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नय
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प्र. स. प्र./ १२५ शुद्धपनिरूपणाय परमव्यसंपर्कासंभवात्पर्मायाणां द्रव्यान्त प्रलयाच्च शुद्धद्रव्य एवात्मावतिष्ठते । शुद्धद्रव्यके निरूपणमें परद्रव्यके सपर्कका असंभव होनेसे और पर्याये द्रव्यके भीतर तीन हो जानेसे आत्मा शुद्धद्रव्य ही रहता है। और भी देखो नयV/१/२ (निश्चयसे न ज्ञान है, न दर्शन है और न चारित्र है ( आत्मा तो एक ज्ञायक मात्र है ) । और भी देखो नम | IV/१/३
द्रव्यार्थिक नय सामान्य में द्रव्यका
ब)।
और भी देखो नय] [T]२/६/२ (भेद निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नम ) । २. क्षेत्रकी अपेक्षा स्वमें स्थिति
प. प्र./मू./१/२६/३२ देहादेहि जो वसह भेयाभेयणएण । सो अप्पा मुणि जीव तुई कि अण् महुए |२१| प.प./टी./२ शुद्धनिश्वयनवेन तु अभेदनयेन स्वदेहान्ने स्वात्मनि वसति यः तमात्मानं मन्यस्व । =जो व्यवहार नयसे देहमें तथा निश्चयनयसे आत्मामें बसता है उसे ही हे जीव तू आत्मा जान | २हा शुद्ध निश्चयन अर्थात अभेदनपसे अपनी देहसे भिन्न रहता हुआ वह निजात्मामें बसता है I
इ.सं./टी./११/१८/२ सर्व द्रव्याणि निश्चयनमेन स्वकीयप्रदेशेषु तिष्ठन्ति । सभी निश्चयनयसे निज निज प्रदेशो में रहते हैं। और भी देखो नय] [V]१/४ ) ( | IV/२/६/३)।
३. कालकी अपेक्षा उत्पादव्यय रहित है।
पं.का./ता.वृ./११/२७/१६ शुद्धद्रव्यार्थिकनयेन नरनारकादिविभावपरिणामोत्पतिविनाशरहितस्-शुद्ध द्रव्याविनयसे नर नारकादि विभाव परिणामोंकी उत्पति तथा विनाशसे रहित है।
पं. ध. / ५ / २१६ यदि वा शुद्धत्वनयान्नाप्युत्पादो व्ययोऽपि न धौव्यम् । ... केवलं सदिति । २१६६ - शुद्धनयकी अपेक्षा न उत्पाद है, न व्यय है और न मौक्या है, केवल राव है।
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और भी देखो - ( नय | IV/१/५ ) ( नय / IV/२/६/२ ) ।
( पुइगलका भी ) शुद्ध
४. भावकी अपेक्षा एक व शुद्ध स्वभावी है। आ.प./८ शुद्धद्रव्यार्थिकेन शुद्धस्वभावः । द्रव्याधिकनवसे शुद्धस्वभाव है। प्र.सा.प्र.परिनय नं. ४७ नयेन केवलमृण्मानन्निरुपाधिस्वभावशुद्धयसे आत्मा केवल मिट्टीमात्रकी भाँति शुद्धभाववाला है। (घट, रामपात्र आदिकी भाँति पर्यायगत स्वभाववाला नहीं)।
पं. का./ता.वृ. १/४/२१ शुद्ध निश्चयेन स्वस्मिन्नेवाराध्याराधकभाव इति । शुद्ध निश्चयनयसे अपनेमें हो आराध्य आराधक भाव होता है।
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IV द्रव्याथिक व पर्यायार्थिक
प्र. सा./त.प्र./परिन. नं. ४६ अनुनयेन पटरावावत्सोपाधि स्वभाव । अशुद्ध नयसे आत्मा घट शराव आदि विशिष्ट ( अर्थात् पर्यायकृत भेदोसे विशिष्ट ) मिट्टी मात्रकी भाँति सोपाधिस्वभाव वाला है। पं.नि./९/१७२७ तद्वाच्यं च तद्वाचकं प्रभेदजनकं शुद्ध तररकस्पितम् | शुद्ध तत्त्व वचनगोचर है। उसका वाचक तथा भेदको प्रगट करनेवाला अशुद्ध नय है ।
स. सा. पं. जयचन्द / अन्य परसंयोगजनित भेद हैं वे सब भेदरूप अशुद्ध द्रव्यादिकमयके विषय है।
और भी देखो नम / V/४ ( व्यवहार नय अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय होनेसे उसके ही सर्व विकल्प अशुद्धद्रव्यार्थिकनयके विकल्प है।
और भी देखो नय / TV / २६ (अशुद्ध द्रव्यार्थिकनयका पाँच विकल्पों द्वारा लक्षण किया गया है ) ।
और भी देखो नयV/१ (अशुद्ध निश्चय नयका क्षण )।
और भो दे नय/V/९/१/१ (जीन तो मन्य व मोक्षसे अतीत है। और भी देखो आगे ( नम | IV/२/६/१०)।
४. अशुद्ध द्रव्यार्थिक नयका लक्षण
