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________________ Jain Education International द्रव्यकी अपेक्षा क्षेत्रको अपेक्षा कालकी अपेक्षा संख्या मार्गणा गुणस्थान खं. प्रमाण ष.खं. प्रमाण असं.का प्रमाण प, वं. प्रमाण ७६ घ.३/पृ.३३४ असं. लोकध,३/१३३४ प्ररूपणाका कोई उपाय नहीं असं. ७५७२ - ज. प्र. (सूच्यंगुल/असं.)२ असं लोक ध.३/१३३४ प्ररूपणाका कोई उपाय नहीं matam GGIndia प्ररूपणाका कोई उपाय नहीं| असं. उत. अवसे अपहृत । प्ररूपणाका कोई उपाय नहीं बादर अप कायिक सामान्य " , पर्याप्त " अपर्याप्त सामान्य " पर्याप्त " अपर्याप्त " सामान्य ध.३/पृ.३३४ तेज. " " GGIN ७७२-७३ (असं, आवली)२ (आ.२ से नीचे) असं. लोक For Private & Personal Use Only जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश १०१ 99 .59019 M - असं. असं. लोक ७७.१.१८ । लोक/असं प्रमाण असं ज.प्र. प्ररूपणाका कोई उपाय नहीं असं. उत. अवसे अपहृत प्ररूपणाका कोई उपाय नहीं ध./.३३४ ध.३/पृ.३३४ पर्याप्त .. अपर्याप्त १. सामान्य , पर्याप्त " , अपर्याप्त + सामान्य बादर बायु ", " ! " " पर्याप्त . . अपर्याप्त . " सामान्य " " " पर्याप्त " " " अपर्याप्त बनस्पति सामान्य बादर बनस्पति " " " . " पर्याप्त . . , अपर्याप्त सूक्ष्म " " सामान्य , पर्याप्त " , अपर्याप्त निगोद , सामान्य :::: AmNGa GIN अनं.लोक अनं. उत अवसे अनपहृत ३. संख्या विषयक प्ररूपणाएँ www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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