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कामदेव
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काय
का समूह ही है साधन सेना जिसके, स्त्री-पुरुषके भेदसे भिन्न समस्त प्राणियों के मन मिलानेके लिए सूत्रधार, संगीत है प्रिय जिसको, स्वर्ग व मोक्षके द्वारमें वज्रमयी अर्गलेके समान, चित्तको चलानेके लिए मुद्राविशेष बनानेमें चतुर, ऐसा समस्त जगतको वशीभूत करनेमें समर्थ कामतत्त्व है। -दे. ध्यान/४/५ यह काम-तत्त्व वास्तव में
आत्मा ही है। कामदेव-दे० शलाका पुरुष/१,८ । कामना-दे० अभिलाषा। कामपुरुषार्थ-दे० पुरुषार्थ ।। कामपुष्प-विजयाध की दक्षिण श्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर । कामराज जयकुमार पुराणके कर्ता एक ब्रह्मचारी। समय ई.१४६८
वि. १५५५ (म.पु.२०/पं. पन्नालाल) कामरूपित्व ऋद्धि-दे. ऋद्धि/३ । कामरूप्य-भरत क्षेत्र आर्यखण्डका एक देश-दे० मनुष्य/४ । काम्य मत्र-दे० मंत्र/१४६ काय-कायका प्रसिद्ध अर्थ शरीर है। शरीरवव ही बहुत प्रदेशोके समूह रूप होनेके कारण कालातिरिक्त जीवादि पाँच द्रव्य भी कायवान् कहलाते है। जो पंचास्तिकाय करके प्रसिद्ध है। यद्यपि जीव अनेक भेद रूप हो सकते हैं पर उन सबके शरीर या काय छह ही जाति की हैं--पृथिवी, अप, तेज, वायु, वनस्पति व त्रस अर्थाव मांसनिर्मित शरीर। यह हो षट् कायजीवके नामसे प्रसिद्ध हैं। यह शरीर भी औदारिक आदिके भेदसे पाँच प्रकार हैं। उस उस शरीरके निमित्त से होनेवाली आत्मप्रदेशोंकी चंचलता उस नामवाला काययोग कहलाता है। पर्याप्त अवस्थामे काययोग होते हैं और अपर्याप्तावस्थामें मिश्र योग क्योंकि तहाँ कार्मण योगके आधीन रहता हुआ ही वह वह योग प्रगट होता है।
कायमार्गणामें गुणस्थानोंका स्वामित्व । काय मार्गणा विषयक सत् संख्या क्षेत्र स्पर्शन काल । अन्तर भाव व अल्पबहुत्व रूप आठ प्ररूपणाएँ
-दे० वह वह नाम काय मार्गणा विषयक गुणस्थान मार्गणास्थान । जीवसमासके स्वामित्वकी २० प्ररूपणाएँ।-दे० सत् काय मार्गणामें सम्भव कर्मों का बन्ध उदय सत्व ।
-दे० वह वह नाम कौन कायसे मरकर कहाँ उपजै और कौन गुणव पद तक उत्पन्न कर सके। -दे० जन्म/६ काय मार्गणामें भाव मार्गणाकी इष्टता तथा तहाँ प्रायके अनुसार व्यय होनेका नियम। -दे० मार्गणा तेजस आदि कायिकोंका लोकमें अवस्थान व तद्गत शंका समाधान। उस स्थावर आदि जीवोंका लोकमें अवस्थान ।
-दे० तिर्यच/३ काय स्थिति व भव स्थितिमें अन्तर ।
-दे० स्थिति/२ पंचास्तिकाय।
-दे० अस्तिकाय
| काययोग निर्देश व शंका समाधान
१. काय सामान्यका लक्षण व शंका समाधान
बहुप्रदेशीके अर्थ में कायका लक्षण । शरीरके अर्थमें कायका लक्षण । औदारिक शरीर व उनके लक्षण-दे० वह वह नाम । कार्मण काययोगियोंमें कायका यह लक्षण कैसे घटित होगा।
२. षट्काय जीव व मार्गणा निर्देश व शंकाएँ
पटकाय जीव व मार्गमाके भेद-प्रभेद । पृथिवो आदिके कायिकादि चार-चार भेद
-दे० पृथिवी । जीवके एकेन्द्रियादि मेद व बस स्थावर कायमें अन्तर।
-दे० स्थावर सूक्ष्म बादर काय व त्रस स्थावर काय ।
-दे० वह वह नाम प्रतिष्ठित व अप्रतिष्ठित प्रत्येक व साधारण ।
-दे० वनस्पति | अकाय मागणाका लक्षण । ३ । बहुप्रदेशी भी सिद्ध जीव अकाय कैसे हैं।
काययोगका लक्षण। काय योगके भेद। औदारिकादि काययोगोंके लक्षणादि ।
-दे० वह वह नाम शुभ अशुभ काययोगके लक्षण । । शुभ अशुभ काययोगमें अनन्त विकल्प कैसे सम्भव है।
-दे. योग/२ जीव या शरीरके चलनेको काययोग क्यों नही कहते । काययोग विषयक गुणस्थान, मार्गणास्थान, जीवसमासके स्वामित्वकी २० प्ररूपणाएँ। -दे० सत् पर्याप्तावस्थामें कार्मणकाययोगके सद्भावमें भी मिश्रयोग क्यों नहीं कहते। अप्रमत्तादि गुणस्थानों में काययोग कैसे सम्भव है।
-दे० योग/४ *मिश्र व कार्मण योगमें चक्षुदर्शन नहीं होता।
-दे० दर्शन/ काययोग विषयक सत् , संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव व अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ।
--दे० वह वह नाम काययोगमें सम्भव कोका बन्ध. उदय व सत्त्व।
--दे० वह वह नाम मरण व व्याघात हो जानेपर एक काययोग ही शेष रहता है।
--दे० मनोयोग/६
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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