ध. १/४,१,४५/१७१/३ पर्यायकलङ्किततया अशुद्धद्रव्यार्थिकः व्यव हारनय - ( अनेक मेरो रूप ) पर्यायकलंकले युक्त होनेके कारण व्यवहारनय अशुद्धद्रव्यार्थिक है । ( विशेष दे० नय/V/४ ) ( क. पा. १/१३-१४/१८२/२१६/२ ) ।
आ. प / अशुद्धद्रव्यार्थिवेन अशुद्धस्वभावः । अशुद्ध द्रव्यार्थिकनयसे (पुद्गल द्रव्यका) अशुद्ध स्वभाव है ।
आ.प./ अशुद्धयमेवार्थ प्रयोजनमस्येत्यशुद्धद्रव्यार्थिकः
अशुद्ध
द्रव्य ही है अर्थ या प्रयोजन जिसका सो अशुद्ध अत्याधिकतम है। (न. च. / श्रुत/पृ. ४३ ),
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५. द्रव्यार्थिकके दश भेका निर्देश
आप / ५ द्रव्यार्थिकस्य दश भेदाः । कर्मोपाधिनिरपेक्षः शुद्धद्रव्यार्थिको, ...उत्पादव्ययगौणत्वेन सत्ताग्राहकः शुद्धद्रव्यार्थिक',... भेदकल्पनानिरपेक्ष' शुद्धोद्रव्याधिक कर्मोपाधिसापेक्षोऽशुद्धी इव्याधिको उत्पादव्ययसापेक्षोऽशुद्धो द्रव्यार्थिको, भेदकल्पनासापेक्षोऽशुद्धो यार्थिको सापेक्षी द्रव्यार्थिको स्वव्यापिाहयापिंकी, परद्रव्यादिग्राहकद्रव्याधिको परमभावग्राहकद्रव्यार्थिको द्रव्याधिन १० भेद हैं- १. कर्मोपाधि निरपेक्ष पार्थिक २. उत्पादव्यय गौण सत्ताग्राहक शुद्धद्रव्यार्थिक; ३. भेदकल्पना निरपेक्ष शुद्धव्यार्थिक; ४. कर्मोपाधि सापेक्ष अशुद्धद्रव्यार्थिक ५. उत्पादव्ययसापेक्ष अधिक भेदकल्पना सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक; ७ अन्वय द्रव्यार्थिकः ८. स्वद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिकः ६. परद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिकः १० परमभानग्राहक द्रव्यार्थिक। (न.च / श्रुत/पृ. ३६-३७)
६. द्रव्यार्थिक नयदशकके लक्षण
...
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१. कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक
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आ.१ / ५ कर्मोपाधिनिरपेक्षः शुद्धद्रव्यार्थिको यथा संसारी जीवो शिद्धसदृक् शुद्धात्मा । 'संसारी जीव सिद्धके समान शुद्धात्मा है' ऐसा कहना कर्मोपाधिनिरपेक्ष शुद्धद्रव्यार्थिक नय है । न.च.वृ./१६१ कम्माणं मज्भगदं जीवं जो गहइ सिद्धसंकासं । भण्णइ सो सुद्धणओ खलु कम्मोवाहिणिरवेक्खो । कर्मों से बँधे हुए जीवको जो सिद्धों सह शुद्ध बताता है, वह कर्मोपाधिनिरपेक्ष शुद्धद्रव्याकिन है (..// ४०/रलो. २)
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न.. / श्रुत / पृ. ३ मिथ्यात्वादिगुणस्थाने सिद्धत्वं वदति स्फुटं । कर्मभिनिरपेक्ष शुद्धव्यार्थिको हि सः । मिथ्यात्वादि गुणस्थानों में अर्थात् अशुद्ध भाव स्थित जोनका जो सिद्धत्व कहता है वह कर्मनिरपेक्ष किमय है। नि.सा./ता.नं./१०० कर्मोपाधिनिरपेक्षतामा निरमार्थिकनयापेक्षा हि भिनभिव्यकर्मभिरच निर्मुक्तम्- कर्मोपाधि निरपेक्ष सत्ताप्राक शुद्ध निश्चयरूप इत्याधिक नमकी अपेक्षा आमा इनद्रव्य व भाव कर्मोंसे निर्मुक्त है ।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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२. सत्ताग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक
आ. ५/५ उत्पादव्ययगौणत्वेन सत्ताग्रहरूः शुद्रव्याधिको यथा व्यं नित्यदपी सत्ता द्रव्यार्थिक नयते द्रव्य नि या नियमानी है (..) (.. //पृ. ४/रतो. २) न.च.मृ / ११२ उप्पादवयं गउणं किच्चा जो गहइ केवला सत्ता । भण्णइ को रह सागाहियो समये ।११२ उत्पाद और व्ययको
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