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घनलोक
घनलोक Volume of Uraverse (दे० गणित/1/९/३)(दे०
प्रमाण /५). (ज. १०६)
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घनवात - Atmosphere दे० घनांगुल (a ) -- दे० मगित / 1 / 21
घातायुष्क दे० मिथ्यादृष्टि ।
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घनाकार - Cube ( ज. प . / प्र १०६ ) । घनाघन -द्विरूप घनाघनधारा- दे० गणित II / ५ । घनोदधि वात -- दे० वातवलय ।
धम्मा-प्रथम नरककी पृथिवी दे० रत्नप्रभा तथा सरक /५/९ । घाटा - चौथे नरकका ६ठा पटल- दे० नरक /५/११
घात - १. दूसरे नरकाका ५वॉ पटल - दे० नरक / ५/११२. परस्पर गुणा करना -- दे० गणित / II/१/५ । ३. घात निकालना = Raising of numbes to given Power ध / पु. ५/प्र २७ ।
* अनुभाग व स्थिति काण्डका
घातकृष्टि - ३० कृष्टि
घातांक - Theory of indices या Powers, (ध. / ५५/प्र.२७) विशेष ३० गणित / IT/RE
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वलय ) .. १०६
घाती- १. घाती, देशवाती व सर्वघाती प्रकृतियाँ- दे० अनुभाग । २. देश व सर्वघाती स्पर्धक - दे० स्पर्धक ।
घुटुक ( पा. पु. / सर्ग / श्लो. ) । विद्याधर कन्या हिडिम्बा से भीमका पुत्र था ( १४/५९-६५) महाभारत युद्धमें अश्वत्थामा द्वारा मारा गया (२०/२१८-२१) "
घोर पराक्रम -- दे० ऋद्धि/५ ।
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३० अपकर्षण / ४ ।
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घृणा करनेका निषेध दे० निर्विचिकित्सा मोक्षमार्ग मे जुगुप्सा भावकी कथंचित् इष्टता अनिष्टता- दे० सूतक । घृतवर -- १. मध्यलोकका ६टाँ द्वीप व सागर - दे० लोक /५ । २. उत्तर धृतवरद्वीपका अधिपति व्यंतर देव - दे० व्यंतर / ४ । घृतस्रावी -दे० अखि ऋद्धि ।
घोटकपाद कायोत्सर्गका अतिचार-दे० व्युत्सर्ग / १ । घोटमान०
दे० घोलमान ।
घोर गुण ब्रह्मचयं दे० ४/५ ।
घोर तप दे० /१
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घोलमान-हानि वृद्धि सहित अनवस्थित भावका नाम पोसमान है— निशेष देखो पोसमान योगस्थान दे० योग/१ और गुणित क्षपित घोलमान कर्माशिक ( क्षपित ) ।
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घोष - घ. १३/४,५,६३/३३६/२ घोषो नाम ब्रज । घशेषका अर्थ बज है । म../१६/१०६ तथा पोषकरादीनामपि लक्ष्य विकल्प्यताम् । - इसी प्रकार घोष तथा आकर आदिके लक्षणोंकी भी कल्पना कर लेनी चाहिए, अर्थात् जहाँ पर बहुत घोष ( अहीर ) रहते हैं उसे ( उस ग्राम को) घोष कहते है ।
घोष प्रायोगिक शब्द — दे० शब्द |
घोषसम द्रव्यनिक्षेप - दे०/
चंद्रकीर्ति
घ्नत गणितकी गुणकार विधिमे गुण्यको गुणकार द्वारा घ्नत किया कहा जाता है - दे० गणित / II / १ / ५ ।
घ्राण - दे० इन्द्रिय / १ ।
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चंचत -- सौधर्म स्वर्गका ११ व पटल-दे० स्वर्ग /५/३ ।
चंड - ई० पू० ३ का एक प्राकृत विद्वान् जिन्होने 'प्राकृत लक्षण' नामका एक प्राकृत व्याकरण लिखा है । (ष. प्र. ११८ ) । चंडवेगा-भरत क्षेत्रके वरुण पर्वत पर स्थित एक नदी
-३० मनुष्य ४ ।
चंडशासन - ( म. पु./६० / ५२-५३ ) मलय देशका राजा था। एक समय पोदनपुर के राजा वसुषेण से मिलने गया, तब वहाँ उसकी रानीपर मोहित होकर उसे हर ले गया ।
चंद
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-अपर विदेहस्य देवमाल वक्षारका कूट व देव-दे० लोक / ७ । चंदन कथा - ० शुभचन्द्र (३० १२९६ ९२२६) द्वारा रचित
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संस्कृत छन्दबद्ध ग्रन्थ । (दे० शुभचन्द्र )
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चंदन षष्ठो व्रत ६ वर्ष तक प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्णा की छपवास करे। उस दिन तीन काल नमस्कार मंत्र का जाप्य करे। श्वेताम्बरों की अपेक्षा उस दिन उपवासकी बजाय चन्दन चर्चित भोजन किया जाता है। ( व्रत- विधान संग्रह / पृ, ८६, १२६ ) ( किशन सिंह क्रिया कोश ) ( नवल साहकृत वर्धमान पुराण ) ।
०१
चंदना (म. पु/७५/ श्लोक नं) - पूर्वभव न०२ मे सोमिला आणी भी 1०३ पूर्व न०२ में कंडा नामकी राजपुत्री थी १८२॥ पूर्वभव में लता नामकी राजपुत्री की वर्तमान भव मे चन्दना नामकी राजपुत्री हुई । १७०| वर्तमान भव में राजा चेटककी पुत्री थी, एक विद्याधर कामसे पीडित होकर उसे हर ले गया और अपनी स्त्रीके भय से महा अटवीमें उसे छोड़ दिया। किसी भीलने उसे वहाँ से उठाकर एक सेठको दे दी। सेठकी स्त्री उससे शंकित होकर उसे कोजो मिश्रित कोदोंका आहार देने लगी। एक समय भगवान् महावीर सौभाग्य से चयति लिए आये तब चन्दनाने उनको कोदोका ही आहार दे दिया, जिसके प्रतापसे उसके सर्व बन्धन टूट गये तथा वह सर्वागसुन्दर हो गयी (म.पु. ०४/१३०-३४७) तथा ( म.पू./०५/२००,३५०००) ( म.पू. / ०३ / श्लो. नं.) स्त्रीलिंग ग भवमें अच्युत स्वर्गदेव हुआ । १७३१ महाँसे चलकर मनुष्य भव धारण कर मोक्ष पाएगा ।१७७ (ह.पु. /२/७०) ।
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चंद्र
१. अपर विदेहस्थ देवमाल वक्षारका एक कूट व उसका रक्षक देव; - (दे० लोक / ५ / १०२. सुमेरु परंतुके नन्दन आदि के उत्सर भागमे स्थित कुबेरका गुफादे० लोक/३/६४२ रुप पका एक कूट० सोम /२/१३ ४. सोच स्वर्गकारावा पटल दे० स्वर्ग//३४. दक्षिण अमरीका रक्षक उपग्तर देन - दे० व्यन्तर /४, ६. एक ग्रह । दे० ग्रह ।
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२. चन्द्रग्रह सम्बन्धी विषय दे० ज्योतिष देव / ४ । चंद्र महत्तर दे परिशिष्ट चंद्रकल्याणक व्रत - दे० कल्याणक व्रत ।
चंद्रकीर्ति - १. नन्दिसंघके देशीयगणकी गुर्वावली के अनुसार आप मल्लधारी देवके शिष्य और दिवाकर नन्दिके गुरु थे। समय- वि.
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