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मरण
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१. भेद व लक्षण
व परम निरुद्ध (२०१२। इनमे भी निरुद्धाविचार दो प्रकार है- प्रकाश
रूप और अप्रकाशरूप ।२०१६ (मू. आ./५8); (दे० निक्षेप/५/२) । रा.वा./७/२२/२/५५०/१६ मरणं द्विविधम- नित्यमरणं तद्भवमरणं
चेदि । -मरण दो प्रकारका है-नित्यमरण और तद्भवमरण । (चा. सा./४७/३)। भ.आ/वि./२५/८६/१०,१३ मरणानि सप्तदश कथितानि (६/१०)
१. अवीचिमरणं, २, तद्भवमरण, ३. अवधिमरणं, ४. आदिअतार्य, १. बालमरणं, ६. पंडितमरणं, ७ आसण्णमरणं, ८ माल डिदै, ६. ससल्लमरणं, १०. बलायमरणं, ११. वोसट्टमरणं, १२. विप्पाणसमरणं, १३ गिद्ध पुट्ठमरण, १४. भत्तपच्चक्रवाणं, १५. पाउवगमणमरण, १६. इगिणामरण, १७, केवलिमरण चेदि ।(८६/१३)। - मरण १७ प्रकारके बताये गये है-१.अवीचिमरण, २. तद्भवमरण, ३. अवधिमरण, ४. आदिअन्तिममरण, १. बालमरण, ६. पण्डितमरण, ७. ओसण मरण, ८. बालपण्डितमरण,६. सशक्यमरण, १०. बालाकामरण, ११. बोसट्टमरण, १२. विष्पाणसमरण, १३. गिद्धपुठ्ठमरण, १४. भक्तप्रत्यारण्यानमरण, ११. प्रायोपगमनमरण, १६.इगिनीमरण, १७. केवलिमरण । (तहाँ इनके भी उत्तर भेद निम्न प्रकार है)। (भा. पा/टी./३२/१४७-१४६). (विशेष दे० उस-उस मरणके लक्षण)।
मरण
नित्य (अवीचि)
बालबाल बाल
अवसन्न
सशल्या
पलाय
बाल पडित पडित पंडित | पंडित
। । । - अव्यक्त व्यवहार ज्ञान दर्शन चारित्र
(आसन) ।
वदना -कषाय -मोकषाय
४.बाल च पण्डितमरण सामान्य व उनके भेदोंके लक्षण भ. आ./मू./गा. पंडिदपंडिदमरणे खीणक्साया मरति केवलिणो। विरदाविरदा जीवा मरंति तदियेण मरणेण ।२७। पायोपगमणमरणं भत्तपइण्णा य इंगिणी चेव । तिविहं पंडिसमरणं साहुस्स जहुत्तचारिस्स ।२६। अविरदसम्मादिट्ठी मरति मालमरणे चउत्थम्मि। मिच्छादिट्ठी य पुणो चमए बालबालभिम ।३०। इह जे विराधयित्ता मरणे असमाधिणा मरेज्जण्ह । तं तेसि मालमरणं होइ फलं तस्स पुन्बुत्तं ॥१९६१ - क्षीणकषाय केवली भगवान् पण्डितपण्डित मरणसे मरते है। (भ, आ /मु./२१५६) विरताविरत जीवके मरणको बालपण्डितमरण कहते है। (विशेष दे० अगला सन्दर्भ ) ॥२७॥ (भ. आ./मू-/२०७८), (भ. आ./वि./२४८८/२१)। चारित्रवान मुनियोको पण्डित मरण होता है । वह तीन प्रकारका है-भक्त प्रत्याख्यान, इंगिनी व प्रायोपगमन ( इन तीनोके लक्षण दे० सक्लेखना) २६॥ अविरत सम्यग्दृष्टि जीवके मरणको बालमरण कहते हैं। और मिथ्यादृष्टि जीवके मरणको बालबाल मरण कहते हैं ।३०। अथवा रत्नत्रयका नाश करके समाधिमरणके बिना मरना बालमरण
है।१९६२॥ भ. आ/मू-/२०६३-२०८४/१८०० आसुक्कारे मरणे अब्बोच्छिण्णाए जीविदासाए। णादीहि वा अमुक्को पच्छिमसल्लेहणपकासी।२०८३१ आलोचिदणिस्सन्लो सघरे चेवारुहितु संथार । जदि मरदि देस विरदो तं बुत्तं बालपंडिदयं ।२०८४ा-इन १२ व्रतोंको पालनेवाले गृहस्थको सहसा मरण आनेपर, जीवितकी आशा रहनेपर अथवा बन्धुओंने जिसको दीक्षा लेनेकी अनुमति नही दी है, ऐसे प्रसंगमें शरीर सल्लेखना और कषाय सल्लेखना न करके भी आलोचना कर, नि शल्य होकर घरमें ही सस्तरपर आरोहण करता है । ऐसे गृहस्थकी
