________________
दृष्टिभेद
दृष्टिभेद
न.
विषय
दृष्टि नं०१ । दृष्टि नं०२ दे०-1नं.
विषय
दृष्टि नं०१ दृष्टि न०१
जन्मके पश्चात्
अन्तर्मुहर्त अधिक आठ वर्ष पश्चात | संयम ||३७ प्रत्येक शरीर वर्गणा घनावलीके असं- | अनन्तलोक मनुष्यों में संयम व आठ वर्षसे पहले भी संभव है
| अल्प
| व ध्रुव शून्य ख्यातवें भाग संयमासंयम ग्रहण- संभव नहीं
बहुत्व
वर्गणामें अल्प-बहुत्वकी योग्यता
१/५
| का गुणकार जन्मके पश्चात गर्भसे लेकर आठ | जन्मसे लेकर ..
आहारक वर्गणाके | परस्पर अनंतगुणा भागाहारोंसे मनुष्यों में संयम व | वर्ष पश्चात् बीत आठ वर्षके पश्चात ।
| अल्पसंयमासंयम ग्रहण- | जानेके पश्चात सम्भव है
अल्प-बहुत्वका गुण
अनन्तगुणा बहुत्व/
कार। की योग्यता संभव है
दर्शनमोह प्रकृतियों- सम्य० मिथ्यात्वसे | विशेषाधिक है | अल्पकेवलदर्शनका केवलज्ञान ही है | दोनों है | दर्शन
का अल्प-बहुरव सम्यक प्र० को दर्शन नहीं अस्तित्व
बहुत्व/
अन्तिम फालि | लेश्या द्रव्यलेश्याके अनु- नियम नहीं | लेश्या
असंख्यात गुणी है सार ही भावलेश्या
४० प्रकृति बंध नरकगतिके साथ नियम नहीं प्रकृतिहोती है
उदय योग्य प्रकृo
बंध लेश्या बकुशादिकी अपेक्षा | नहीं
का बंध भी नरकसंयमियो में भी अशुभ
गतिके साथ ही लेश्या सम्भव है
होता है २६ द्वितीयोपशमकी ४-७ गुणस्थान तक केवल ७खें गुण- सम्य- ४१
बन्धयोग्य प्रकृति | १४८ हैं। । प्राप्ति सम्भव है स्थानमैं ही संभव म्दर्शन |
१२० हैं
I४२ | अनिवृत्तिकरण में । मान व मायाकी नियम नहीं | २७ / सासादन सम्य- द्वितीयोपशम सम्य०
नहींसासादनबंध व्युच्छित्ति | बन्ध व्युच्छित्ति ग्दर्शनकी प्राप्ति से गिरकर प्राप्त होना
क्रमसे सं० भाग सम्भव है
काल व्यतीत होने| सासादन पूर्वक मरण एके० विक०में | हो सकता है। जन्म
पर होती है | करके जन्म संबन्भी उत्पन्न नहीं होता
४३ | आयुका अपवर्तन उत्कृष्ट आयुक | होता है | सर्वार्थ सिद्धिके । पर्याप्त मनुष्यनीसे | सात गुणी है संख्या/२||
अपवर्तन नहीं होता | देवोंकी संख्या तिगुनी है
आठ अपकर्षों में आयुमें आवलीका समयघाट मुहूर्व आयु। उपशामक जीवों-८ समय अधिक वर्ष | ३०४ होते हैं
असं० भाग शेष आयु न बंधे तो ।
शेष रहनेपर | ४/३,४ पृथक्त्वमें को संख्या ३००
रहनेपर बंधती है या १६६ होते है
बंधती है
तीथ कर प्र० का होते हैं
३३+२ प्र० को+ घटित नहीं होता स्थिति
स्थिति बंध २ वर्ष हैं तैजसकायिक जीवों- चौथी वार स्थापित नहीं
बन्ध " ४६ | परमाणुओंका पर- समगुणवर्ती विषम होता है
स्कन्ध की संख्या शलाका राशि
स्पर बंध परमाणुओंका बन्ध | अर्ध भागसे ऊपर
नहीं होता होती है
| परमाणुओंका पर- | एक गुणके अन्तरसे | विषम परमाबादर निगोदकी | जगत श्रेणीके असं०असंख्यात प्रत-
| स्पर बंध बं ध नहीं होता णुओ में होता है | एक श्रेणी वर्गणाओं में भाग रावली
| उदय व्युच्छित्ति एके० आदि प्रकृ०की| दूसरे गुणस्थानमें| उदय का गुणकार
उदय व्युच्छित्ति होती है जिण्डगति में जीव-उपपादस्थानको कर जाता है क्षेत्र/३//
| पहले गुणस्थानमें हो का गमन अतिक्रमण नहीं
| जाती है करता
| | उदय योग्य प्रकृति | १२२ हैं । १४८ हैं | उदय ३४/ कषायौंका जघन्य
एक समय है अन्तम काल
० प्रकृतियोंकी सत्ता | सासादनमें आहारक नहीं है ।
चतुष्कका सत्त्व है ३. सिद्धोंका अक्पबहुत्व सिद्ध कालकी अपेक्षा विशेषाधिक है अप- १
८वें गुण में ८ प्रकृ० सिद्ध जीव असं. बहुत्व/
का सत्त्व स्थान ख्यात गुणे हैं
नहीं है ३६ जघन्य व मादर जगत श्रेणीके असं-आवलीके असं-..
मायाके सत्त्व रहित १० गुणस्थान .. निगोद वर्गणामें अल्प- ख्यातवें भाग ख्यातवें भाग
४ स्थान वे गुण तक हैं बहुत्वका गुणकार
तक हैं।
आयु
अन्तर्मुहूर्त है । काल ||
ON
काल
१/४
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
भा०२-५६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org