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________________ सप्तभंगी : नास्ति चावत एव घट इति सप्तमभङ्गः । घटादिरूपक वस्तुविशेयकसत्वासत्त्वविशिष्टावक्तव्यत्वप्रकारक बोधजनकवाक्यत्वं तल्लक्षणम् (७२ / १ ) । = १ अन्य धर्मोका निषेध न करके विधि विषयक बोध उत्पन्न करनेवाला प्रथम भंग है । वह 'कथंचित घट है' इत्यादि बचन रूप है २ धर्मान्तरका निषेध न करके निषेध विषयक बोधजनक वाक्य द्वितीय भंग है । 'कथंचित घट नहीं है' इत्यादि वचनरूप उसका आकार है । ( २०/३) । ३. 'किसी अपेक्षासे घट है किसी अपेक्षासे नहीं है' यह तीसरा भंग है । घट आदि रूप एक धर्मी विशेष्यवाला तथा कमसे योजित विधि प्रतिषेधशेष जनक वाक्यस्व, यह तृतीय भंगका लक्षण है । क्रमसे अर्पित स्वरूप पररूप द्रव्य आदिकी अपेक्षा अस्ति नास्ति आत्मक घट है। यह विषय निरूपित है । ४. सह अर्पित स्वरूप पररूप आदिकी विवक्षा करनेपर किसी अपेक्षासे घट अवाच्य है यह चतुर्थ भंग होता है । घटादि पदार्थ विशेष्यक और अवक्तव्य विशेषणवाले बोध ( ज्ञान ) का जनक वाक्यत्व, इसका लक्षण है । ( ६०/१) ५. पृथक् भूत द्रव्य और मिलित द्रव्य व पर्याय इनका आश्रय करके 'कथं चित घट अवक्तव्य है इस भंगकी प्रवृत्ति होती है । घट आदिरूप धर्मी विशेष्यक और सत्व सहित अवक्तव्य विशेषणवाले ज्ञानका जनक वाक्यत्व, यह इसका लक्षण है। इस भंगमें द्रव्यरूपसे अस्तित्व, और एक युगपत् द्रव्य व पर्याय को मिलाके योजन करनेसे अवक्तव्यत्वरूप विवक्षित है । ६. ऐसे ही पृथगभूत पर्याय और मिलित व्य व पर्यायका आश्रय करके 'किसी अपेक्षा से घट नहीं है तथा अवक्तव्य है' इस भंगकी प्रवृत्ति होती है । घट आदि रूप एक पदार्थ विशेष्यक और असत्त्व सहित अवक्तव्यत्व विशेषणवाले ज्ञानका जनक वाक्यत्व, इसका लक्षण है । ७. क्रम से योजित तथा युगपत् योजित द्रव्य तथा पर्यायका आश्रय करके. 'किसी अपेक्षासे सत्त्व असत्त्व सहित अवक्तव्यत्वका आश्रय घट, इस सप्तम भंगकी प्रवृत्ति होती है । घट आदि रूप एक पदार्थ विशेष्यक और सत्त्व असत्त्व सहित अवक्तव्यस्थ विशेषणवाले ज्ञानका जनक वाक्य इसका लक्षण है। ( और भी दे, नय / I /५/२ ) ४. भंग सात ही हो सकते हैं होनाधिक नहीं रा. वा./४/४२/१२/२५३/० पर उसे भंगा से सं दु भवदि जस्स जथा । वत्थुत्ति तं पउच्चदि सामण्णविसेसदो नियद । = प्रश्नके वशसे ही भंग होते हैं। क्योंकि वस्तु सामान्य और विशेष उभय धर्मों से युक्त है। श्लो. वा./२/१/६/४६-५२ / ४९४ / २६ ननु च प्रतिपर्यायमेक एव भङ्गः पाचनस्य न तु भक्तेः पर्यायशस्तु स्वयमः सहसा अति निम रिति चेत नेतत्सार प्रश्नमाविति वचनात् तस्य स प्रवृत्ती मनिश्वसन्ति प्रश्नस्य तु सप्तचा प्रवृत्तिः वस्तुम्पेयस्य पर्यायस्याणिामापसिद्धिः । प्रश्नप्रत्येक पर्यायकी अपेक्षासे वचनका भंग एक ही होना चाहिए। सात भंग नहीं हो सकते, क्योंकि एक अर्थका सात प्रकार से कहना अशक्य है | पर्यायवाची सात शब्दों करके एकका निरूपण करोगे तो सातका नियम कैसे रहा ! हजारों भंगोंके समाहारका निषेध भी नहीं कर सकते हो ? उत्तर - यह कथन सार रहित है। क्योंकि, प्रश्नके वश ऐसा पद डालकर कहा है । प्रश्न सात प्रकारसे प्रवृत्त हो रहा है तो उसके उत्तर रूप वचनको सात-सात प्रकारपना युक्त ही है । और यह वस्तु एक पर्यायके कथन करनेपर अन्य प्रतिषेध, अवक्तव्य आदि पर्यायों के आक्षेप कर लेने से सिद्ध है। 1 Jain Education International - स.