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मरण भय
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मल्ल
त्तायो। -प्रश्न--पूर्व शरीरको न छोडते हुए जीवके विग्रह गतिमे अपवा अजुगतिमें जो गमन होता है, वह किस र्मका फल है । उत्तर-नही, क्यो कि, पूर्व शरीरको नहीं छोडनेवाले उस जीवके पर्व क्षेत्रके परित्यागके अभावसे गमनका अभाव है ( अत. वहाँ आनुपूर्वी नामकर्म कारण नही हो सकता)। पूर्व शरीरको नही छोड़नेपर भी जीव प्रदेशो का जो प्रसार होता है, वह निष्कारण नहीं है, बयोकि, वह आगामी भत्रसम्बन्धी आयुकर्मके सत्त्वका फल है। मरण भय-दे० भय।
अनेक भेद है ।१४। अथवा जीवोके पापको उपचारसे मल कहा जाता है ।१७। (ध. १/९.१,१/३२/६) । घ.१/१,१,१/३३/२अथवा अर्थाभिधानप्रत्ययभेदात्त्रिविध मलमा उक्तमर्थमलमाअभिधानमल तद्वाचक शब्दः । तयोरुत्पन्नबुद्धि. प्रत्ययमलम् । अथवा चतुर्विध मलं नामस्थापनाद्रव्यभावमलभेदात । अनेकविध वा। -अथवा अर्थ, अभिधान व प्रत्ययके भेदसे मल तीन प्रकारका होता है। अर्थमल तो द्रव्य व भावमलके रूपमें ऊपर कहा जा चुका है। मलके वाचक शब्दोंको अभिधानमल कहते है। तथा अर्थमल और अभिधानमलमे उत्पन्न हुई बुद्धिको प्रत्ययमल कहते है। अथवा नाममल, स्थापनामल, द्रव्यमल और भावमलके भेदसे मल चार प्रकारका है। अथवा इसी प्रकार विवक्षा भेदसे मल अनेक प्रकारका भी है। २. सम्यग्दर्शनका मल दोष अन. घ./२/११/१८३ तदप्यलब्धमाहात्म्यं पाकात्सम्यक्त्वकर्मण । मलिन
मलसड्गेन शुद्ध स्वर्ण मिवोद्भवेत् ।५।। अन. ध./२/६१ मे उधृत-वेदक मलिनं जातु शड्काद्यै यत्कलं कयते ।
-जिस प्रकार शुद्ध भी स्वर्ण चॉदी आदि मलके ससर्गसे मलिन हो जाता है उसी प्रकार सम्यक् प्रकृतिमिथ्यात्व नामक कर्म के उदयसे शुद्ध भी सम्यग्दर्शन मलिन हो जाता है । ५६ (गो.जी./जी.प्र/२५॥ ५१/२२ मे उद्धृत) शंका आदि दुषणोंसे कल कित सम्यग्दर्शनको मलिन कहते है। ३. अन्य मलों का निर्देश १. शरीरमें मलका प्रमाण
-दे० औदारिक/१॥ २. मल-मूत्र निक्षेपण सम्बन्धी
-दे० समिति/१ मे प्रतिष्ठापना समिति ।
मराचि-१. यह भगवान् महावीर स्वामीका दूरवर्ती पूर्व भव है (दे० वर्धमान ) पूर्वभव न०२ मे पुरुरवा नामक भील था। पूर्वभव न०१ मे सौधर्म स्वर्गमें देव हुआ। वर्तमान भवमें भरतकी अनन्तसेना नामक स्त्रीसे मरीचि नामक पुत्र हुआ। इसने परिव्राजक बन ३६३ मिथ्या मतोकी प्रवृत्ति की। चिरकाल भ्रमण करके त्रिपृष्ठ नामक बलभद्र और फिर अन्तिम तीर्थकर हुआ।(प, पु./३/२६३), (म. पु/६२/८८-६२ तथा ७४/१४,२०,५१,५६,१६६,२०४ ) । २. एक क्रियावादी-(दे० क्रियावाद)। मरु-१. किम्पुरुष जातिका एक व्यन्तर-दे० किपुरुष । मरुत-१. सौधर्म स्वर्गका १२ वॉ पटल-दे० स्वर्ग/१३२ एक
लौकान्तिकदेव-दे० लौकान्तिक । ३ वायु-दे० वायु । मरुत चारण-दे० ऋद्धि। मरुदेवी-भगवान् ऋषभनाथकी माता-दे० तीर्थकर/५ । मरुद्देव-१२ वे कुलकर-दे० शलाका पुरुष/१ । मरुप्रभ-किपुरुष जातिका एक व्यन्तर-दे० किपुरुष । मरुभूति-म.पू./७३/श्लोक--भरत क्षेत्र पोदनपुर निवासी विश्वभूति ब्राह्मण का पुत्र था । (७-६)। क्मठ इसका बड़ा भाई था. जिसने इसकी स्त्रीपर बलात्कार करनेके हेतु इसे मार डाला। यह मरकर सल्लकी वनमे वज्रघोष नामक हाथी हुआ। (११-१२)।
