।३। इसलिए वस्तुमें भेद व अभेद दोनों ही प्रमाण गोचर होनेसे प्रमार्थभूत हैं । मुख्य व गौणकी विवक्षासे ये दोनों स्याद्वाद मतमें अविरुद्ध हैं ।३६। पं.ध./पू./२७५ उभयोरन्यतरस्योन्मग्नत्वादस्ति नास्तीति ।२७५॥ - इन दोनों में से किसी एककी मुख्य विवक्षा होनेसे कालकृत अस्ति व नास्ति ये दो विकल्प पैदा होते हैं । सामान्य गुण-दे. गुण/१ । सामान्य ग्राहक दर्शन दे. दर्शन/१ । सामान्य छल-दे. छल। सामान्यतोदृष्ट-दे. अनुमान/५/६ । सामान्य नय:-दे. नय/I/५/४ । सामान्याधिकरणभिन्नप्रवृत्तिनिमित्तानां शब्दानामेकस्मिन्नर्थे वृत्तिः सामान्याधिकरण्यम् । यथा 'तव त्वमसि'। = भिन्न-भिन्न अर्थों की प्रवृत्तिमें निमित्तभूत जो शब्द उनकी एक ही अर्थ में वृत्ति होना सामान्याधिकरण्य है । जैसे 'तत्त्वमसि' इस पदमें 'तत' का अर्थ अशरीरी ब्रह्म और त्वम्' का अर्थ शरीरी ब्रह्म अर्थात् जीवात्मा। ये दोनों एक हैं, ऐसे इस पदका अर्थ है । २. लक्ष्य लक्षण में सामानाधिकरण्य। -दे, लक्षण । सामान्यावलोकन-दे. दर्शन/१,२। २ सामायिक विधि निर्देश * NA १ सामायिक विधिके सात अधिकार । सामायिक योग्य काल। | सामायिक विधि। सामायिक में आसन मुद्रा क्षेत्र आदि । | सामायिक मन, वचन, काय शुद्धि। -दे. शुद्धि।। सामायिक योग्य ध्येय। उपसर्ग आदिमें अचल रहना चाहिए। सामायिककी सिद्धिका उपाय अभ्यास है। -दे. अभ्यास । * ३ सामायिक व्रत व प्रतिमा निर्देश सामायिक व्रतके लक्षण। १. समता व आर्त रौद्र परिणामोंका त्याग । २. सावद्ययोग निवृत्ति। सामायिक-सुख-दुःख, लाभ-अलाभ, इष्ट-अनिष्ट आदि विषमताओं में राग-द्वेष न करना बल्कि साक्षी भाव से उनका ज्ञाता द्रष्टा बने हुए समतास्वभावी आत्मामें स्थित रहना, अथवा सर्व सावद्य योगसे निवृत्ति सो सामायिक है । आवश्यक, चारित्र, व्रत व प्रतिमा चारों एक ही प्रकारके लक्षण हैं । अन्तर केवल इतना है कि श्रावक उस सामायिकको नियतकालका नियतकाल पर्यन्त धारकर अभ्यास करता है और साधु का जीवन ही समतामय बन जाता है। श्रावक की उस सामायिकको व्रत या प्रतिमा कहते हैं और साधु की उस सार्वकालिक समताको सामायिक चारित्र कहते हैं। rm".१v * सामायिक प्रतिमाका लक्षण । सामायिक व्रत व प्रतिमामें अन्तर । सामायिकके समय गृहस्थ भी साधु तुल्य है। साधु तुल्य होते हुए भी वह संयत नहीं है। सामायिक व्रतका प्रयोजन । सामायिक व्रतका महत्त्व। सामायिक व्रतके अतिचार। स्मृत्यनुपस्थान व मनःदुष्प्रणिधानमें अन्तर । -दे.स्मृत्यनुपस्थान । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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