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दृष्टि अमृतरस ऋद्धि
दृष्टिभेद
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कषाय
क्योंकि व्यतिरेक में पहले साध्याभाव और पीछे साधनाभाव कहा जाता है परन्तु यहाँ पहले साधनाभाव और पीछे साध्याभाव कहा
नं. विषय दृष्टि नं० १ । दृष्टि नं.२ । दे०गया है इसलिए व्यतिरेक दृष्टान्ताभास है ।४४-४५॥
मार्गणाओंकी अपेक्षा ९. विषम दृष्टान्तका लक्षण
|१| स्वर्गवासी इन्द्रोंकी
। २८ स्वर्ग/२ न्या. वि /म./२/४२/२६२ विषमोऽयमुपन्यासस्तयोश्चेत्सदसत्वतः...|४२॥ संख्या
- दृष्टान्तके सदृश न हो उसे विषम दृष्टान्त कहते है, और वह बिष- ज्योतिषी देवोंका | नक्षत्रादि ३ योजन | ४ योजनकी (ज्योमता भी देश और कालके सत्त्व और असत्त्वकी अपेक्षासे दो प्रकारकी अवस्थान
की दूरी पर दूरीपर तिषी हो जाती है। ज्ञान वाले क्षेत्रमें असत् होते हुए भी ज्ञानके कालमें देवोंकी विक्रिया स्व अवधि क्षेत्र प्रमाण घटित नहीं होता| देव/IT उसकी व्यक्तिका सद्भाव हो अथवा क्षेत्रकी भाँति ज्ञानके कालमें भी
/२/८
देवोंका मरण उसका सदभाव न हो ऐसे दृष्टांत विषम कहलाते हैं।
मूल शरीरमें प्रवेश नियम नही मरण/
करके ही मरते हैं ।
५ सासादन सभ्यग- | एकेन्द्रियों में होता है| नहीं होता जन्म २. दृष्टान्त-निर्देश
दृष्टि देवोंका जन्म
६ | प्राप्यकारी इन्द्रियो- योजन तकके | नहीं १. दृष्टान्त सवदेशी नहीं होता
का विषयपुद्गलोंसे संबंध करके ध.१३/५,५,१२०/३८०/६ ण, सबप्पणा सरिसदिट्ठताभावादो। भावे
जान सकती है वाचंदमडी को निण वह सिमियामाहीम |७| बादर तेजस्कायिक | ढाई द्वीप व अर्ध- सवंद्वीप समुद्रीम काय/२॥ भावादो। - दृष्टान्त सर्वात्मना सदृश नहीं पाया जाता। यदि कहो
जीवोंका लोकमें | स्वयंभूरमण द्वीपमें | सम्भव हैं कि सर्वात्मना सदृश दृष्टान्त होता है तो 'चन्द्रमुखी कन्या यह घटित
अरस्थान | ही होते हैं। नहीं हो सकता, क्योंकि चन्द्रमें भ्र, मुख, आँख और नाक आदिक
लन्धि अपर्याप्तके | आयुबन्ध कालमें घटित नहीं योग नही पाये जाते।
'परिणाम योग' होता है
होता
| चारों गतियों में | एक एक कषाय | नियम नहीं २. अनिष्णातजनोंके लिए ही दृष्टान्तका प्रयोग होता है कषायोंकी प्रधानता प्रधान है
निक्षेप/ प. मु./३/४६ बालब्युत्पत्त्यर्थ-तरत्रयोपरमे शास्त्र एवासी मवाद. १० | द्रव्य श्रूतके अध्य- सूत्र समादि अनेकों। नहीं अनुपयोगात् ।४६।- दृष्टान्तादिके स्वरूपसे सर्वथा अनभिज्ञ बालकों के
यनकी अपेक्षा भेद भेद हैं समझानेके लिए यद्यपि दृष्टादि ( उपनयनिगमन ) कहना उपयोगी है,
| अक्षर श्रुतज्ञान ६ नहीं
शुतज्ञाना परन्तु शाखमें ही उनका स्वरूप समझना चाहिए, बादमे नहीं,