यह पार्श्वनाथ भगवान का पूर्वका वॉ भव है।-दे० पार्श्वनाथ । मर्मस्थान-औदारिक शरीरमें मर्मस्थानोका प्रमाण-दे०
औदारिक /१/७। मर्यादा-भोजनमें कालगत मर्यादाएँ-दे०.भक्ष्याभक्ष्य/१। मल-ति प //गाथा-दोणि वियप्पा होति हु मलस्स इमं दव्वभाव
भेएहि । दवमलं दुविहप्प बाहिरमन्भतरं चेय ।१०। सेदमलरेणुक्दमपहुदी बाहिरमल समुद्दिछ । पुणु दिढजीवपदेसे बिधरूनाइ पयडिठिदिआई।११॥ अणुभागपदेसाई चउहि पत्ते कभेज्जमाणं तु । णाणावरणप्पहूदी अट्ठविह कम्ममखिलपावरयं ।१२। अब्भतरदब्बमल जीवपदेसे णिबद्धमिदि हेदो। भावमलं णादव्य अगाणदसणादिपरिणामो ।१३। अहबा बहुभेयगयं णाणावरणादि दव्यभावमलभेदा १४ पायमलं ति भण्णइ उवचारसरूबएण जीवाण ।१७। - द्रव्य और भावके भेदसे मलके दो भेद है। इनमेसे द्रव्यमल भी दो प्रकारका है-बाह्य व अभ्यन्तर ।१०। स्वेद, मल, रेणु, कर्दम इत्यादिक बाह्य द्रव्यमल कहा गया है, और दृढ रूपसे जीवके प्रदेशोमे एक क्षेत्रावगाहरूप बन्धको प्राप्त, तथा प्रकृति स्थिति अनुभाग व प्रदेश इन चार भेदोसे प्रत्येक भेद को प्राप्त होनेवाला, ऐसा ज्ञानावरणादि आठ प्रकारका सम्पूर्ण कर्मरूपी पापरज, चूकि जीवके प्रदेशो में सम्बद्ध है, इस हेतुसे वह अभ्यन्तर द्रव्यमल है। अज्ञान अदर्शन इत्यादिक जीवके परिणामोको भावमल समझना चाहिए ।११-१३। अथवा ज्ञानाबरणादिक द्रव्यमलके और ज्ञानावरणादिक भावमलके भेदसे मल के
४. मल परिषह निर्देश स. सि.///४२६/४ अप्कायजन्तुपीडापरिहाराया मरणादस्नानवतधारिण' पटुरविकिरणप्रतापजनितप्रस्वेदावतपवनानीतपांमुनिचयस्य सिध्मकच्छूदद्रूदीर्ण कण्डूयायामुत्पन्नायामपि कण्डूयनविमर्दनसघट्टनविवर्जितमूर्ते स्वगतमलोपचयपरगतमलोपचयोरसंक्लपितमनस' सज्ज्ञानचारित्रविमलसलिलप्रक्षालनेन कर्ममलपङ्कनिराकरणाय नित्यमुद्यतमतेर्मलपीडासहनमाख्यायते। - अप्कायिक जीवोकी पीडाका परिहार करनेके लिए जिसने मरणपर्यन्त अस्नानव्रत स्वीकार किया है। तीदण किरणोके तापसे उत्पन्न हुए पसीनेमें जिसके पवनके द्वारा लाया गया धूलि संचय चिपक गया है। सिम दाद और खाजके होनेपर भी जो खुजलाने, मर्दन करने और दूसरे पदार्थ से घिसनेरूप क्रियासे रहित है। स्वगत मलका उपचय और परगत मलका अपचय होनेपर जिसके मन में किसी प्रकार विकल्प नहीं होता, तथा सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्ररूपी विमल जल के प्रक्षालन द्वारा जो कर्ममलपंकको दूर करनेके लिए निरन्तर उद्यतमति है, उसके मलपीडासहन कहा गया है। (रा. वा./8//२०/६११/
३३), (चा. सा./१२५१६)। मलद-भरत क्षेत्रमे पूर्व आर्यखण्डका एक देश-दे० मनुष्य/४ । मलय-१ भरतक्षेत्रमे मध्य आर्यखण्डका एक पर्वत-दे. मनुष्य/४ ।
२. मदास प्रेजिडेन्सीका मलाया प्रदेश (कुरलकाव्य/प्र. २१), मलयगिरि-प्रसिद्ध श्वेताम्बर टीका कार । -दे० परिशिष्ट । मलौषध-दे० ऋद्धि/७।। मल्ल-भरतक्षेत्रमें पूर्व आर्यस्खण्डका एक देश-दे० मनुष्य/४।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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