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परमाणु
स्तित्वं वक्ष्यते । = प्रश्न- परमाणु क्या आदि, मध्य, अन्त सहित है। यदि सहित है तो उसको प्रदेशीपना प्राप्त हो जायेगा। और यदि रहित है तो उसका खरविषाणकी तरह अभाव सिद्ध होता है । उत्तर-- ऐसा नही है, क्योकि जैसे- विज्ञानका आदि मध्य व अन्त व्यपदेश न होनेपर भी अस्तित्व है उसी तरह परमाणुमे भी आदि, मध्य और अन्त व्यवहार न होनेपर भी उसका अस्तित्व है। २. परमाणु स्पर्शादि गुणोंकी सिद्धि
रा. वा. / २ /२०/२/१३३ / १ सूक्ष्मेषु परमाण्वादिषु स्पर्शादिव्यवहारो न प्राप्नोति ने रोष सूक्ष्मेष्वपि स्पर्शादय सन्ति तत्कार्येषु स्थूलेषु दर्शनानुमीयमाना, न ह्यत्यन्तमसतां प्रादुर्भावोऽस्तीति । घ. १/१.१.२२/२३/६ किंतु इन्द्रियग्रहणयोग्या न भवन्ति । ग्रहणा
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योग्याना कथं स व्यपदेश इति चेन्न, तस्य सर्वदायोग्यत्वाभावात् । परमा सर्वदा न प्रणयोग्याचेन्न तस्यैव स्थूलकार्याकारण परितो योग्यत्वसम्भा प्रश्न सुक्ष्म परमापुओं ने स्पर्शादिमें का व्यवहार नहीं बन सकता ( क्योकि उसमें स्पर्शन रूप क्रियाका अभाव है ' उत्तर - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि सूक्ष्म परमाणु आदिमे भी स्पर्शादि है, क्योंकि परमाणुओं के कार्यरूप पदार्थोंमें स्पर्शादि उपलब्धि देखी जाती है। तथा अनुमान भी किया जाता है, क्योकि जो अत्यन्त असत् होते है उनकी उत्पत्ति नहीं होती है । (प. १/१.१.२३/२४०/४) रन जबकि परमाणुओंमें रहनेवाला स्पर्श इन्द्रियोंके द्वारा ग्रहण नही किया जा सकता तो फिर उसे स्पर्श सज्ञा कैसे दी जा सकती है। उत्तर-नहीं, क्योंकि परमाणुगत पके इन्द्रियोंके द्वारा प्रश करनेको योग्यताका सरेन अभाव नही है। प्रश्न- परमाणु रहनेवाला स्पर्श इन्द्रियों द्वारा कभी भी शहरा करने योग्य नहीं है। उत्तर-नहीं, क्योंकि, जब परमाणु स्थूल रूपसे परिणत होते हैं, तब तद्गत धर्मोकी इन्द्रियों द्वारा ग्रहण करनेकी योग्यता पायी जाती है (अथवा उनमें रूढिके स्पर्शादिका व्यवहार होता है। ( रा वा /२/२० ) । व. का./त प्र. ७८ द्रव्यगुणयोरविभक्तप्रदेशत्वात य एव परमाणो प्रदेश, स एव स्पर्शस्य स एव रसस्य, स एव गन्धस्य, स एव रूपस्येति । तत' चिरमाण गन्धगुणे, स्वचिदन्योक्यचि गन्धरस रूपगुणेषु अपकृष्यमाणेषु अविभक्तप्रदेश परमाणुरेव विनश्यतोति । न तदपरूष युक्त। ततः पृथिव्यप्तेजोवायुरूपस्य धातुचतुष्कस्यैक एव परमाणुः कारणम् । द्रव्य और गुणके अभिन्न होनेसे जो परमायुका प्रदेश है नही स्पर्शका है, नहीं रखता है, वही गन्धका है, वही रूपा है। इसलिए किसी परमाशु गन्ध गुण कम हो, किसी परमाणु गन्धगुण और रसगुण कम हो, किसी परमाणुमे गन्धगुण, रसगुण और रूपगुण कम हो, तो उस गुणसे अभिन्न अप्रदेशी परमाणु ही विनष्ट हो जायेगा। इसलिए उस गुणको न्यूनता युक्त नहीं है। इसलिए धातु चतुष्कका एक परमाणु ही कारण है ।
२. परमाणु निर्देश
१. वास्तव में परमाणु ही पुद्गल द्रव्य है
१/१/११-१०० प्रति गलत जो पुरणपणेहिं पोराला ते परना जादा इस दिड दिवाद 1881 वण्णरसगंधफासे पूरणगलाइ सव्वकालम्हि । खदं पि व कुणमाणा परमाणू पुग्गला तम्हा |१००| = क्योंकि स्कन्धोंके समान परमाणु भी पूरते है, और गाते है, इसलिए पूरण गलन किवाओके रहने से वे भी पुहगतके अन्तर्गत है, ऐसा दृष्टिवाद अंग में निर्दिष्ट है। परमाणु स्कन्धकी तर सर्व वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श, इन गुणों पूरण गलनको किया करते हैं, इसलिए ही है। (इ.पू./०/३६), (पं.का./त.प्र./०६)।
