________________
काल
८१
१. काल सामान्य निर्देश
लगने पर जो प्रायश्चित्तसे शुद्धि करनेके लिए कुछ दिन अनशनादि तप करना पड़ता है उसको प्रतिसेवना काल कहते है।
८. अवहार कालका लक्षण
'ध.३/१,२.५६/२६६/११ का सारार्थ भागाहार रूप कालका प्रमाण ।
३. सोपक्रमादि कालोंके लक्षण ध.१४/४,२,७,४२/३२/१ पारद्वपढमसमयादो अंतोमुहूत्तेण कालो जो घादो णिप्पज्जदि सो अणुभागखंडयधादो णाम, जो पुण उक्कीरणकालेण विणा एगसमएणेव पददि सा अणुसमओवट्टणा। प्रारम्भ किये गये प्रथम समयसे लेकर अन्तर्मुहूर्त कालके द्वारा जो घात निष्पन्न होता है वह अनुभागकाण्डकघात है। परन्तु उत्कीरणकालके बिना एक समय द्वारा ही जोधात होता है वह अनुसमयापवर्तना है । विशेषार्थ-काण्डक पोरको कहते है। कुल अनुभागके हिस्से करके एक एक हिस्सेका फालिकमसे अन्तर्मुहूर्त काल द्वारा अभाव करना अनुभाग काण्डकघात कहलाता है । ( उपरोक्त कथनपरसे उत्कीरणकालका यह लक्षण फलितार्थ होता है कि कुल अनुभागके पोर या काण्डक करके उन्हें घातार्थ जिस अन्तर्मुहर्तकालमें स्थापित किया जाता है, उसे उत्कीरण काल कहते है। घ.१४/५,६,६३१/४८५/१२ प्रबन्नन्ति एकत्वं गच्छन्ति अस्मिन्निति प्रबन्धनः । प्रबन्धनश्चासौ कालश्च प्रबन्धनकाल । -बंधते अर्थात् एकत्वको प्राप्त होते है, जिसमें उसे प्रबन्धन कहते है। तथा प्रबन्धन रूप जो काल वह प्रबन्धनकाल कहलाता है । गो.क./जो.प्र ६१५/८२०/५ सम्यक्त्वमिश्रप्रकृत्या स्थितिसत्त्वं यावत्रसे
उदधिपृथक्त्व एकाक्षे च पल्यासख्यातकभागोनसागरोपममवशिष्यते तावद्वेदकयोग्यकालो भण्यते। तत उपर्युपशमकाल इति। =सम्यक्त्वमोहिनी अर मिश्रमोहनी इनकी जो पूर्वे स्थितिबंधी थी सो वह सत्तारूप स्थिति त्रसक तौ पृथक्त्व सागर प्रमाण अवशेष रहै अर एकेन्द्रीकै पत्यका असंख्यातवॉ भाग करि होन एक सागर प्रमाण अवशेष रहै तावरकाल तौ वेदक योग्य काल कहिए। बहुरि ताकै उपरि जो तिसत भी सत्तारूप स्थिति धाटि होइ तहाँ उपशम योग्य काल कहिए। गो.क./भाषा/५८३/७८६ ते नामकर्म के उदय स्थान जिस जिस काल वि.
उदय योग्य है तहाँ ही होइ तातै नियतकाल है। (इसको उदयकाल कहते है ) ...कार्मण शरोर जहाँ पाइए सो कार्मण काल यावत शरीर पर्याप्ति पूर्ण न होइ तावत् शरीर मिश्रकाल, शरीर पर्याप्ति पूर्ण भएँ यावत् सांसोश्वास पर्याप्ति पूर्ण न होइ तावत शरोरपर्याप्ति काल, सांसोश्वास पर्याप्ति पूर्ण भएँ यावत् भाषा पर्याप्ति पूर्ण न होइ तावत आनपान पर्याप्ति काल, भाषा पर्याप्ति पूर्ण भएँ पीछे सर्व अवशेष आयु प्रमाण भाषापर्याप्ति कहिए । गो. जी./जो. प्र/२६६/५८२/२ उपक्रम' तत्सहितः कालः सोपक्रमकाल' निरन्तरोत्पत्तिकाल इत्यर्थ । ...अनुपक्रमकाल' उत्पत्तिरहितः काल' | - उपक्रम कहिए उत्पत्ति तोहि सहित जो काल सो सोपक्रम काल कहिए सो आवलोके असंख्यातवें भाग मात्र है।...बहुरि
जो उत्पत्ति रहित काल होइ सो अनुपक्रम काल कहिए। ल.सा./भाषा/५३/८५ अपूर्वकरणके प्रथम समय तें लगाय यावत् सम्यक्त्व
मोहनी, मिश्रमोहनीका पूरणकाल जो जिस काल विर्षे गुणसंक्रमणकरि मिथ्यात्वको सम्यक्त्व मोहनीय मिश्रमोहनीरूप परिणमाव है।