गुणहानि वृद्धि | वृद्धियोंसे बढ़ता है।
। क्योंकि वाद व्युत्पन्नौका ही होता है ।४६।
अक्षर श्रुतज्ञानसे दुगुने-तिगुने आदि । सर्वत्र षट्स्थान
आगेके श्रुतज्ञानों में क्रमसे होती है वृद्धि होती है ३. व्यतिरेक रूप ही दृष्टान्त नहीं होते
वृद्धि क्रम
संज्ञी संमूर्च्छनों में होता है न्या.वि./मु /२/२१२/२४१ सर्वत्रैव न दृष्टान्तोऽनन्वयेनापि साधनात ।
नहीं होता अवधि
अवधिज्ञान अन्यथा सर्वभावानाम सिद्धोऽयं क्षणक्षय (२१२॥ सर्वत्र अन्वय को
क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य एक श्रेणी रूप ही नहीं ही सिद्ध करने वाले दृष्टान्त नहीं होते, क्योंकि दूसरेके द्वारा अभिमत
अवधिज्ञान का विषय जानता है सर्व ही भावोंकी सिद्धि उससे नहीं होती, सपक्ष और विपक्ष इन दोनों धर्मियोंका अभाव होने से ।
क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य सूक्ष्म निगोदिया- नहीं
अवधिज्ञानका विषय की अवगाहना प्रमाण दृष्टि अमृतरस ऋद्धि-दे० ऋद्धि/८ ।
आकाशकी अनेक दृष्ठि निविष औषध ऋद्धि-दे० ऋद्धि/७।
श्रेणियोंको जानता है
१६ | सर्वावधिका क्षेत्र । परमावधिसे असं० दृष्टि प्रवाद-ध/४,१,४५/२०६/६ दिविवादो त्ति गुणणामं,
गुणित है दिट्ठोओ बददि त्ति सद्दणिप्पत्तीदो। -दृष्टिवाद यह गणनाम. १७ अवधिज्ञानके करण- करणचिहाँका । क्योकि दृष्टियोको जो कहता है, वह दृष्टिवाद है, इस प्रकार दृष्टि
चिह्न
स्थान अवस्थित है वाद शब्दकी सिद्धि है। यह द्वादशांग श्रूत ज्ञानका १२वाँ अंग है।
। क्षेत्रकी अपेक्षा मनः- एकाकाश श्रेणी में |
मनःपर्यविशेष दे० श्रुतज्ञान/HIT
पर्यय ज्ञानका विषय ही जानता है ।
य ज्ञान
क्षेत्रको अपेक्षा मनः- मनुष्य क्षेत्रके भीतर नहीं दष्टिभद-यद्यपि अनुभवगम्य आध्यात्मिक विषयमें आगममें | पर्यय ज्ञानका विषय भीतर ही जानता है | कहीं भी पूर्वापर विरोध या दृष्टिभेद होना सम्भव नहीं है, परन्तु
जन्मके पश्चात् मुहूर्त पृथक्त्व अधिक तीन पक्ष तीन | सूक्ष्म दूरस्थ व अन्तरित पदार्थों के सम्बन्धमें कहीं-कहीं आचार्योंका
तियंचोंमें संयमा- दो माससे पहले दिन और अन्तमतभेद पाया जाता है। प्रत्यक्ष ज्ञानियोंके अभावमें उनका निर्णय
संयम ग्रहणको | संभव नहीं दुरन्त होनेके कारण धवलाकार श्री बीरसेन स्वामीका सर्वत्र यही
मुहूर्त के पश्चात आदेश है कि दोनों दृष्टियोंका यथायोग्य रूपमें ग्रहण कर लेना योग्य
योग्यता
भी संभव है है। यहाँ कुछ दृष्टिभेदोंका निर्देश मात्र निम्न सारणी द्वारा किया जाता है । उनका विशेष कथन उस उस अधिकारमें ही दिया है।
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नहीं
नहीं
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