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तृणचारण ऋद्धि
तृणचारण ऋद्धि दे०
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तृणफल - तोलका एक प्रमाण विशेष-दे० गणित / I / १1
तृणस्पर्श परिषह -स.सि./६/६/४२६/१ तृणग्रहणमुपलक्षणं कस्यचिव्यथन कारणस्य तेन शुष्कतृणरुपशर्करा आदि व्यधनकृतपादवेदनाप्राप्ती सयां तत्राप्रहितचेतसरचर्या शय्यानिया प्राणिपीडापरिहारे नित्यमप्रमत्तचेतसस्तृणादिस्पर्शवाधापरिषहविजयो वेदितव्यः । - जो कोई विधने रूप दुखका कारण है उसका 'तृण' पदका ग्रहण उपलक्षण है । इसलिए सूखा तिनका, कठोर, कङ्कड़··· आदिके विधनेसे पैरोमें वेदनाके होनेपर उसमे जिसका चित्त उपयुक्त नहीं है। तथा चर्या शय्या और निश्या प्राणि पीड़ाका परिहार करनेके लिए जिसका चित निरन्तर प्रमाद रहित है उसके तुम स्पर्शादि माधा परिषह जय जानना चाहिए। ( रा वा /६/६/२२/६११/२६ ) ( चा. सा./१२५/३) ।
तृतीय भक्त - दे० प्रोषधोपवास/ १ ।
तृषापरीषह - ३० पिपासा ।
तृष्णा — दे० राग तथा अभिलाषा,
तेजमें
तेजांग कल्पवृक्ष दे०/१०
तेजोज - दे० ओज |
तेला व्रत विधान सं० / २२३ पहले दिन दोपहर को एकाशन करके मन्दिरमे जाये । तीन दिन तक उपवास करे। पाँचवें दिन दोपहरको एकलठाना ( एक स्थानपर मौनसे भोजन करे ) ।
तेजस स्थूल शरीर में दीप्ति विशेषका कारण भूत एक अत्यन्त सूक्ष्म शरीर प्रत्येक जीवको होता है, जिसे ते जस शरीर कहते हैं। इसके अतिरिक्त सपद्धि विशेषके द्वारा भी दायें व वाये कसे कोई विशेष प्रकारका प्रज्वलित पुतला सरीखा उत्पन्न किया जाता है उसे समुद्रात कहते है ये कम्मेवाला तेजस रोग दुर्भिक्ष आदिको दूर करनेके कारण शुभ और मा कन्येवाला सामने के पदार्थों व नगरी आदि भस्म करनेके कारण अशुभ होता है ।
आतप तेज व उद्योतमे अन्तर- दे० आतप । २. अग्नि के अर्थ दे. अग्नि ।
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तैजस शरीर निर्देश
१ तैजस शरीर सामान्यका लक्षण ।
तेजस शरीरके भेद |
अनिम्सरणात्मक शरीरका लक्षण |
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निःसरणात्मक शरीरका लक्षण
- १० तेजस / २/२ ।
तैजस शरीर तप द्वारा भी प्राप्त किया जा सकता है।
तैजस शरीर योगका निमित्त नहीं ।
तेजस व कार्मण शरीरका सादि अनादिना ।
तेजस व कामेण शरीर आत्म-प्रदेशों के साथ रहते हैं। तेजस व कार्मेण शरीर अतिपाती है।
तेजस सव कार्मण शरीर का निरुपयोग तेजस व कार्मण शरीर का स्वामित्व |
अन्य सम्बन्धित विषय
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० शरीर/२/५।
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१ तैजस
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तेजस समुद्घात निर्देश
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समुद्वात सामान्यका लक्षण ।
तेजस समुद्घातके भेद |
अशुभ तैजस समुदुघातका लक्षण । तैजस समुद्घातका लक्षण ।
शुभ
तेजस समुदायका वर्ण शक्ति आदि।
तेजस समुद्धात का स्वामित्व ।
अन्य सम्बन्धित विषय
१. तेजस शरीर निर्देश
१. तैजस शरीर सामान्यका लक्षण
तेजस
प. न. १४/५.६/सू. २४०/२२ तेयगुणत मिदि तेज तेज और प्रभा रूप गुणसे युक्त है इसलिए तेजस है | २४०| स.सि./२/२/१११/- तेजोनिमित्तं तेजसि वा भयं ससेजसम् । जो दोष्टिका कारण है या रोजमें उत्पन्न होता है उसे तेजस शरीर कहते है (रा.वा./२/३६/०/९४६/१९) रा.बा/२/४१/८/१५३/१४ सेजसम् के समान शुभ्र तैजस होता है।
ध.१४/५,६.२४०/३२७/१३ शरीरस्कन्धस्य पद्मरागमणिवर्णस्तेज शरीरा. निर्गतरश्मिकलाप्रभा, तत्र भवं तेजसं शरीरम् । - शरीर स्कन्ध के पद्मरागमणिके समान वर्णका नाम तेज है। तथा शरीरसे निकली हुई रश्मि कलाका नाम प्रभा है। इसमे जो हुआ है वह तेजस शरीर है। तेज और प्रभागुणसे युक्त तेजस शरीर है यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
२. तेजस शरीर के भेद
ध १४/५.६,४०/३२८ / १ तं तेजइयशरीरं णिस्सरणप्पयमणिस्सरणप्पयं चेदि दुविहं । तत्थ जं तं णिस्सरणप्पयं तं दुविहं - सुहमसुहं चेदि । = तैजस शरीर नि सरणात्मक और अनि. सरणात्मक इस तरह दो प्रकारका है। (रा.वा./२/२/१२३/१५) उसमे जो निसरणात्मक तेजस शरीर है वह दो प्रकारका है-शुभ और अशुभ । ( ध.४/१३,२/ २०/७) घ.०/२६.१/२००४ तेजासरीरं दुविहं पसत्यमप्यस्य चेदि तेजस शरीर प्रशस्त और अप्रशस्तके भेदसे दो प्रकारका है । ३. अनिःसरणात्मक वैजस शरीरका लक्षण
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ग.वा./२/४६/८/१५३/१५ औदारिकवै क्रियिकाहारकदेहाभ्यन्तरस्थं देहस्य दीप्तिहेतुर निःसरणात्मक औवारिक किसिक और आहा वैक्रियिक एक शरीर में रौनक लानेवाला अनि सरणात्मक तेजस है।
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घ. १४/५.६,२४० / ३२८/८ जं समभिस्सरपण्ययं तेजइयसरीरं तं भुत्तणपाणपाचयं ह ेदूग अच्छदि अंतो । जो अनि. सरणात्मक तेजस शरीर है वह भुक्त अन्नपानका पाचक होकर भीतर स्थित रहता है । ४. तैजस शरीर तर द्वारा भी प्राप्त किया जा सकता
त. सू. / २ / ४८. ४६ लब्धप्रत्ययं च ॥४८॥ तैजसमपि । ४६ । ते नस शरीर पैदा होता है
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५. तैजस शरीर योगका निमित नहीं है
स. सि /२/४४/११६/३ तैजसं शरीरं योगानिमित्तमपि न भवति । - सेजस शरीर योगमें निमित्त नहीं होता। (रा.मा./२/४४/१/२५९)
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