मृत्युको बालपण्डितमरण कहते हैं ।२०८३-२०८४। मू. आ /गा. जे पुण पणहमदिया पचलियसण्णाय वक्कभावा य । असमाहिणा मरते णहु ते आराहिया भणिया ।६०। सत्यग्गण विसभरवणं च जलण जलप्पवेसोय । अणयारभंडसेवी जम्मणमरणाणुबंधीणी७४। णिमम्मो जिरह कारो णिकसाओ जिदिदिओ धीरो। अणिदाणो दिविसंपण्णो मरतो आराहओ होइ।१०३/-जो नष्टबुद्धिवाले अज्ञानी आहारादिकी वांछारूप संज्ञावाले मन वचन कायकी कुटिलतारूप परिणामवाले जीव आर्तरौद्र ध्यानरूप असमाधिमरण कर परलोकमें जाते है, वे आराधक नहीं है ।६० शस्त्रसे, विषभक्षणसे, अग्नि द्वारा जलनेसे, जलमें डूबनेसे, अनाचाररूप वस्तुके सेवनसे अपघात करना जन्ममरणरूप दीर्घ संसारको बढानेवाले है अर्थात बालमरण हैं ।७४। निर्मम, निरहंकार, निष्कषाय, जितेन्द्रिय, धीर, निदान रहित, सम्यग्दर्शन सम्पन्न जीव मरते समय आराधक होता है, अर्थात् पण्डित मरणसे मरता है ।१०३। भ. आ./वि./२५/०७/२१ बालमरणमुच्यते-बालस्य मरणं, स च पालः पञ्चप्रकार'-अव्यक्तबाल., व्यवहारबाला, ज्ञानबाल, दर्शनबाल', चारित्रबाल' इति । अव्यक्त शिशु , धर्मार्थकामकार्याणि यो न वेत्ति न च तदाचरणसमर्थशरीर सोऽव्यक्तबाल' | लोकवेदसमयव्यवहारान्यो न वेत्ति शिशु सौ व्यवहारबाल । मिथ्यादृष्टि' सर्वथा तत्त्वश्रद्धानरहिता दर्शनबाला'। वस्तुयाथात्म्यग्राहिज्ञानन्यूना ज्ञानबाला'। अचारित्रा' प्राणभृतश्चारित्रबाला' [.. दर्शनबालस्य पुनः सक्षेपतो द्विविध मरणमिष्यते। इच्छया प्रवृत्तमनिच्छ येति च । तयोराद्यमग्निना धमेन, शस्त्रेण, उदकेन, मरुत्प्रपातेन, ..विरुद्धाहारसेवनया बाला मृति ढौक्न्ते, कुतश्चिनिमित्ताज्जीवितपरित्यागैषिणः; काले अकाले वा अध्यवसानादिना यन्मरणं जिजीविषो तहद्वितीयम् । पण्डितमरणमुच्यते-व्यवहारपण्डित , सम्यक्त्वपण्डितः, ज्ञानपण्डितश्चारित्रपण्डित इति चत्वारो विकल्पा । लोकवेदसमय
अनिच्छा प्रवृत्त
इच्छा प्रवृत्त
काल
अकाल शस्त्र विष अग्नि जल
। (गृखपृष्ठ)
अवधि बशात आद्यन्त विप्राणस व्यवहार ज्ञान सम्यवस्व चारित्र
इन्द्रिय कषाय नोकषाय
भक्तप्रत्या- इगिनी प्रायोप-केवली
ख्यान गमन
सविचार
अविचार
निरुद्ध निरुद्धतर निरुद्धतम
प्रकाश अप्रकाश ३.नित्य व तद्भव मरणके लक्षण रा. वा./७/२२/२/५५०/२० तत्र नित्यमरणं समयसमये स्वायुरादीना निवृत्तिः । तद्भवमरणं भवान्तरप्राप्त्यनन्तरोपश्लिष्टं पूर्व भवविगमनम् । म प्रतिक्षण आयु आदि प्राणोका बराबर क्षय होते रहना नित्यमरण है (इसको ही भ. आ. व भा पा. मे 'अवीचिमरण' के नामसे कहा गया है)। और नूतन शरीर पर्यायको धारण करनेके लिए पूर्व पर्यायका नष्ट होना तद्भवमरण है। (भ. आ./वि /२५/८६/१७); (चा. सा./४७/४); (भा. पा./टी/३२/१४७/६) ।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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