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प्रकृति बंध
मार्गणा
केवल
पीत
पद्म
शुक्ल
भव्य
अभव्य
१०. लेश्या मार्गणा (प... २५०-२०४/२२०-३५०) (गो. . / / १११-१२०/११७-१२० )
बन्धयोग्य - ओघकी १२० आ० द्वि०-११८: गुणस्थान - १-४
कृष्ण, नील, कपोत
गुण
स्थान
क्षायिक सम्यक्त्व
वेदक सम्यक्त्व
१
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२-७
१
व्युच्छित्तिकी प्रकृतियाँ
२-७
१०७
=
अबन्ध
पुन' बन्ध
बन्ध योग्य ओघके १३ वे गुणस्थानवत् = १ साता; गुणस्थान १३-१४
२
३-१३
अलेश्या
बन्धयोग्य = x ; गुणस्थान= १४ वॉ
1
११. भव्य मार्गणा ( सू २००-२७०/३३८-३६२) (गो. क, भा./१२०-१२१/१२१/७)
बन्धयोग्य - ओघवत् १२० ; गुणस्थान = १४
←
१२. सम्यक्व मार्गणा - (०/ २०१-३११/३६२-३०६): (गो.क./भा० / १२०-१२१/१०)
कुल बन्ध
योग्य
१०५
10 for
-
१०४ ३
बन्धयोग्य - पद्म लेश्याकी १०८ - तियंच त्रिक, उद्योत - १०४ गुणस्थान १३ मध्या०डक नपुं० तीर्थ ०. सृपाटिका ४। आ० द्वि० ओकी २५ - तिर्यत्रिक उद्योत
२१
बन्धयोग्य - ओघवत् १२० - आ० द्वि०, तीर्थ० ११७; गुणस्थान
जीवनद
बन्ध योग्य ओघको १२० - सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, २-४ इन्द्रिय, नरक त्रिक= १११: गुणस्थान ७
मिथ्या डक, नपुं. पाटिका | तीर्थंकर,
१११
३
एकेन्द्रिय, स्थावर, आतप ७ आ० द्वि०
अवन्ध
६७
७. प्रकृतिबन्ध विषयक प्ररूपणाएं
ओघवत्
बन्धयोग्य - ओधकी १२०-१-४ इन्द्रिय, स्थावर, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, नरक त्रिक १०८ गुणस्थान ७ मिथ्या० हुडक नपुं० पाटिका | तीर्थ० ४ आ० द्वि०
C
१०५
१०१
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३
बन्धयोग्य - ओधके चतुर्थ गुणस्थानकी ७७ + आहा० द्वि० = ७६; गुणस्थान ४-१४
ओघवत्
ओषद
बन्धयोग्य ओधके चतुर्थ गुणस्थानकी ७७+ आहा० द्वि० ७६; गुणस्थान ४-७
पुन बन्ध
जोषवत
जोवनद ओमवत
ओमजद
शेष
बन्ध व्युच्छि बन्ध योग्य
ओघवत्
ओघवत् (४-६ तक आ० द्वि० का बन्ध नही)
1
|
१०८ ७ १०१
१०१
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1
-
४
↑
।
६७ २१ ७६
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६७
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