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१. काल सामान्य निर्देश
काल
रूप परिणमनकी विवक्षासे काल, सामान्य काल कहलाता है। तथा सत्के विवक्षित द्रव्य गुण वा पर्याय रूप अंशोके परिणमनकी अपेक्षासे जब कालको विवक्षा होती है वह विशेष काल है ।
वेदमागणामें स्त्रावेदियोंका उत्कृष्ट भ्रमण काल प्राप्ति विधि। वेदमार्गणामें पुरुषवेदियोंका उत्कृष्ट भ्रमण काल प्राप्ति विधि। कपाय मार्गणामें एक जीवापेक्षा जघन्य काल प्राप्ति विधि । मति, श्रुत, शानका उत्कृष्ट काल प्राप्ति विधि
-दे० वेदक सम्यक्त्ववत् । १६ लेश्या मार्गणामें एक जीवापेक्षा एक समय जघन्य
काल प्राप्ति विधि। लेश्या मार्गणामें एक जीवापेक्षा अन्तमुहूर्त जघन्य काल प्राप्ति विधि। लेश्या परिवर्तन क्रम सम्बन्धी नियम । वेदक सम्यक्त्वका ६६ सागर उत्कृष्ट काल प्राप्ति विधि । सासादनके काल सम्बन्धी -दे० सासाइन ।
२. निश्चय व्यवहार कालकी अपेक्षा भेद स.सि./५/२२/२६३/२ कालो हि द्विविध. परमार्थकालो व्यवहारकालश्च ।
काल दो प्रकारका है-परमार्थकाल और व्यबहारकाल । ( स.सि./ १/८/२६/७); (स.सि./४/१४/२४६/४ ); (रा.वा/४/१४/२/२२२/१);
(रा वा./५/२२/२४/४८२/१) ति.प./४/२७६ कालस्स दो वियप्पा मुक्खामुक्खा हुवंति एदेसुं। मुक्खा
धारबलेणं अमुक्खकालो पयटेदि। =कालके मुख्य और अमुख्य दो भेद हैं। इनमें से मुख्य कालके आश्रयसे अमुख्य कालकी प्रवृत्ति होती है।
कालानुयोग विषयक प्ररूपणाएँ
३. दीक्षा-शिक्षा आदि कालकी अपेक्षा भेद गो.क./मू./५८३ विग्गहकम्मसरोरे सरीरमिस्से सरीरपज्जत्ते । आणावचि
पज्जते कमेण पंचोदये काला ।५८३३ =ते नामकर्मके उदय स्थान जिस-जिस काल विर्षे उदय योग्य हैं तहाँ ही होंइ तात नियतकाल है। ते काल विग्रहगति, वा कार्मण शरीरवि, मिश्रशरीरवि, शरीर पर्याप्ति विर्षे, आनपान पर्याप्ति विर्षे, भाषा-पर्याप्ति विर्षे अनुक्रमतें पॉच जानने। गो.क./भू./६१५ ( इस गाथामें ) वेदककाल व उपशमकाल ऐसे दो कालों
का निर्देश है। पं.का./ता.वृ /१७३/२५३/११ दीक्षाशिक्षागणपोषणात्मसंस्कारसल्लेखनोत्तमार्थ भेदेन षट् काला भवन्ति । =दीक्षाकाल, शिक्षाकाल, गणपोषण काल, आत्मसंस्कारकाल. सल्लेखनाकाल और उक्तमार्थकालके
भेदसे कालके छह भेद हैं। गो.जी/जी प्र/२६६/५८२/२ तस्थिते सोपक्रमकाल: अनुपक्रमकालश्चेति
द्वौ भङ्गी भवतः। उनकी स्थिति (काल) के दोय भाग हैं-एक सोपक्रमकाल, एक अनुपक्रमकाल।
