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________________ Jain Education International द्रव्यको अपेक्षा क्षेत्रको अपेक्षा कालको अपेक्षा संख्या मार्गणा गुणस्थान ष,खं. प्रमाण ष.खं. प्रमाण अंस. का प्रमाण प्रमाण अनं. लोक अनं,लोक अनं. उत. अवसे अन पहृत - : : बादर निगोद सामान्य , पर्याप्त " अपर्याप्त सामान्य , पर्याप्त , अपर्याप्त : : घ.३/पृ.३३४ घ.३/पृ.३३४ बादर बन. प्रत्येक सामान्य " " " पर्याप्त । . . अपर्याप्त MAnamom GG असं. लोक अर्स, असं. लोक प्ररूपणाका कोई उपाय नहीं असं. उत अवसे अपहृत प्ररूपणाका कोई उपाय नहीं। ध.३/पृ.३३४ घ.३/पृ.३३४ त्रसकायिक सामान्य For Private & Personal Use Only प्ररूपणाका कोई उपाय नहीं ज, प्र.+ (सूर्यगुल/असं.) प्ररूपणाका कोई उपाय नहीं । पंचेन्द्रिय सामान्यवत् . पर्याप्त , , अपर्याप्त सर्वत्र उपरोक्तवत जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश १०२ ३ UN १ m पर्याप्त " . अपर्याप्त स्थावर कायिकोंके उपरोक्त सर्व विकल्प त्रस कायिक सामान्य . पर्याप्त त्रस सा. व पर्याप्त ज.प्र. (सूच्यंगुल/असं.)२ ज.प्र. (सूच्यंगुल सं.२ । ३ ally . असं. उत. अबसे अपढ़त ओघवत ३१०२ 23 पंचेन्द्रिय अप. ( या विकलेन्द्रिय अप.+पचेन्द्रिय अप.) बत् त्रस कायिक अप. ४. योगमार्गणापाँचों मनोयोगी (गो. जी./२५६-२७०/२७१ -५८६) देव सा/असं असं. ३. संख्या विषयक प्ररूपणाएँ बचन योगी सा, ७ ट ज.प्र. - (सूच्यं गुल/सं.)२ ७६७ असं. उत. अवसे अपहृत www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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