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२. परमाणु निर्देश
रा. मा./४/१/२/२६/४३४/१६ स्वाम्यहम् अणून नियमात् पुरमगहनक्रियाभावात इति ततः कि कारण। गुगापेक्षया । रूपरसगन्धस्पर्शयुक्ता हि परमानव एकगुणरूपादिपरिणता. द्वित्रिचतुः- संख्येयाऽसंख्येयाऽनन्तगुणत्वेन वर्धन्ते, तथैव हानिम उपयतीति गुणापेक्षया पूरणगलन क्रियोपपते पर मावपि गमविरुद्ध अथवा गुण उपचारकम्पन पुरणनयी भाववाचकत्या परमाणु लोप
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चार 1 अथवा पुमांसो जीवा तै शरीराहारविषयकरणोपकरणादिभावेन गिल्यन्त इति पुद्गला । अण्वादिषु तदभावादपुद्गलत्वमिति चेत्, उक्तोत्तरमेतत् । प्रश्न- अणुओके निरवयव होनेसे तथा उनमें पूरण गलन क्रियाका अभाव होनेसे पुद्गल व्यपदेशके अभावका प्रसंग आता है ? उत्तर- ऐसा नहीं है क्योकि, गुणोंकी अपेक्षा उसमें
गलपनेकी सिद्धि होती है। परमाणु रूप, रस, गन्ध, और स्पर्शसे युक्त होते हैं, और उनमें एक, दो, तीन, चार, संख्यात, असंख्यात वीर अनन्त गुणरूपसे हानि-वृद्धि होती रहती है। अतः उनमें भी पूरण- गलन व्यवहार माननेमें कोई बाधा नही है । अथवा पुरुष यानी जीव जिनको शरीर, आहार, विषय और इन्द्रिय उपकरण आदिके रूप में निगलें - ग्रहण करे वे पुद्गल है। परमाणु भी स्कन्ध दशामें जोबोके द्वारा निगले जाते ही है, (अत. परमाणु पुद्गल है | ) नच १०१ मुत्तो एयपदेखी कारणरूपोख पोग्गलदव्व खधा बवहारदो भणिया | १०११ = जो मूर्त है, एक प्रदेशी है, कारण रूप है तथा कार्य रूप भी है ऐसा अणु ही वास्तव में पुद्गल द्रव्य कहा गया है। स्कन्धको तो व्यवहारसे पुद्गल द्रव्य कहा है । (नि.सा./ता.वृ./२६) ।
२. परमाणु जातिभेद नहीं है
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स.सि./१/३/२६६/८ सर्वेषां परमाणुना सर्वरूपादिकार्यत्याशियोग्यस्वाभ्युपगमात् न च विपार्थिवादिशातिविशेषयुक्त परमाणवः सन्ति, जातिसंकरे रम्भदर्शनात्। सम परमाणुओमे सब रूपादि जातिसंकरेणारम्भदर्शनात् गुणाले कार्योंके होनेकी योग्यता मानी है। कोई पार्थिव आदि भिन्न भिन्न जाति अलग-अलग परमाणु है यह बात नही है, क्योकि जातिका सकर होकर सब कार्योंका आरम्भ देखा जाता है।
३. सिद्धवत् परमाणु निष्क्रिय नहीं
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पं. का./त. प्र. / जीवानां सक्रियत्वस्य बहिरङ्गसाधनं कर्मनो कर्मोपचयरूपा पुद्गला इति ते पुद्गलकरणा । तदभावान्नि क्रियत्वं सिद्धानाम् पुगलानां सक्रियस्य महरसाधन परिणाम निर्वतक काल इति ते कालकरणा । न च कर्मादीनामिव कालस्या - भान । रातो न सिद्धानामिव निष्क्रिय हुगलानामिति । जीवोंको सक्रियपनेका बहिरंग साधन कर्म नोकर्म के सचय रूप पुद्गल है; इसलिए जीव पुद्गलकरण वाले है । उसके अभाव के कारण सिद्धोको निष्क्रियपना है को सक्रियता महिरंग साधन परिणाम निष्पादक काल है; इसलिए पुद्गल कालकरण वाले हैं। कर्मादिककी भाँति काल ( द्रव्य ) का अभाव नहीं होता, इसलिए सिद्धोकी भाँति पुद्गलोंको निष्क्रियपना नही होता ।
४. परमाणु अशब्द है
ति, प / २ / ६७... सद्दकारणमसद्द । खदतरिदं दव्वं तं परमाणु भणति बुधा | ७| = जो स्वयं शब्द रूप न होकर भी शब्दका कारण हो एवं स्कन्धके अन्तर्गत हो ऐसे द्रव्यको परमाणु कहते हैं। (ह.पु./0/ (१२). (दे० मूर्त /२/९) ।
पं. का./त.प्र./ ७८ यथा च तस्य ( परमाणो ) परिणामवशादव्यक्तो गन्धादिगुणोऽस्तीति प्रतिज्ञायते न तथा शब्दोऽभ्यष्यन्तोऽस्तीति
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