________________
भाव
२२१
२. पंचभाव निर्देश
-ram
राण
VA TOT
प्रमाण
मार्गणा
____ कारण
कारण
प्रमाण मार्गणा
गुण स्थान
मूल भाव
कारण
भाव
मुख्य
9/
५. वेद मार्गणा
९. दर्शन मार्गणा 1७/३४ स्त्री पु नप सा. औद० चारित्रमोह (वेद) उदय || ७/५७ | चक्षु अचक्षु । क्षयो. स्व स्व देशघातीका
मुख्य | अवधि सा०
| उदय ७/३६ | अवेदी सा०
औप०क्षावे से ऊपर वेदका|| ७/५8 केवलदशन सा० क्षा० दर्शनावरणका निर्मुल क्षय उपशम वा क्षय मुख्य ५/५६ चक्षु अचश्नु १-१२ ओघवत
ओघवद ५१४१ स्त्री, पु. न १-१ ओघवत् ओधवत
५/५७ अवधिदर्शन ४-१२ १/४२ | अपगतवेद -१४ ,
१५८केवल दर्शन १३-१४५ ६. कषाय मार्गणा
१० लेश्या मार्गणा ७/४१ | चारों कषाय सा| ३१ । औद० । चारित्र मोहका उदय || ७/६१ | छहो लेश्या सा. औद० | कषायोके तीवमन्द
अनुभागोका उदय ७/४३ | अकषायी सा० औप०क्षा० ११वे मे औप०, १२-१४| ७/६३ अलेश्य सा०
क्षा० कषायोंका क्षय में क्षा (चा मोहापेक्षा) ५६ कृष्ण, नील, १-४ ओघवत्
ओघवत् १/४३ | चारो कषाय |१-१० ओघवत्
ओधवत
कापोत १/४४ | अकषाय ११-१४
१/६० पीतपद्य
५/६१ | शुक्ल १-१३ ७. शान मार्गणा
११. भव्य मार्गणा ७/४५ : ज्ञान व अज्ञान । क्षयो० स्व स्व ज्ञानाबरणका | सा०
क्षयोपशम ७/६५ | भव्य, अभव्य | पारि०
सुगम ७/४७ केवलज्ञान
केवल ज्ञानावरणका क्षय
सा० १५ मति श्रुत अज्ञान, १-२ | ओघवत
ओघवत्
न भव्य न
क्षायि० | विभग
अभव्य | मति, श्रुत, ४-१२
भव्य
ओधवत् ओघवत अवधिज्ञान
५/६३ अभव्य
पारि० उदयादि निक्ष मन पर्यय ज्ञान ६-१२
(मार्गणापेक्षया) १/४८ | केवलज्ञान १३-१४ "
। औद० | गुणस्थानापेक्षया ८. संयम मार्गणा
१२. सम्यक्त्व मार्गणा ७/ १सयम सा०
औपक्षाचारित्रमोहका उपशम ||६६ । सम्यक्त्व सा०। औप०क्षा० दर्शनमोहके उपशम, क्षय व क्षयोपशम
क्षयो० क्षय, क्षयो० अपेक्षा क्षयो० मुख्य सामायि, छेदो- सामान्य
७/७१ क्षायिक सामान्य
दर्शनमोहका क्षय पस्था०
७/७३ | वेदक
क्षयो० | ., ,क्षयोपशम ७/११ | परिहार विशुद्धि , क्षयो० चारित्रमोहका क्षयोपशम|| ७/७५ | उपशम ! औप०
उपशम ७/५३ / सूक्ष्म साम्पराय औप०क्षा० उपशम व क्षायिक दोनो|| ७/७७ | सासादन ..
पारि०
| उप०क्षय० क्षयोनिपक्ष श्रेणी है ७/७४ सम्यग्मिथ्यात्व,
क्षयो० मिश्रित श्रद्धानका सद्भाव यथारख्यात
|७/८१ | मिथ्यात्व
औद० दर्शनमोहका उदय | सयतासंयत अप्रत्याख्यानावरणका 1/६४ सम्यक्त्व सा०४-१४ ओघवत्
ओघबद क्षयोपशम ५/६५ क्षायिक
दर्श नमोहका क्षय ७/५५ | असंयत औद० चारित्रमोहका उदय
औद०
असं यतखकी अपेक्षा १४१ संयम सा०६-१४ ओघवत ओघवत
चारित्र मोहापेक्षया १/५० सामायिक,
क्षा० दर्शन मोहापेक्षया छेदोप०
औप० चारित्रमोहापेक्षया परिहार विशुद्धि ६-७
वा० दर्शनमोहापेक्षया ५/५२ सूक्ष्म साम्पराय १०
दर्शन व चारित्र मोहा५५३ | यथाख्यात
पेक्षया | संयतासयत
१/७४/ वेदक
क्षयोः दर्शनमोहापेक्षया ५५५ | असयत
| औद० चारित्रमोहापेक्षा
2/४७
|क्षा०
७/५४
लियो०
क्षा०
५/६८
५-७
क्षयो०
१/७०
५/५१
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org