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भाव
२२०
२. पंचभाव निर्देश
ओघवत्
कारण
४११
१/२
१०. पंच मावोंके स्वामित्वकी आदेश प्ररूपणा
प्रमाण मार्गणा गुण मूल
कारण (ष.ख. १४१,सू. ५-६३/१९४-२३८), (प. खं.७/२,१/सू. ५-६१/
स्थान भाव
पु/सू. ३०-११३); (ध. १/४,१,६६/३१५-३१७)।
५/२६
असंयत औद० प्रमाण प.ख./ मार्गणा
१/२७ सौधर्म १-४ ओघवत् स्थान भाव पु./सू.
उपरिम
ग्रैवेयक १. गतिमार्गणा
अनुदिश ७/५ १. नरकगति सा
[ सर्वार्थ सि० | औद० नरकगति उदयकी मुख्यता
४ । औप०क्षा० द्वितीयोपशम सम्य१११० मिथ्यात्वकी मुख्यता
क्षयो० क्त्वापेक्षया पारि० ओघवत्
| असंयत औद० । ओघवत् ७/१२
क्षयो० १/१३ औप० क्षा
२. इन्द्रिय मार्गणा क्षयो ७/१५ (१-५ इन्द्रिय सा।
स्व स्व इन्द्रिय (मति५/१४ | औद०
| ज्ञानावरण) की अपेक्षा प्रथम पृथिवी सामान्यवत सामान्यवत || ३० पंचेन्द्रिय पर्याप्त १-१४ | ओघवत
ओघवत् १-३
शेष सर्व तियंच १ औद० । | मिथ्यात्वापेक्षया ४ औप. क्षयो. क्षायिक सम्यग्दृष्टि || ७/१७ / अनिन्द्रिय । क्षा० | सर्व ज्ञानावरणका क्षय
प्रथम पृथिवीसे ऊपर नहीं जाता। वहाँ क्षा० ३. काय मार्गणा सम्यग् नहीं उपजता।||७/२८- पृथिवी त्रस
उस उस नामकर्मका असंयत औद०
उदय ७/७ । २.तियंच सा औद० तियंचगतिके उदयकी
पर्यन्त सा० मुख्यता
स्थावर
औद० मिथ्यात्व अपेक्षा ५/१६ | पंचे. सा.व १-५ ओघवत ओघवत्
|२/३१ त्रस व त्रस प० । १-१४ ओघवत् __ ओघवत् पचे०प०
७/३१ । अकायिक
|क्षा० | नामकर्मका सर्वथा क्षय ५/१६ योनिमति प० १,२,३,५ | "
४ औप क्षयो| बद्धायुष्क क्षायिक सभ्यना.योग मार्गणा
वहाँ उत्पन्न नहीं होता। और वहाँ नया क्षा०11०/३३ । मन वच० काय | क्षयो. वीर्यान्तराय इन्द्रिय व सम्य० नही उपजता।
नोइन्द्रियावरणका क्षयोअसंयत | औद०
पशम मुख्य ७/ ६३. मनुष्य सा० मनुष्यगतिके उदयकी|| ७/३५ अयोगी सा०
क्षा शरीरादि नामकर्मका मुख्यता
निर्मूल क्षय सामा० मनु० । १-१४ । ओघवत्
ओघवत्
१/३२ | मन वचन १-१४ ओघवत् । ओघवत | प० मनुष्यणी
काय औदा० ४. देव सा०
औद० देवगतिके उदयकी १/३३ औदा०मिश्र १-२ । मुख्यता
क्षा०क्षयो० प्रथमोपशममें मृत्युका | आदेश सामान्य १-४ ओघवत ओघवत्
| अभाव । द्वितीयो०मुख्य भवनत्रिक १,२,३ .
१/३५ असयत औद० औदा. मिश्रमें नहीं
वैक्रि० मिश्रमें जाता है। देवदेवी
१३ व सौधर्म
क्षा० वैक्रियक
ओघवत्
ओघवत् ईशानदेवी
४/३८ वैक्रि० मिश्र १,२,४
ओधवत औपशमिक भाव
द्वितीयोपशमकी अपेक्षा ४ औप. क्षयो. क्षा० सम्यक्त्वीकी
आ.व आ० | ६ क्षयो. प्रमत्तसयतापेक्षया उत्पत्तिका वहाँ अभाव है तथा नये कार्मण १,२४, ओघवत्
ओघवत क्षायिक सम्यकी
१३ । उत्पत्तिका अभाव
३
१४ क्षा
सा०
६/१६
१/३७ | वक्र
५/३६
मिश्र
५५० कामण
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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