भंत / पर उद्धृत श्लोक - भङ्गास्सत्यादयस्तप्त संशयास्सप्त तद्गताः । सात सप्त स्युः प्रश्नास्तोत्तराभ्यपि कचित् पट है' इत्यादि वाक्य में सत्व आदि सप्त भंग इस हेतुसे हैं कि उनमें स्थिति ३१५ २. प्रमाण नय स सभंगी निर्देश 9 संशय भी सप्त है और संशय के लिए जिज्ञासाओंके भेद भी सह हैं, और जिज्ञासाओंके भेदसे ही रूप्त प्रकार के प्रश्न तथा उत्तर भी हैं। (स्था. म. / २२/२०२/१४.९७); (स. मं. उ/४/०)। 18/9) 1 ५. दो या तीन ही भंग मूल स्या. म. / २४ / २०६ / १२ अमीषामेव त्रयाणां ( अस्ति नास्ति अवक्तक्यानां गुरुवरवाच्च संयोगत्वेनामीवायादिति । क्योंकि आदिके ( अस्ति, नास्ति व अवक्तव्य ये ) तीन भंग ही मुख्य भंग हैं, शेष भंग इन्हीं तीनोंके संयोग बनते हैं, अतएव उनका इन्हीं में अन्तर्भाव हो जाता है । स.भ. उ/०५/६ इत्येव सिद्ध उत्तरे च भा एवमेव योजयितव्याः । - इस रीति से मूलभूत ( अस्ति नास्ति ) दो भंगकी सिद्धि होनेसे उत्तर भंगोंकी योजना करनी चाहिए। ६. स्यात्कारका प्रयोग कर देने पर अन्य अंगोंकी क्या आवश्यकता रा. मा. / ४/४२/१४/२/३/१३/२० यद्ययमनेकान्तार्थस्तेनैव सर्वस्योपादानात् इतरेषां पदानामानर्थक्यं प्रसज्यते, नैष दोषः सामान्येनोपादानेऽपि विशेषाविना विशेषोऽनुप्रयोक्तव्यः ॥१३॥ स्याद स्त्येव जीवः इत्यनेनैव सकज़ादेशेन जीवद्रव्यगतानां सर्वेषां धर्माण संग्रहात् इतरेषां भङ्गानामानर्थक्यमासजति नैष दोषः : गुणप्राधान्यव्यवस्थाविशेषप्रतिपादनार्थस्य सर्वेषां भज्ञान प्रयोगोऽवा 7 रन-यदि इस 'स्यात्' शब्द अनेकान्तार्थका योतन हो जाता है. तो इतर पदों के प्रयोगका क्या अर्थ है ? ऐसा प्रसंग आता है। उत्तरइसमें कोई दोष नहीं है; क्योंकि सामान्यतया अनेकान्तका द्योतन हो जानेपर भी, विशेषार्थी विशेष शब्दका प्रयोग करते हैं। प्रश्नयदि स्थात अस्त्येव जीवः' यह वाक्य सकलादेशी है तो इसी से जीव द्रव्य के सभी धर्मोका संग्रह हो ही जाता है, तो आागेके भंग निरर्थक हैं उत्तर गौण और मुख्य सभी गाँकी सार्थकता है। - २. प्रमाण नय सप्तभंगी निर्देश १. प्रमाण व नय सप्तभंगीके लक्षण व उदाहरण 1 रा. बा./४/४५/१५/२२३ / २ समावेश आवेशवाद सभी प्रतिपदं वेदितव्यां । तद्यथा - स्यादस्त्येव जीवः, स्यान्नास्त्येव जीवः, स्यादवक्तव्य एव जीवः स्यादस्ति च नास्ति च स्यादस्ति चावक्तव्यश्च, स्यान्नास्ति चावक्तव्यश्च स्यादरित च नास्ति चावक्तव्यश्च इत्यादि । स्यादस्रयेय जीव इत्येतस्मिन् वाक्ये जीवशब्दो व्यवचनः विशेष्यत्वात अस्तीति गुणवचनो विशेषणत्वात । तयोस्सामान्यार्याविन विशेषणविशेष्यसंबन्धावद्योतनार्थ .. एवकारः । रा. वा./४/४२/१७/२६०/२२ तत्रापि विकलादेशे तथा आदेशवशेन सप्तभङ्गी मी वेदितव्या... तद्यथा सर्वसामान्यादिषु द्रव्याथविशेषु केनचिदुपलभ्यमानत्वादस्यादस्त्येवात्मेति प्रथमो वि ** शेषभङ्गेष्वपि विनसितांशमात्ररूपणायाम् इतरेष्वोदासीन्येन कादेशमा योज्या १. इस सलादेशमें प्रत्येक धर्मकी अपेक्षा सप्तभंगी होती हैं । १. स्यात् अस्त्येव जीवः २. स्यात् नास्त्येव जीवः, ३. स्यात् अवक्तव्य एव जीवः, ४. रयात् अस्ति च नास्ति च ५ स्यात् अस्ति च अवक्तव्यश्च ६ स्यात् नास्ति च अवक्तव्यश्च ७ स्यात् अस्ति नास्ति च अवक्तव्यश्च । ... ... 'स्यात्' 'अस्त्येव जीवः ' इस वाक्य में जीव शब्द विशेष्य है द्रव्यवाची है और अस्ति शब्द विषय है गुणवाची है उनमे विशेषणविशेष्यभाव द्योतनके लिए 'एव' का प्रयोग है। २ विकलादेश में भी सप्त जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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