________________
मेखलापुर
३२०
मैगस्थिनीज
मेखलापुर-विजयाको दक्षिण श्रेणीका एक नगर-दे० विद्या
घर । मेघंकरो-नन्दनवनके नन्दनकूटको स्वामिनी एक दिक्कुमारी
देवी।-दे० लोका। मेघ-सौधर्म स्वर्गका २०वाँ पटल-दे. स्वर्ग/५/३।। मेघकूट-विजयाध की दक्षिण श्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर । मेघचंद्र-१. नन्दि संघ बलात्कार गण में माणिक्य नन्दि के शिष्य तथा शान्ति कीति के गुरु । समय--शक ६०१-६२७ । दे. इतिहास/ ७/२। २. नन्दि संघ देशीयगण त्रैकाख्ययोगी के शिष्य, अभयनन्दि तथा नेमिचन्द्र सिद्वान्त चक्रवर्ती के सहधर्मा और वीरनन्दि तथा इन्द्रनन्दि के शिक्षा गुरु। इन्द्रनन्दि जी पहले आपके शिष्यत्व में थे, परन्तु पीछे विशेष अध्ययन के लिए अभयनन्दि की शरण में चले गये थे। कृति-ज्वालामालिनी रूप ई.६३१ में पूरा किया। समय ई. ६५०-६११। इतिहास/७/५। ३ मन्दिसंब वेशीयगण में सक्लचन्द्र के शिष्य और वीरनन्दि तथा शुभचन्द्र के गुरु । शक १०३७ में समाधि हुई । समय-ई १०२०-१११० । दे इतिहास/७/५ । मेघचारण-दे० ऋद्धि/४। मेवनाद-म./६३/श्लोक नं0-भरतक्षेत्र विजया पर्वतकी उत्तर
श्रेणीमें गगनवल्लभ नगरके राजा मेघवाहनका पुत्र था। दोनों श्रेणियोका राजा था। (२८-३०)। किसी समय प्रज्ञप्ति विद्या सिद्ध करता था। तब पूर्व जन्मके भाई अपराजित बलभद्रके जीवके समझाने पर दीक्षा ले ली। (३१-३२) । असुरकृत उपसर्गमें निश्चल रहे। (३३-३५)। सन्यासमरणकर अच्युतेन्द्र हुए। (३६)। यह शान्तिनाथ भगवान्के प्रथम गणधर चक्रायुधके पूर्वका छठा भव है।
-दे० चक्रायुध। मेघमाल-१ विजयार्धकी उत्तरप्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर। २. अपरविदेहस्थ एक वक्षार । अपरनाम 'देवमाल'।
-दे० लोक/५/३। मेघमाला व्रत-५ वर्ष तक प्रतिवर्ष भाद्रपद कृ. १,८,१४, शु. १, ८.१४ तथा आसौज कृ.१ इन सात तिथियों में सात-सात करके कुल ३५ उपवास करे। नमस्कार मन्त्रका त्रिकाल जाप्य करे। (बतविधान संग्रह/पृ.८४)। मेघमालिनी-नन्दनबनके हिमकुटकी स्वामिनी दिक्कुमारी
देवी। -दे० लोकाश मेघरथ-म, पु/६३/श्लोक नं.-पुष्कलावती देशमें पुण्डरीकिणी नगरीके राजा घनरथका पुत्र था। (१४२-१४३)। इनके पुण्यके प्रतापसे एक विद्याधरका विमान इनके ऊपर आकर अटक गया। क्रुद्ध होकर विद्याधरने शिला सहित इन दोनों पिता-पुत्र को उठाना चाहा तो उन्होने पॉवके अँगूठेसे शिलाको दबा दिया। विद्याधरने क्षमा मांगी और चला गया। (२३६-२३६,२४८)। इन्द्र सभामें इनके सम्यक्त्वकी प्रशसा सुनकर दो देवियाँ परीक्षाके लिए आयीं, परन्तु ये विचलित न हुए। (२८४-२८७ )। पिताने धनरथ तीर्थकरका उपदेश सुन दीक्षा ले ली। और तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध किया। (३०५-३११,३३२) । अन्तमें सन्यासमरण कर अहमिन्द्र पद प्राप्त किया। ( ३३६-३३७)। यह शान्तिनाथ भगवान्का पूर्वका दुसरा भव है 1-दे० शान्तिनाथ । मेघवती-नन्दनवनके मन्दिर कूटकी स्वामिनी दिक्कुमारी देवी।
-दे० लोक/५/५ ।
मेघवाहन-१५ पु.//श्लोक नं -"सगर चक्रवर्तीके ससुर सुलो