९. निक्षेपरूप कालोंके लक्षण ध ४/१.५.१/३१३-३१६/१० तत्य णामकालो णाम कालसहो । ...सो एसो इदि अण्ण म्हि बुद्धोए अण्णारोवणं ठवणा णाम ।...पल्लवियं...वणसडुज्जोइयचित्तालियिवसंतो । असब्भावट्ठवणकालो णाम मणिभेद-गेरु अ-मट्टी-ठिक्करादिसु वसंतो ति बुद्धिबलेण ठविदो । बागमदो कालपाहुडजाणगो अणुवजुत्तो। ...भवियणोआगमदव्वकालोभवियणोआगमदबकालो भविस्सकाले कालपाहुडजाणओ जीवो। ववगददोगंध-पंचरसट्ठपास-पंचवण्णो कुंभारचक्कट्ठिमसिलव्व वत्तणालक्वणो अत्थो तव्वदिरित्तो आगमदव्वकालो णाम ।...जीवाजीवादिअभंगदव्वं वा णोआगमदब्बकालो ...कालपाडजाणओ उवजुत्तो जोवो आगमभावकालो। दम्बकालजणिदपरिणामो णोआगमभावकालो भण्णाद ।...तस्स समय-आवलिय-खण-लव-मुहत्तदिवस-परख-मांस-उडु-अयण-संवच्छर-जुग-पुत्र-पब-पलिदोयमसागरोवमादि-रुवत्तादो। -'काल' इस प्रकारका शब्द नामकाल कहलाता है।...'वह यही है' इस प्रकारसे अन्य वस्तुमें बुद्धिके द्वारा अन्यका आर पण करना स्थापना है ।...उनमेंसे पल्लवित.. आदि बनखण्डसे उद्योतित, चित्रलिखित बसन्तकालको सद्भावस्थापनाकाल निक्षेप कहते हैं। मणिविशेष, गैरुक, मट्टी, ठीकरा इत्यादिमें यह वसन्त है' इस प्रकार बुद्धिके बलसे स्थापना करनेको असद्भावस्थापना काल कहते हैं। .. काल विषयक प्राभृतका ज्ञायक किन्तु वर्तमानमें उसके उपयोगसे रहित जीव आगमद्रव्य काल है।...भविष्यकाल में जो जीव कालपाभृतका ज्ञायक होगा, उसे भावीनोआगमद्रव्यकाल कहते हैं। जो दो प्रकारके गन्ध, पाँच प्रकारके रस, आठ प्रकारके स्पर्श और पाँच प्रकारके वर्ण से रहित है...वर्तना ही जिसका लक्षण है.. ऐसे पदार्थको तद्व्यतिरिक्तनोआगमद्रव्यकाल कहते है ।... अथवा जीव और अजीवादिके योगसे बने हुए आठ भंग रूप द्रव्यको नोआगमद्रव्यकाल कहते हैं। काल विषयक प्राभृतका ज्ञायक और वर्तमानमें उपयुक्त जीव आगम भाव काल है। द्रव्यकालसे जनित परिणाम या परिणमन नोआगमभावकाल कहा जाता है । ...वह काल समय, आवली, क्षण, लव, मुहूर्त, दिवस, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, पूर्व, पर्व, पन्योपम, सागरोपम आदि रूप है। ध.११/४,२,६,१/७६/७ तत्थ सञ्चित्तो-जहा दंसकालो मसयकालो इच्चेवमादि, दंस-मसयाणं चेव उवयारेण कालत्तविहाणादो। अचित्तकालोजहा धूलि कालो चिवल्लकालो उण्हकालो बरिसाकालो सीदकालो इच्चेवमादि । मिस्सकालो-तहा सदंस-सोदकालो इच्चेत्रमादि ।... तत्थ लोउत्तरीओ समाचारकालो-जहा बंदणकालो णियमकालो सज्मयकालो झाणकालो इच्चेवमादि । लोगिय-समाचारकालो-जहा कसणकालो लुणणकालो ववणकालो इच्चेवमादि। - उनमें दंशकाल. मशककाल इत्यादिक सचित्तकाल है, क्योंकि इनमें दंश और मशकके ही उपचारसे कालका विधान किया गया है। धूलिकाल, कर्दमकाल, उष्णकाल, वर्षाकाल एवं शीतकाल इत्यादि सब अचित्तकाल है। सदंश शीतकाल इत्यादि मिश्रकाल है। ...वंदनाकाल, नियमकाल, स्वाध्यायकाल व ध्यानकाल आदि लोकोत्तरीय समाचारकाल हैं । कर्षणकाल, लुननकाल व वपनकाल इत्यादि लौकिक समाचारकाल हैं।
७. ग्रहण व वासनादि कालोंके लक्षण गो.क जी,प्र/४६/४७/१० उदयाभावेऽपि तत्संस्कारकालो बासनाकालः ।
- उदयका अभाव होत संतै भी जो कषायनिका संस्कार जितने काल तक रहे ताका नाम वासना काल है। भ.आ /भाषा/२११/४२६ दीक्षा ग्रहण कर जन तक संन्यास ग्रहण किया नहीं तब तक ग्रहण काल माना जाता है, तथा व्रतादिकोंमें अतिचार
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
भा० २-११
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org