सारणीमें प्रयुक्त संकेतोंका परिचय । | जीवों की काल विषयक प्रोष प्ररूपणा । जीवोंके अवस्थान काल विषयक सामान्य व विशेष आदेश प्ररूपणा। सम्यक्प्रकृति व सम्यग्मिथ्यात्वको सत्त्व काल प्ररूपणा पाँच शरीरबद्ध निषेकोंका सत्ताकाल । पाँच शरीरोंकी संघातन परिशासन कृति । योग स्थानोंका अवस्थान काल । अष्टकर्मके चतुर्बन्ध सम्बन्धी रोष आदेश प्ररूपणा ।
,, ,, उदोरणा सम्बन्धी ओघ आदेश प्ररूपणा
अप्रशम्तोपशमना है , र संक्रमण ,
" ,, ,, स्वामित्व ( सत्व), | मोहनीयके चतुः बन्धविषयक श्रोध आदेश प्ररूपणा ।
१. काल-सामान्य निर्देश
१. काल सामान्यका लक्षण (पर्याय) ध.४/१,५,९/३२२/६ अणेयविहो परिणामे हितो पुधभूदकालाभावा परिणामाणं च आणं तिओवलं भा।परिणामोंसे पृथक् भूतकालका अभाव है, तथा परिणाम अनन्त पाये जाते हैं। घ.६/४,१,२/२७/११ तीदाणागयपज्जायाण.. कालत्तब्भुवगमादो । अतीत
व अनागत पर्यायोंको काल स्वीकार किया गया है। घ./पू./२७७ तदुदाहरणं सम्प्रति परिणमनं सत्तयावधार्यन्त । अस्ति विवक्षितत्वादिह नास्त्यंशस्याविवक्षया तदिह ।२७७१-सद सामान्य
४. निक्षेपों की अपेक्षा कालके भेद ध.४/१.५.१/१/वणामकालो ठवणकालो दव्वकालो भावकालो चेदिकालो चउत्रिहो (३१३/११) सा दुविहा, सब्भावासभावभेदेण ।... दब्बकालो दुविहो, आगमदो णोआगमदो य...णोआगमदो दव्वकालो जाणुगसरीर-भवियतन्त्रदिरित्तभेदेण तिविहो। तस्थ जाणुगसरीरणोआगमदव्व कालो भविय-वट्टमाण-समुज्झादभेदेण तिविहो। ( ३१४/१)। भावकालो दुविहो, आगम-णोआगमभेदा । नामकाल, स्थापनाकाल, द्रव्यकाल और भावकाल इस प्रकारसे काल चार प्रकारका है (३१३/११) । स्थापना, सद्भावस्थापना और असद्भावस्थापनाके भेदसे दो प्रकारकी है।''आगम और नोआगमके भेदसे द्रव्यकाल दो प्रकारका है। हायकशरीर, भव्य और तद्वयतिरिक्तके भेदसे नोआगम द्रव्यकाल तीन प्रकारका है, उनमें ज्ञायकशरीर नोआगम द्रव्यकाल भावी, वर्तमान और व्यक्तके भेदसे तीन प्रकारका है (३१४/१) । आगम और नोआगमके भेदसे भावकाल दो प्रकारका है। ध.४/१,५.१/३२२/४ सामण्णेण एयविहो। तीदो अणागदो वट्टमाणो त्ति तिविहो। अधवा गुणट्टिदिकालो भवढिदिकालो कम्मट्ठिदिकालो कायट्ठिदिकालो उववादकालो भवट्टिदिकालो त्ति छबिहो। अहवा अणेयविहो परिणामे हितो पुधभूतकालाभावा, परिणामाणां च आणं तिओवलंभा । सामान्यसे एक प्रकारका काल होता है। अतीतानागत वर्तमानकी अपेक्षा तीन प्रकारका होता है। अथवा गुणस्थितिकाल, भवस्थितिकाल, कस्थितिकाल, कायस्थितिकाल, उपपादकाल और
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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