चन के प्रतिद्वन्दी पूर्ण घनका पुत्र था। (८७)। सुलोचनके पुत्र द्वारा परास्त होकर भगवान् अजितनाथके समवशरणमें गया। (८७-८८)। वहाँ राक्षसोके इन्द्र भीम व सुभीमने प्रसन्न होकर उसको लका व पाताललंकाका राज्य तथा राक्षसी विद्या प्रदान की। (१६१-१६७)। अन्तमे अजितनाथ भगवान्से दीक्षा ले ली। (२३६-२४०)। २ प. पू./सर्ग/श्लोक-"रावणका पुत्र था ( १५८) । लक्ष्मण द्वारापरावणके
मारे जानेपर विरक्त हो दीक्षा धारण कर ली।(७८/८१-८२)"मेघा-नरक की तृतीय पृथिवी-दे० नरक / तथा लोक/स। मेचक-[आत्मा कथंचित् मेचक है अर्थात अनेक अवस्था रूप है।
(दे० स सा./आ./१६/क १६) ] । मेद-औदारिक शरीरकी एक धातु विशेष । -३० औदारिक १/७ । मधा-ध. १३/५,५,३७/२४२/५ मध्यति परिच्छिनत्ति अर्थमनया इति मेधा। - जिसके द्वारा पदार्थ 'मेष्यति' अर्थात् जाना जाता है
उस अवग्रहका नाम मेधा है। मय-ध १२/४,२,८,१०/२८५/१० मेयो यव-गो-धूमादि। -मापनेके
योग्य जो गेहूँ आदि मेय कहे जाते है। मेरक- अपर नाम मधु-दे० मधु । मेरु-१. समेरु पर्वत-दे० मुमेरु । २. वर्तमान भूगोलकी अपेक्षा
मेरु-दे० सुमेरु । ३. म. पु./५६/श्लोक नं.-"पूर्व भव नं.हमें कोशल देशमें वृद्धग्राम निवासी मृगायण ब्राह्मणकी स्त्री मथुरा थी।२०७। पूर्व भव नं.८ में पोदन नगरके राजा पूर्णचन्द्र की पुत्री रामदत्ता हुई।। २१०)। पूर्व भव नं.७ में महाशुक्र स्वर्गमें भास्कर देव हुआ। (२२६)। पूर्व भव नं.६ में धरणीतिलक नगरके राजा अतिवेगकी पुत्री श्रीधरा हुई। (२२८) । पूर्व भव नं.५ में कापिष्ठस्वर्ग के रुचक विमानमें देव हुआ। (२३८)। पूर्व भव न.४ में धरणी तिलक नगरके राजा अतिवेगकी पुत्री रत्नमाला हुई। ( २४१-२४२) । पूर्व भवनं.३ में स्वर्ग में देव हुआ और पूर्व भव न. २ में पूर्व धातकीखण्डके गन्धिल देशके अयोध्या नगरके राजा अर्हदासका पुत्र 'वीतभय' नामक बलभद्र हुआ। (२७६-२७६)। पूर्वभवमे लान्तव स्वर्गमें आदित्यप्रभ नामक देव हुआ। (२८०)। वर्तमान भवमें उत्तर मथुरा नगरीके राजा अनन्तवीर्य का पुत्र हुआ। (३०२) । पूर्व भवके सम्बन्ध सुनकर भगवान् विमलवाहन (विमलनाथ ) के गणधर हो गये। (३०४ )। सप्त ऋद्धि युक्त हो उसी भवसे मोक्ष गये। (३०१)।" -[ युगपत सर्व भवके लिए। -दे०
म. पु/५६/३०८-३०६] । मरुकाति-नन्दिसघनलात्कार गण के अनुसार आप शान्तिकी तिके शिष्य थे। समय-विक्रम शक स ६४२-६८० (ई.७२०-७५८) ।
-दे० इतिहास/७/२। मेरुपंक्ति व्रत-अढाई द्वीपमें सुदर्शन आदि पाँच मेरु है (दे० सुमेरु)। प्रत्येक मेरुके चार-चार वन है। प्रत्येक बनमें चार-चार चैत्यालय है। प्रत्येक बनके चार चैत्यालयोके चार उपवास व चार पारणा, तत्पश्चात एक बेला एक पारणा करे। इस प्रकार कूल ८० उपवास, २० बेले और १०० पारणा करे। "ओं ह्रीं पचमेरुसम्बन्धी अस्सीजिनालयेभ्यो नम" अथवा "ओ ह्रीं ( उस-उस मेरुका नाम) सम्बन्धी षोडश जिनालयेभ्यो नम" इस मन्त्रका त्रिकाल जाप्य करे । (व्रत-विधान संग्रह )। मैगस्थिनीज-यूनानी राजदूत था। सैल्युकसने चन्द्रगुप्त मौर्यको
राजसभामें भेजा था। भारतमें आकर पाटलिपुत्रमे रहा था। समय ई.पू ३०२-२६८ । ( वर्तमान भारत इतिहास )।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org